एर्नाकुलम- शिक्षा में भाषा का क्या महत्व है, यह किसी से छिपा नहीं. अपनी मातृभाषा से इतर किसी गैर भाषा में पढाई लिखाई करना किसी भी स्टूडेंट के लिए बहुत मुश्किल भरा होता है लेकिन केरल के एर्नाकुलम जिले में संचालित 'रोशनी' योजना हिंदी/ गैर मलयालम भाषी स्टूडेंट्स को स्थानीय भाषा यानी मलयालम सिखाने में कितना प्रभावी है- इसका एक उदाहरण सामने आया है।
इस योजना ने बिहार की एक प्रवासी छात्रा धरक्षा परवीन को न केवल भाषा की बाधाओं को पार करने में मदद की, बल्कि उनकी प्रतिभा को भी निखारा। 2022 में 19 वर्षीय धरक्षा ने अपनी पुरानी सहपाठी पुष्पा जो उत्तर प्रदेश की एक प्रवासी मजदूर की बेटी थी, को मलयालम में एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने बताया कि कैसे एक स्कूल शिक्षक ने उनकी सिलाई में रुचि को देखते हुए उनके लिए एक सिलाई मशीन खरीदी, जिसने फैशन के प्रति उनके जुनून को और बढ़ाया।
धरक्षा जो चौथी कक्षा में केरल आई थीं, ने अपने पत्र में लिखा, "उस दिन से मैंने पुराने कपड़ों को काटकर और सिलकर टेलरिंग शुरू की। दसवीं कक्षा के बाद, मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं हायर सेकेंडरी में पढ़ाई करूं, लेकिन मैंने अपने पिता की मदद के लिए नौकरी प्रशिक्षण लेने का फैसला किया। इसलिए, मैंने पॉलिटेक्निक में फैशन डिजाइनिंग कोर्स में दाखिला लिया। इसके बाद, मैंने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU) से डिग्री कोर्स शुरू किया।"
यह पत्र अब केरल की छठी कक्षा की मलयालम पाठ्यपुस्तक में 'काम का स्वाद, भाषा' शीर्षक के तहत एक अध्याय के रूप में शामिल किया गया है। पत्र में रोशनी योजना के तहत मिली मदद का भी जिक्र है, जिसने धरक्षा को पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करने में सहायता की। स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (SCERT) केरल के निदेशक आर के जयप्रकाश ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' के शाजू फिलिप को बताया , "केरल शिक्षा विभाग एक समावेशी शिक्षा का संदेश देना चाहता था। धरक्षा बिहार से आईं, उसने मलयालम सीखा और अब मलयालम में कहानियां लिखने में सक्षम हैं। यह हमारी समावेशी नीति की सफलता को दर्शाता है। यह पहली बार है जब केरल के स्कूल पाठ्यपुस्तक में किसी प्रवासी छात्र की रचना शामिल की गई है।"
धरक्षा के पिता, मुहम्मद अमीर बिहार के दरभंगा जिले के शोभन के रहने वाले हैं, वे 25 साल पहले केरल आए थे। उन्होंने कोच्चि के पास आलुवा में एक फुटवेयर निर्माण इकाई में काम शुरू किया। 12 साल पहले, उन्होंने अपनी पत्नी रजिया खातून, बेटी धरक्षा और दो बेटों, मुहम्मद समीर और मुहम्मद आदिल को भी केरल बुला लिया। अब 22 वर्षीय धरक्षा ने बिनानीपुरम के सरकारी हाई स्कूल से 2019 में दसवीं कक्षा 85 प्रतिशत अंकों के साथ पास किया, फिर फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा हासिल की और अब IGNOU से डिग्री कोर्स कर रही हैं।
धरक्षा ने अपने पत्र में अपनी सहपाठी पुष्पा के बारे में भी बताया। पुष्पा उनके साथ कक्षा 5 से 7 तक पढ़ी थीं, लेकिन बाद में अपने माता-पिता के साथ उत्तर प्रदेश लौट गईं। धरक्षा ने कहा, "मैंने कुछ साल पहले पुष्पा को हमारे बचपन के दिनों के बारे में लिखा था, लेकिन उनकी शादी के बाद हमारा संपर्क टूट गया। अधिकारियों को मेरे मलयालम लेखन के बारे में पता चला और उन्होंने इसे कुछ बदलावों के साथ पाठ्यपुस्तक में शामिल किया।"
अधिकारियों के अनुसार धरक्षा रोशनी योजना की शुरुआती लाभार्थियों में से एक हैं। 2017 में एर्नाकुलम में चार स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुई यह योजना अब 40 सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों तक विस्तारित हो चुकी है। 2023 सेध रक्षा रोशनी परियोजना में स्वयंसेवक के रूप में काम कर रही हैं। परियोजना समन्वयक सी के प्रकाश के अनुसार "वह 10 स्कूलों में प्रवासी बच्चों को कला और शिल्प सिखाती हैं। अब तक, एर्नाकुलम जिले के 2500 प्रवासी छात्र इस परियोजना का हिस्सा बन चुके हैं।"
केरल में अनुमानित 24,000 प्रवासी परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। SCERT अब रोशनी परियोजना के आधार पर 'ज्योति' नामक एक नई योजना शुरू करने की योजना बना रहा है, जिसका उद्देश्य प्रवासी मजदूरों के बच्चों का स्कूल नामांकन बढ़ाना है। जयप्रकाश ने कहा, "जब माता-पिता एक जिले से दूसरे जिले में जाते हैं, तो बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है। इसे रोकने के लिए हम स्थानीय स्व-शासन निकायों के स्तर पर एक रजिस्टर बनाएंगे और स्कूलिंग की निरंतरता सुनिश्चित करेंगे।"
फैशन के प्रति धरक्षा का जुनून कम नहीं हुआ है। IGNOU से डिग्री कोर्स के साथ-साथ, वह अपने माता-पिता और दो छोटे भाई-बहनों के साथ रहने वाले घर में टेलरिंग का काम भी करती हैं। उन्होंने कहा, "मैं केरल में ही बसना चाहती हूं। मेरा सपना एक टेलरिंग/फैशन डिजाइनिंग यूनिट शुरू करने और एक घर बनाने का है।"
क्या है रौशनी परियोजना
एर्नाकुलम जिले में प्रवासी मजदूरों के बच्चों की सामाजिक भागीदारी और शैक्षिक प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने जिला पंचायत, शिक्षा विभाग, सर्व शिक्षा अभियान (SSA) और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के सहयोग से 'रोशनी' परियोजना शुरू की। यह राज्य में एक अनूठा कार्यक्रम है, जो समाज के सबसे पिछड़े समूहों में से एक को लक्षित करता है।
इस परियोजना का पायलट प्रोजेक्ट अक्टूबर 2017 से फरवरी 2018 तक जिले के चार चयनित स्कूलों में सफलतापूर्वक लागू किया गया, जहां प्रवासी बच्चों की संख्या सबसे अधिक थी। इस शैक्षणिक वर्ष में इसे जिले के 14 और स्कूलों तक विस्तारित किया गया है।
सर्व शिक्षा अभियान (SSA), एर्नाकुलम द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, जिले के स्कूलों में 2500 से अधिक प्रवासी बच्चे, मुख्य रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, असम और नेपाल से, नामांकित हैं। हालांकि, अध्ययनों से पता चलता है कि ये बच्चे नियमित रूप से कक्षाओं में नहीं आते और कई तो शैक्षणिक वर्ष के बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। विभिन्न भाषाई समुदायों से होने और मलयालम में पढ़ाए जाने वाले कक्षा के माहौल में, इन बच्चों को स्कूल के वातावरण के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल होता है। इसी संदर्भ में जिला प्रशासन ने रोशनी परियोजना शुरू की।