पुणे- भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) पुणे में दलित, आदिवासी और बहुजन छात्रों द्वारा आयोजित वार्षिक उत्सव 'मुक्तिपर्व' एक बार फिर विवादों में घिर गया है।
बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में होने वाले इस आयोजन को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के विरोध के बाद रद्द करना पड़ा। ABVP ने बाहरी वक्ताओं पर माओवादी और राष्ट्र-विरोधी होने का आरोप लगाया, जिसके चलते IISER प्रशासन ने चर्चा सत्रों को रद्द कर दिया।
इस घटना ने कैंपस में समावेशिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आयोजकों ने ABVP से सवाल किया, "आप कौन होते हैं हमें यह बताने वाले कि दलित-बहुजन-आदिवासी आंबेडकर और अंबेडकर जयंती कैसे मनाएँ?"आयोजकों का कहना है कि ABVP बाहरी संगठन है और IISER पुणे में कोई भी छात्र इससे जुड़ा हुआ नहीं है, ऐसे में संस्थान के किसी कार्यक्रम में इस तरह इनकी दखलंदाजी गलत है।
मुक्तिपर्व: इस बार क्या हुआ?
मुक्तिपर्व, जो 2023 में 'दलित हिस्ट्री मंथ' के रूप में शुरू हुआ, सामाजिक न्याय, जाति और जेंडर समानता पर केंद्रित एक मंच है। इस साल आयोजन में TISS छात्रों की डॉक्यूमेंट्री 'एक्जूर' दिखाई गई, जो मुंबई के जय भीम नगर में बेदखली का सामना कर रहे लोगों की कहानी बयां करती है। फोटो जर्नलिस्ट अक्षरा सनल और विजुअल आर्टिस्ट मालविका राज ने क्रमशः ग्रामीण ट्रांस समुदायों और आंबेडकर-सावित्रीबाई फुले की छवियों पर चर्चा की। तमिल उपन्यासकार वायलेट ने तमिल साहित्य और आंबेडकर की मैत्री पर टॉक दी।
12 और 19 अप्रैल को होने वाले सत्रों में चार महिला वक्ताओं— विजेता कुमार, दीपाली सल्वे (अखिल भारतीय स्वतंत्र अनुसूचित जाति संघ की महासचिव), नाजिमा परवीन (पोस्टकोलोनियलिज्म और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर शोधकर्ता) और स्मिता पाटिल (जाति और जेंडर पर प्रोफेसर)—को शामिल किया गया था।
ABVP ने आयोजन में शामिल कुछ बाहरी वक्ताओं पर माओवादी और वामपंथी उग्रवादी विचारधाराओं से जुड़े होने का आरोप लगाया। संगठन ने दावा किया कि ऐसे व्यक्तियों की उपस्थिति शैक्षणिक माहौल के लिए अनुचित है और इससे "विभाजनकारी, जातिवादी या राष्ट्र-विरोधी" प्रवचन को बढ़ावा मिल सकता है। ABVP ने पुणे पुलिस के उपायुक्त (जोन 4) हिम्मत जाधव और IISER निदेशक डॉ. सुनील भगवत को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की कि "कट्टरपंथी संबद्धता" वाले वक्ताओं को कैंपस गतिविधियों से प्रतिबंधित किया जाए।
संगठन ने 'पगडंडी' नामक प्रकाशन पर भी निशाना साधा, जिसके किताबें आयोजन में प्रदर्शित थीं। ABVP ने इसे "शहरी नक्सल" विचारधारा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। पिछले साल के मुक्तिपर्व में कथित तौर पर "विवादास्पद धार्मिक और जातिवादी बयानों" का हवाला देते हुए, ABVP ने दावा किया कि इस तरह के आयोजन सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुँचाते हैं। संगठन ने यह भी तर्क दिया कि बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने जीवनकाल में वामपंथी विचारधारा का विरोध किया था, और उनकी जयंती पर "टुकड़े-टुकड़े गैंग" से जुड़े लोगों को मंच देना अनुचित है।
IISER प्रशासन ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि मुक्तिपर्व एक छात्र-नेतृत्व वाला आयोजन था, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों पर चर्चा करना था। संस्थान ने कहा कि आयोजन को आंतरिक मंजूरी मिली थी, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि कोई भी भड़काऊ या आपत्तिजनक सामग्री नहीं होनी चाहिए। हालांकि, ABVP की शिकायतों के बाद प्रशासन ने बाहरी वक्ताओं के सत्रों को रद्द करने का फैसला लिया। बयान में कहा गया, "उठाए गए मुद्दों को देखते हुए, हमने इस समय बाहरी वक्ताओं वाले सत्रों को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया है।"
प्रशासन ने यह भी जोड़ा कि संस्थान बाबासाहेब आंबेडकर के आदर्शों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और आंबेडकर जयंती को पूरे साल सम्मान देता रहेगा।
The memorandum given by ABVP to the IISER Pune director also included threats of violence and attack if Muktiparv was continued.#PuneCity pic.twitter.com/aziW5faszC
— Deepali_Salve (@deepali_writes) April 12, 2025
मुक्तिपर्व आयोजन समिति ने इस फैसले की कड़ी निंदा की और इसे "छात्र अधिकारों और स्वायत्तता पर हमला" बताया। उनके बयान में कहा गया, "प्रशासन का यह एकतरफा फैसला बिना किसी ठोस कारण या आयोजकों से चर्चा के लिया गया, जो या तो सुरक्षा सुनिश्चित करने में इसकी अक्षमता को दर्शाता है या फिर प्रभावशाली समूहों को खुश करने की कोशिश है।" आयोजकों ने इसे "दलित-आदिवासी-बहुजन विरोधी रवैया" करार देते हुए कहा कि वे हाशिए की आवाज़ों को दबाने के खिलाफ प्रतिरोध करेंगे।
दीपाली सल्वे जिनका टॉक 13 अप्रैल को होना था, ने कार्यक्रम निरस्त होने को लेकर सोशल मीडिया पर लिखा, "केवल ABVP को चर्चा सत्र से समस्या थी, इसलिए उन्होंने DCP पुणे से बात की और आंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित मुक्तिपर्व रद्द करवा दिया। कई विश्वविद्यालय हिंदू त्योहारों का उत्सव मनाते हैं, लेकिन जब दलित-बहुजन आवाज़ें उठती हैं, तो कानून-व्यवस्था का हवाला दिया जाता है।"
फरवरी में प्राइड मार्च पर भी हुआ था विवाद
मुक्तिपर्व से पहले, फरवरी में सतरंगी समूह द्वारा आयोजित प्राइड मार्च भी विवादों में घिरा था। क्वीर समुदाय के समर्थन में हुए इस मार्च में "आज़ादी" जैसे नारे लगे, जिन्हें दक्षिणपंथी सोशल मीडिया अकाउंट्स और ABVP ने "राष्ट्र-विरोधी" करार दिया। IISER ने स्पष्ट किया कि ये नारे सामाजिक पूर्वाग्रहों से मुक्ति के लिए थे। फिर भी, ABVP के दबाव और ऑनलाइन ट्रोलिंग के बाद आयोजन पर सवाल उठे। छात्रों ने इसे समावेशी माहौल पर हमला बताया और कहा कि कैंपस में LGBTQ समुदाय की आवाज़ को भी दबाने की कोशिश की जा रही है।
आयोजकों ने अपने बयान में कहा, "IISER जैसे कुलीन संस्थान ने हाल ही में दलित-आदिवासी-बहुजन आवाज़ों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश शुरू की है। लेकिन RTI से पता चलता है कि SC/ST छात्रों की ड्रॉपआउट दर अधिक है और फैकल्टी व PhD सीटों में आरक्षण अधूरा है।" मुक्तिपर्व, जो केवल कुछ सौ लोगों को आकर्षित करता है, ऐसे समुदायों के लिए महत्वपूर्ण मंच है। फिर भी, इसे बार-बार निशाना बनाया जा रहा है।
आयोजकों ने ABVP पर निशाना साधते हुए कहा, "ब्राह्मण और उच्च जाति के पुरुषों द्वारा संचालित ABVP को यह हक किसने दिया कि वे हमें आंबेडकर जयंती मनाने का तरीका बताएँ? वे चाहते हैं कि दलित-आदिवासी छात्र चुप रहें, लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे।" उन्होंने इस रद्दीकरण को "छात्र अधिकारों पर हमला" और "दलित-आदिवासी-बहुजन विरोधी रवैया" करार दिया।
मुक्तिपर्व और प्राइड मार्च जैसे आयोजनों पर बार-बार उठने वाले विवाद IISER पुणे में समावेशिता की कमी को उजागर करते हैं। जब बाहरी संगठन किसी शैक्षणिक संस्थान की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं, तो यह न केवल छात्रों के अधिकारों का हनन है, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए भी चुनौती है। आयोजकों का सवाल—"आप कौन होते हैं हमें यह बताने वाले कि आंबेडकर जयंती कैसे मनाएँ?"—न केवल ABVP के लिए, बल्कि उन सभी के लिए है जो हाशिए की आवाज़ों को चुप कराना चाहते हैं।