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सीज़फायर: ट्रंप बार-बार भारत को टारगेट क्यों कर रहे हैं?

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अब तक एक-दो बार नही 7-7 बार भारत-पाक युद्ध बंद करा देने का दावा कर चुके हैं.अमेरिका से लेकर सउदी अरबिया तक जहां जा रहे हैं,युद्ध बंद कराने का श्रेय बार-बार ले रहे हैं. भाषा उनकी बेहद अपमानजनक होती है,नीचा दिखाने की कोशिश होती है,खुद को दुनिया का चौधरी बताने की भी होती है.

ये शायद पहली बार हो रहा है कि सीज़फायर का श्रेय कोई तीसरा देश ले ले,या इसकी घोषणा ही कोई तीसरा देश कर दे. 10 मई को भारत-पाक के बीच संघर्ष विराम का सबसे पहले दावा ट्रंप ने किया,इसके बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री और फिर भारत के विदेश सचिव ने आधिकारिक ऐलान किया,फिर बाद में पाकिस्तान ने ट्रंप को धन्यवाद भी दिया. हालाकि भारत ने अमेरिकी दावों को खारिज भी किया.पर अमेरिका द्वारा सबसे पहले सीज़फायर की घोषणा के चलते, मसला वैश्विक स्तर पर बेहद विवादित हो गया,भारत के लिए बहुत ख़राब परिस्थिति पैदा हो गई.

आम तौर पर हर ऐसे तनाव के मसले में मदद के लिए आते है देश,जैसे सउदी अरब ने कोशिश की,अपने विदेश राज्य मंत्री को भारत व फिर पाकिस्तान भी भेजा,श्रेय नही लिया.इरान ने भी प्रयास किया,पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार ही पर उनके राजनयिक भी भारत व पाकिस्तान दोनों जगह गए कि युद्ध विराम का कोई रास्ता निकल आए, युरोप के देश भी लगातार प्रयास कर रहे थे.पर किसी ने भी युद्ध विराम को हड़प लेने की कोशिश नही की.

ट्रंप ने तो मोदी जी के राष्ट्र के नाम संबोधन वाले महत्वपूर्ण अवसर को भी अप्रासंगिक बना दिया,15 मिनट पहले ही अपना एक और बयान लेकर आ गए.उन्होने कहा कि "मुझे खुशी है कि अमेरिका इस ऐतिहासिक और साहसी फैसले तक पहुंचने में आपकी मदद कर सका,मै दोनों देशों के व्यापार बढ़ाने जा रहा हूं,इसके साथ ही,मैं दोनों के साथ मिलकर यह देखने की कोशिश करूंगा कि क्या हजार साल बाद कश्मीर मुद्दे का कोई हल निकाला जा सकता है"

12 मई को ट्रंप ने फिर कहा कि "हमने दोनों देशों के बीच परमाणु जंग रोक दी है, मैंने कहा कि अगर आप इसे नही रोकते हैं,तो हम कोई व्यापार नही करेंगे. लोगों ने कभी भी बिजनेस का उस तरह से इस्तेमाल नही किया जैसा मैंने किया."

ट्रंप की तर्ज पर उनके बेटे,ट्रंप जुनियर ने भी उन्हीं की भाषा में बात की, उन्होंने भी रविवार को भारत-पाक के बीच हुए सीज़फायर का क्रेडिट पिता को दिया.उन्होने कहा था कि स्मार्ट लोग बातचीत की टेबल पर हैं और अमेरिका की वजह से दुनिया एक सुरक्षित जगह है.

इसी तरह के लगातार 6-7 बयान अब तक आ चुके हैं. हालांकि सीज़फायर के 6 दिन बाद ट्रंप के स्वर थोड़े धीमें पड़े हैं, बार-बार मध्यस्थता का दावा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोहा में कहा कि "वैसे तो मैं यह नही कहना चाहता कि मैंने वैसा किया.पर मैंने पिछले हफ्ते भारत-पाकिस्तान के तनाव खत्म करने में निश्चित रूप से मदद की,जो कि लगातार बढ़ता जा रहा था.मुझे उम्मीद है कि अब समाधान हो चुका है" मतलब अभी भी वो घुम फिर कर समस्या को हल करने का श्रेय लेना नही छोड़ रहे हैं.

बावजूद इसके आज तक, प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार भी अपना मुंह नही खोला है.अब तो दुनिया भर के विश्लेषक सोचने लगे हैं कि ऐसी कौन-सी कमजोरी है,जिसे ट्रंप ने पकड़ रखी है,कि मोदी ज़ी बार-बार अपमान झेल कर भी चुप हैं,अपनी छवि संकट में डाल कर भी सन्नाटे में पड़े हुए हैं.

हालांकि ये सिलसिला,अपमानजनक व्यवहार,टेरिफ वार के दौर से ही जारी है.

दर्जनों बार ट्रंप ने मोदी जी के सामने आड सिचुएशन पैदा किया हैं,बहुत ख़राब भाषा में बतियाते रहे,व उसे व्यवहारिक धरातल पर उतारते भी रहे,कभी भारत को टैरिफ बोलते रहे तो कभी भारतीयों को अपमानित कर भारत भेजते रहे.

बावजूद इसके मोदी ज़ी ने जो चुप्पी वाली रणनीति ली है,वो बार-बार फेल कर जा रही है,भारत को तो अब तक इस चुप्पी का कोई फायदा मिलता तो नही दिख रहा है.ट्रंप और ज्यादा आक्रामक होते जा रहे हैं.

असल में ट्रंप की रणनीति,आक्रामक होते देशों को समझौते के टेबल पर ले जाना है,व पीछे हटते मुल्कों को और पीछे ढकेलते जाने का है.उसे बार-बार अपमानित करने का है,घेरेबंदी और तेज कर देनी है.और इस जटिल प्रक्रिया के जरिए अमेरिकी पूंजी के लिए अधिकतम मुनाफा बटोरना है.

इस रणनीति को समझते हुए ही अधिकतर देशों ने टैरिफ वार के शुरूआती दौर से ही अमेरिकी हमलों का जबाब देना शुरू कर दिया था,जैसे चीन ने हर तरह से हर जंग को अंत तक लड़ने की चुनौती दे डाली, और टैरिफ का जबाब टैरिफ से दिया.फ्रांस ने तो साफ़ कह दिया कि हमारा भविष्य न्युयार्क या मास्को नही तय कर सकता, कनाडा ने अमेरिकी फैसले को बेवकूफी भरा बताया,युरोपीय संघ ने भी विरोध जताया,यहां तक उक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी तन कर खड़े रहे.सो इनमें से ज्यादातर देशों के साथ खासकर चीन के साथ मजबूरन,ट्रंप को समझौते में जाना पड़ा पर पीछे हटते,चुप्पी साधे भारत लिए हर मसला अभी भी उलझा हुआ है, अनिश्चितता के बादल हर ओर अभी भी मंडराते नज़र आ रहे हैं.

टैरिफ वार की ही तर्ज़ पर या उसी रणनीति के तहत ट्रंप बार-बार कश्मीर का नाम भी आक्रामक तौर पर लेने लगे है, मध्यस्थता करने की बात कर,भारत को और संकट में डालना चाहते हैं.

कश्मीर जिसे भारत अंदरुनी मसला मान रहा था,और अनुच्छेद 370 हटाने के बाद उस मसले को ख़त्म मान रहा था,उसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने बार-बार जिक्र कर फिर से जिंदा कर दिया है, पहलगाम हमले बाद ऐसा लग रहा था कि दुनिया के लिए, चरमपंथ को पाकिस्तान का संरक्षण दिया जाना, बहस के केंद्र में आ जाएगा,दुनिया इस प्रश्न पर बहस करेगी कि पाकिस्तान चरमपंथ को सरंक्षण देना कब बंद करेगा,पर ऐसा नही हुआ,किसी भी देश ने पाकिस्तान को लेकर एक बार भी नही बोला कि समस्या चरमपंथ है, बल्कि उल्टा ये हुआ कि कश्मीर का फिर से अंतराष्ट्रीयकरण ज़रूर हो गया.

सीज़फायर का श्रेय बार-बार लेने के पीछे एक और वजह है. ट्रंप बार-बार बोलते रहे हैं कि मेरे राष्ट्रपति बनते ही उक्रेन-रसिया युद्ध खत्म हो जाएगा,पर ऐसा नही हुआ, इस प्रक्रिया में उन्होंने उक्रेन के राष्ट्रपति को भी अपमानित करने की कोशिश की,पर उन्होंने पहले तो अपमान सहने से इंकार कर दिया,पर थोड़ा पीछे हट गए, फिर रूस अड़ गया, उसने ढ़ेर सारी शर्तें लगा दी,जो उक्रेन को स्वीकार नही थी,सो मामला फिर से फंस गया,मसला हल होते-होते रह गया, इससे वैश्विक स्तर पर अमेरिकी राष्ट्रपति की छवि को बड़ा धक्का लगा,ऐसे में डैमेज कंट्रोल की रणनीति के रास्ते पर अमेरिका को बढ़ना पड़ा.

भारत-पाक युद्ध ने ये मौका दे दिया,इसी लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-पाक युद्ध ख़त्म कराने का श्रेय लेने का वैश्विक स्तर पर अभियान छेड़ दिया है.इस मसले पर वो अतिरिक्त सक्रियता दिखाने लगे,दुनिया व अपने देश को बार-बार संदेश देने लगे कि देखो मैंने एक युद्ध खत्म कर दिया.मैने जो वादा किया था उसी रास्ते पर बढ़ रहा हूं,और ये सब मैं अमेरिका के लिए, व्यापार के लिए कर रहा हूं, हालांकि अभी भी समस्या ये है कि उनकी बात को ठीक से न रूस सुन रहा है न उक्रेन और न ही इसराइल.सो कितना डैमेज कंट्रोल हुआ ये अभी देखना बाकी है.

ट्रंप इस लिए भी भारत को टारगेट कर रहे हैं,क्यों कि उनकी मंशा ये भी है कि भारत बिना किसी किंतु-परंतु के अमेरिकी लॉबी का हिस्सा बन जाए,वह अपनी पुरानी सापेक्षिक स्वतंत्र छवि से बाहर आ आए,पर भारत की अपनी घरेलू व वैश्विक छवि के चलते यह सब खुलेआम संभव नही हो पा रहा है.हालांकि भारत ने अपनी नीति शिफ्ट तो कर ली है,जो अमेरिकी-इजराइल धुरी की ओर झुका हुआ है,पर अमेरिका इससे ज़्यादा चाहता है.इन ख़ास परिस्थितियों के चलते भी भारत पर हमला बोला जा रहा है जिसका अभी भी कोई मुकम्मल जबाब देता हुआ भारत,नही दिख रहा है.

(लेखक पोलिटिकल एक्टिविस्ट और कम्युनिस्ट फ्रंट के संयोजक हैं और ये उनके निजी विचार हैं )

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