मध्य प्रदेश पैरामेडिकल कॉलेजों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, हाई कोर्ट के आदेश पर जताई नाराजगी

03:15 PM Aug 15, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की प्रवेश प्रक्रिया को लेकर चल रहे विवाद में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जाहिर की। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हाई कोर्ट पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रखती, लेकिन न्यायिक औचित्य के महत्व को समझना जरूरी है। कोर्ट ने साफ कहा कि जब 16 जुलाई 2025 के आदेश पर वह पहले ही रोक लगा चुकी है, तो उसके बाद आगे निर्देश देना संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त 2025 को हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर भी रोक लगा दी।

मामला 16 जुलाई 2025 को तब शुरू हुआ जब लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की याचिका पर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने शैक्षणिक वर्ष 2023-24 और 2024-25 के पैरामेडिकल कोर्स की प्रवेश प्रक्रिया और कॉलेजों की मान्यता पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने सवाल किया कि 2023-24 के सत्र के लिए मान्यता देने की प्रक्रिया 2025 में कैसे शुरू हो सकती है और पिछली तारीख से दी गई मान्यता को 'अतार्किक' करार दिया।

पैरामेडिकल काउंसिल की सुप्रीम कोर्ट में अपील

हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पैरामेडिकल काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 1 अगस्त 2025 को मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता (लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन) का इस मामले से कोई सीधा संबंध नहीं है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट मामले की सुनवाई जारी रख सकता है, लेकिन क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (QCI) की जांच प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

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स्टे के बाद भी हाई कोर्ट का नया आदेश

सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बावजूद 8 अगस्त 2025 को हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच (जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला) ने पैरामेडिकल काउंसिल को सभी कॉलेजों की मान्यता से जुड़े दस्तावेज प्रस्तुत करने के निर्देश दिए और अगली सुनवाई 12 अगस्त तय कर दी। यही वह बिंदु था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ माना।

छात्रों पर पड़ा आदेश का असर

हाई कोर्ट के 16 जुलाई के आदेश के बाद हजारों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया। 2022-23 और 2023-24 में प्रवेश लेने वाले कई छात्रों की डिग्रियों पर सवाल खड़े हो गए, क्योंकि सीबीआई जांच में कई कॉलेज अयोग्य पाए गए। छात्रों ने मोटी फीस देकर प्रवेश लिया था और अब वे मानसिक व आर्थिक दबाव झेल रहे हैं।

पैरामेडिकल काउंसिल का कहना है कि महामारी के दौरान कई राज्यों में पैरामेडिकल कोर्स समय पर शुरू नहीं हो सके थे, जिससे स्टाफ की कमी और बढ़ गई। यदि हाई कोर्ट का आदेश लागू होता तो प्रदेश में पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी हो जाती और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होतीं।

मान्यता प्रक्रिया पर उठ रहे सवाल

हालांकि हाई कोर्ट का तर्क था कि रेट्रोस्पेक्टिव मान्यता यानी पिछली तारीख से मान्यता देने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने इस पर गंभीर सवाल उठाए और जांच की जरूरत बताई।

सुप्रीम कोर्ट की हालिया सख्ती से 2023-24 और 2024-25 सत्रों की प्रवेश प्रक्रिया दोबारा शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। अब पैरामेडिकल काउंसिल प्रवेश प्रक्रिया और कॉलेजों की मान्यता को आगे बढ़ा सकेगी, जबकि हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई समानांतर जारी रहेगी। इससे उन छात्रों को राहत मिलेगी जो लंबे समय से अनिश्चितता में थे।