लेखक राजेंद्र सजल के कहानी संग्रह पर परिचर्चा आयोजित
नई दिल्ली। आम्बेडकरवादी लेखक मंच की ओर से गत रविवार को राजेंद्र सजल की कहानियों की पुस्तक 'अंतिम रामलीला' पर आईटीओ स्थित नेहरू युवा केंद्र सभागार में परिचर्चा आयोजित की गई।
कार्यक्रम की भूमिका बांधते हुए अरुण कुमार ने कहा कि आम्बेडकरवादी लेखक मंच अपनी स्थापना से दलित साहित्य को लेकर गंभीर कार्य कर रहा है। इसी कड़ी में राजेंद्र सजल की सशक्त कहानियों को हिंदी की दुनिया से परिचित करवाने के लिए परिचर्चा का आयोजन किया गया है।
लेखक की पहली कहानी 'झमकू' लगभग 20 वर्ष पूर्व दैनिक भास्कर में व दूसरी कहानी मधुरिमा में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद लेखक ने पत्र-पत्रिकाओं में दस्तक दिए बिना ही सीधे अपनी पुस्तक में संकलित कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई है। लेखक का कहानी कौशल इतना जबरदस्त है कि आज नहीं तो कल आपको इन कहानियों से रूबरू होना पड़ेगा।
प्रो. रजनी दिसोदिया ने कहा कि राजेंद्र सजल सजग कहानीकार है। ये कहानी की बुनावट पर ज्यादा सोचते हैं। यह सोचना ही उन्हें अन्य लेखकों से अलग बनाता है। हम लोग दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र से परहेज करते हैं, जबकि इस पर बात होनी चाहिए।
इन कहानियों में जो स्थायी भाव है। राजेंद्र सजल की कहानियों को भी दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से परखा जाना चाहिए। 'इत्ती सी बात' कहानी आपको बेहद भावुक कर देती है तो 'मास्टर माई' कहानी हमें हमारे घर के बुजुर्गों की समस्या से आँखें चार करवाती है। 'अंतिम रामलीला' कहानी एक दृष्टि, एक विश्लेषण की कहानी है जो कि अलग से एक चर्चा की मांग करती है।
प्रो. प्रमोद मेहरा ने बताया कि, इस समय रीडरशिप की समस्या प्रगाढ़ हो चुकी है, कॉन्टेक्स्ट बड़ा चैलेंजिंग हो चुका है। रंगहीन, स्वादहीन की तरफ पाठक नहीं जाता है। सजल की 'अंतिम रामलीला' कहानी प्रतिनिधि कहानी है, यह किसी गाँव की समस्या नहीं होकर वर्तमान भारत की समस्याओं को केंद्र में रखती है।
स्त्रीकाल के संपादक, आलोचक संजीव चन्दन ने कहा कि लेखक ने मुझे पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए कहानियां प्रेषित की थीं। भूमिका में ही मैंने बेहद जिम्मेदारी के साथ लिखा है कि 'राजेंद्र सजल हिंदी कथा साहित्य की एक उपलब्धि होने वाले है'। उनकी कहानियों को पढ़कर कोई भी दावा कर सकता है। 'इत्ती सी बात' कहानी में जो फेमिनिस्ट स्टेटमेंट है। वही कहानी को महत्वपूर्ण बनाता है। उनकी शैली कहीं कहीं पर उन्हें विजयदान देथा के समकक्ष खड़ा कर देती है।

दलित लेखक संघ अध्यक्ष अनीता भारती ने कहा कि सजल की कहानियां चकित करती हैं। लम्बी कहानियों की अपेक्षा छोटी कहानियां ज्यादा प्रभावित करती हैं। 'सुसली' संग्रह की सबसे सशक्त स्त्री पात्र है। 'झमकू' कहानी में बाँझपन की समस्या को चित्रित किया है। झमकू कहानी की स्त्री द्वारा यह निर्णय लिया जाना कि मैं अपने गाँव वापस नहीं जाऊँगी, राजस्थान के जातिवादी, पितृसत्तात्मक समाज में बहुत बोल्ड डिसीजन है। 'बावली' कहानी स्त्री विमर्श की कहानी है, वहीं 'काला भूत' कहानी दलित विमर्श की कहानी है।
प्रो. गोपाल प्रधान ने कहा कि राजेंद्र सजल की कहानियां हिंदी कहानी की मुख्यधारा में बड़ा हस्तक्षेप है। इसके लिए हमें वर्तमान हिंदी की कहानी को देखना समझना पड़ेगा। परिचर्चा में भाग लेने राजस्थान से आए रामस्वरूप रावत ने कहा कि ग्रामीण परिवेश में व्यक्ति क्या भोगता है। वह शहर में बैठा आदमी महसूस नहीं करता है, लेकिन इस गोष्ठी में आकर मेरी यह धारणा बदली है।

परिचर्चा में प्रसिद्ध इतिहासकार एवं आम्बेडकरनामा के संस्थापक डॉ. रतन लाल, कवयित्री रजनी अनुरागी, नाटककार राजेश कुमार, कवि जावेद आलम खान, कवि समय सिंह जौल, कवयित्री संतोष देवी, शोध छात्रा संगीता झा, अजय कुमार, मनीषा, लारैब अकरम, द मूकनायक की संस्थापक मीना कोटवाल, राजा चौधरी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम में आए लोगों का पूजा सूर्यवंशी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन अरुण कुमार ने किया।