नई दिल्ली – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में इक्विटी को बढ़ावा देने वाले नियम ( Promotion of Equity in Higher Education Institutions Regulations) 2025 का मसौदा जारी किया है, जिसका उद्देश्य भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) में एक समावेशी और भेदभाव-मुक्त माहौल बनाना है।
हालांकि, इस मसौदे को लेकर छात्र समूहों और वंचित समुदायों में व्यापक असंतोष है। उनका कहना है कि यह जाति-आधारित भेदभाव के मुद्दों को एड्रेस करने में विफल है, ड्राफ्ट में वंचित समूहों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव है, और सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों के छात्रों के सामने आने वाली व्यवस्थागत बाधाओं को नजरअंदाज किया गया है।
ऑल इंडिया OBC स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AIOBCSA) ने इस मसौदे पर गंभीर चिंताएं जताई हैं और इसे "अधूरा" और बहिष्कारपूर्ण (exclusionary) बताया है। संगठन का कहना है कि इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूह (SEDG) की सूची से बाहर रखा गया है।
पिछड़े समूहों की परिभाषा से OBCs को बाहर रखने से लेकर निर्णय लेने वाली इक्विटी कमेटी में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व तक, इस मसौदे पर आरोप लगाया गया है कि यह इक्विटी और समावेशन के अपने वादे को पूरा करने में विफल रहा है।
AIOBCSA ने मांग की है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBCs) को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाए, ताकि OBC छात्रों के साथ होने वाले जातिगत भेदभाव को रोका जा सके।
आइए, छात्र समूहों द्वारा उठाए गए UGC के प्रस्तावित नियमों की कमियों पर एक नजदीकी नजर डालते हैं।
UGC के मसौदे का संक्षिप्त विवरण
यह मसौदा नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के अनुरूप है और इसका उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों में धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकना है। UGC ने हितधारकों से 30 दिनों के भीतर Google Form के माध्यम से सुझाव मांगे हैं। इन नियमों में प्रवेश, शिक्षक भर्ती और संस्थागत प्रशासन में इक्विटी सुनिश्चित करने के उपाय शामिल हैं।
हालांकि, AIOBCSA के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने मसौदे में खासकर OBCs को SEDG श्रेणी से बाहर रखने पर, गंभीर कमियों की ओर इशारा किया है। संगठन का कहना है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 15(5) के तहत OBCs को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में मान्यता देने के सिद्धांत के खिलाफ है।
AIOBCSA की मुख्य चिंताएं
जातिगत भेदभाव की परिभाषा में OBCs को शामिल न करना
AIOBCSA ने मसौदे की आलोचना करते हुए कहा है कि इसमें OBCs को जातिगत भेदभाव की परिभाषा में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया है। संगठन का कहना है कि OBC छात्र शिक्षण संस्थानों में व्यवस्थित जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं, और उन्हें नियमों से बाहर रखना एक "ऐतिहासिक गलती" होगी। किरण कुमार गौड़ ने बताया कि कुछ राज्यों में कुछ OBC समुदायों को अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो दर्शाता है कि जातिगत भेदभाव की समस्या कितनी जटिल है।
इक्विटी समिति में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व
मसौदे के अनुसार, इक्विटी समिति में 10 सदस्यों में से केवल एक महिला सदस्य और एक SC या ST समुदाय का सदस्य होगा। AIOBCSA ने मांग की है कि समिति के आधे से अधिक सदस्य SC, ST और OBC समुदाय से हों, ताकि निर्णय लेने में न्याय सुनिश्चित हो सके।
SEDG के बजाय SEBC को मान्यता
संगठन ने SEDG (Socio-Economically Disadvantaged Groups) फ्रेमवर्क के बजाय "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBCs)" शब्द का उपयोग करने की मांग की है। उनका कहना है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में भेदभाव मुख्य रूप से जाति आधारित है, न कि केवल आर्थिक या सामाजिक। सरकार पहले से ही शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के लिए SEBCs को मान्यता देती है, और इक्विटी नियमों से उन्हें बाहर रखना इस मान्यता के विपरीत है।
जातिगत भेदभाव की स्पष्ट परिभाषा
AIOBCSA ने UGC से अनुरोध किया है कि जातिगत भेदभाव, उसके रूप और गंभीरता को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए। संगठन ने कहा कि SC, ST और OBC छात्रों के साथ भेदभाव एक वास्तविकता है, और UGC को इसे स्वीकार करना चाहिए ताकि शिकायतों का प्रभावी समाधान हो सके।
संकाय और प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्रवाई
संगठन ने शिक्षकों और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जातिगत भेदभाव के मामलों में जीरो टॉलरेंस की मांग की है। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार के मौखिक, लिखित या व्यवस्थित भेदभाव के लिए सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसमें बर्खास्तगी और कानूनी कार्रवाई शामिल हो।
जवाबदेही और संस्थागत तंत्र
AIOBCSA ने विश्वविद्यालयों में एक समर्पित एंटी-कास्ट डिस्क्रिमिनेशन सेल बनाने का सुझाव दिया है, जिसमें OBC, SC और ST छात्रों का प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा, जातिगत भेदभाव के मामलों की सालाना रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए, और शिक्षकों और प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए संवेदनशीलता कार्यक्रम अनिवार्य होने चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य और सहायता प्रणाली
संगठन ने कहा कि जातिगत भेदभाव से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, UGC को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता, कानूनी सहायता और शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध हों।
द मूकनायक से बातचीत में किरण कुमार गौड़ ने जोर देकर कहा कि मसौदे से OBCs को बाहर रखना संवैधानिक दायित्वों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, "UGC को OBC छात्रों के साथ होने वाले जातिगत भेदभाव की वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए और नियमों में SEBCs को स्पष्ट रूप से शामिल करना चाहिए। ऐसा न करने से उच्च शिक्षा में असमानता बनी रहेगी।"
UGC ने Google Form के माध्यम से मसौदे पर सुझाव मांगे हैं, जो सार्वजनिक नोटिस की तारीख से 30 दिनों तक खुला रहेगा। छात्र संगठनों, शिक्षकों और नागरिक समाज समूहों से अपेक्षा की जा रही है कि वे अपने सुझाव दें। AIOBCSA ने OBC छात्रों और अन्य हितधारकों से इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने और नियमों में SEBCs को शामिल करने की मांग करने का आह्वान किया है।
जैसे-जैसे मसौदे पर बहस तेज हो रही है, UGC पर AIOBCSA की चिंताओं को दूर करने और यह सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ रहा है कि अंतिम नियम भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में वास्तव में इक्विटी और समावेशिता को बढ़ावा दें।