भारत में जातिगत अत्याचार—1996 की ये UN रिपोर्ट आज भी प्रासंगिक, जानिए 28 साल बाद अचानक क्यों बनी चर्चा का विषय?

04:49 PM Feb 06, 2025 | Geetha Sunil Pillai

नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट दलित एडवोकेट्स एसोसिएशन के संयोजक एडवोकेट आनंद एस. जोंधले ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को लागू करने की मांग की है।

1996 में संयुक्त राष्ट्र की नस्लीय भेदभाव समिति (CERD) ने कहा था कि भारत में ऊंची और नीची जाति की सोच को खत्म करने के लिए एक बड़े स्तर पर शिक्षा अभियान की जरूरत है। कानूनी सुरक्षा होने के बावजूद दलितों पर अत्याचार जारी हैं।

जोंधले ने राष्ट्रपति से एक विशेष समिति (high powered committee) बनाने की मांग की है, जिसमें दलित कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ शामिल हों। यह समिति समाज के हर स्तर पर जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने की रणनीति बनाएगी।

जोंधले ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का 49वां सत्र, जो 17.09.1996 को आयोजित हुआ था, में नस्लीय भेदभाव उन्मूलन समिति ने अपने निष्कर्ष में कहा कि समिति भारतीय जनता को मानवाधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए एक निरंतर अभियान की सिफारिश करती है।

यह अभियान भारत के संविधान और सार्वभौमिक मानवाधिकार साधनों के अनुरूप होना चाहिए, जिसमें सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी शामिल है। इसका उद्देश्य उच्च जाति और निम्न जाति की संस्थागत सोच को समाप्त करना होना चाहिए।

द मूकनायक से बातचीत में जोंधले ने कहा, "वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों के बावजूद, जिनका उद्देश्य भारत में उच्च जाति और निम्न जाति की संस्थागत सोच को समाप्त करना था, आज भी हर दिन दलित अत्याचार के सैकड़ों मामले सामने आ रहे हैं। भारतीय समाज से जातिवाद को समाप्त करने के तरीके और साधन खोजने के लिए दलित कार्यकर्ताओं/दलित अधिवक्ताओं को शामिल करते हुए एक हाई पॉवर कमेटी के गठन की मांग की गई है।"

28 साल पहले संयुक्त राष्ट्र की समिति द्वारा व्यक्त की गई प्रमुख चिंताएं

संयुक्त राष्ट्र ने 17 सितंबर 1996 को जारी रिपोर्ट में कई गंभीर मुद्दे उठाए थे। कमेटी ने कहा कि जाति-आधारित हिंसा और भेदभाव अभी भी जारी है। दलितों और आदिवासियों की रक्षा के कानूनों का सही से पालन नहीं होता। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सेना से जुड़े मामलों की जांच की इजाजत नहीं है। दलितों पर सामूहिक हिंसा, सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक भेदभाव होता है। शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में भी उनके साथ भेदभाव किया जाता है। सबसे दुखद बात यह है कि जाति-आधारित अपराधों के दोषियों को सजा नहीं मिलती।

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए संवैधानिक प्रावधान और कानूनी व्यवस्था होने के बावजूद, दलितों के साथ व्यापक भेदभाव जारी है। दलितों को अक्सर सार्वजनिक कुओं के इस्तेमाल से रोका जाता है, कैफे या रेस्तरां में जाने से मना किया जाता है, और उनके बच्चों को स्कूलों में अलग किया जाता है।"

  1. समिति ने स्पष्ट किया कि जाति व्यवस्था भी भेदभाव के दायरे में आती है। समिति को गंभीर चिंता है कि भारत सरकार इस पर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने को तैयार नहीं है।

  2. कश्मीरियों और अन्य समूहों के साथ उनकी जातीय या राष्ट्रीय पहचान के कारण समझौते के बुनियादी प्रावधानों के विपरीत व्यवहार किया जाता है।

  3. मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 19 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सशस्त्र बलों से जुड़े दुरुपयोग की शिकायतों की सीधी जांच से रोकती है। यह सेना के सदस्यों के लिए दंडमुक्ति का माहौल बनाता है।

  4. अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग और अल्पसंख्यक आयोग के कार्यों और गतिविधियों के बारे में जानकारी का अभाव है। इससे यह आकलन करना मुश्किल है कि ये आयोग कितने प्रभावी हैं।

  5. जाति, रंग, वंश या राष्ट्रीय/जातीय मूल के आधार पर भेदभाव के कई मामले सामने आते हैं, लेकिन अदालतों में ऐसा कोई मामला नहीं आया है। यह चिंता का विषय है कि क्या लोगों को अपने अधिकारों की जानकारी है।

  6. कुछ अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यापक हिंसा चरमपंथी संगठनों द्वारा की जाती है, जिन्हें अवैध घोषित नहीं किया गया है।

  7. कुछ समुदायों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है।

  8. नस्लीय भेदभाव के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट मुआवजा दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।

समिति ने इन चिंताओं के साथ-साथ कुछ सकारात्मक पहलुओं को भी नोट किया है, जैसे मानवाधिकार आयोग की स्थापना, मीडिया की स्वतंत्रता, और जनहित याचिका की व्यवस्था। लेकिन ये चिंताएं दर्शाती हैं कि भेदभाव को खत्म करने के लिए और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा भारत के लिए की गई प्रमुख सिफारिशें

मौलिक अधिकारों की गारंटी

समिति ने सिफारिश की कि भारत सरकार सभी समूहों, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को उनके नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों का पूर्ण लाभ सुनिश्चित करने के प्रयासों को जारी रखे और मजबूत करे।

भेदभाव रोकने के विशेष उपाय

  • अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के साथ भेदभाव रोकने के लिए विशेष कदम उठाए जाएं

  • भेदभाव के मामलों में गहन जांच की जाए

  • दोषियों को दंडित किया जाए

  • पीड़ितों को उचित मुआवजा दिया जाए

  • स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक स्थानों (जैसे कुएं, कैफे, रेस्तरां) तक समान पहुंच सुनिश्चित की जाए

मानवाधिकार आयोग की शक्तियां

  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 19 को हटाया जाए, ताकि सशस्त्र बलों द्वारा किए गए दुरुपयोग की जांच की जा सके

  • एक साल से पुराने नस्लीय भेदभाव के मामलों की भी जांच की जा सके

  1. राष्ट्रीय आयोगों की जानकारी अगली रिपोर्ट में अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग और अल्पसंख्यक आयोग के अधिकारों, कार्यों और उनके प्रभावी क्रियान्वयन की जानकारी दी जाए।

  2. कानूनी प्रावधानों का क्रियान्वयन अगली रिपोर्ट में नस्लीय भेदभाव को रोकने वाले कानूनी प्रावधानों के क्रियान्वयन की जानकारी दी जाए, जिसमें दर्ज शिकायतों और सजा की संख्या शामिल हो।

  3. जन-जागरूकता अभियान

  • मानवाधिकारों पर भारतीय जनता को शिक्षित करने का अभियान जारी रखा जाए

  • यह अभियान भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार साधनों के अनुरूप हो

  • इसका उद्देश्य ऊंची और नीची जाति की संस्थागत सोच को समाप्त करना हो

  1. न्यायिक सहायता जाति या जनजाति के आधार पर भेदभाव सहित नस्लीय भेदभाव से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अदालतों से न्याय पाना आसान बनाया जाए।

  2. रिपोर्ट का प्रचार-प्रसार भारत सरकार अपनी रिपोर्ट और इन निष्कर्षों का व्यापक प्रचार-प्रसार करे, जहां तक संभव हो आधिकारिक और राज्य भाषाओं में।

कानूनी सुरक्षा होने के बावजूद, भारत में लाखों दलितों के लिए जाति-आधारित हिंसा एक कड़वी सच्चाई है। जोंधले ने सरकार से कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि भेदभाव-विरोधी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। पूरे देश में जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाए। नीति बनाने वाली संस्थाओं में दलितों की उचित भागीदारी सुनिश्चित की जाए। दलित पीड़ितों के लिए कानूनी मदद और सहायता बढ़ाई जाए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के साथ मिलकर काम किया जाए।