'सिर्फ कुर्सी नहीं, सवाल है इंसाफ का'— जानिए आंध्र के वेटरनरी विवि में एक दलित प्रोफेसर की 'समान काम का समान वेतन' अधिकार के लिए 20 वर्षों की जद्दोजहद!

04:29 PM Jun 27, 2025 | Geetha Sunil Pillai

तिरुपति- 20 जून को श्री वेंकटेश्वर वेटरनरी यूनिवर्सिटी (SVVU) के डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज से एक तस्वीर सामने आई, जिसने भारतीय शिक्षण संस्थानों में गहराई तक जड़ जमाए जातिगत भेदभाव को एक बार फिर उजागर कर दिया। तस्वीर में दलित सहायक प्रोफेसर डॉ. रवि वर्मा को अपने ऑफिस के फर्श पर बैठकर कंप्यूटर पर काम करते हुए देखा गया, क्योंकि उनकी कुर्सी को एसोसिएट डीन रविंद्र रेड्डी द्वारा हटा दिया गया था।

पिछले 20 साल से इस संस्थान में सम्मान, समान वेतन और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे डॉ. रवि के लिए यह घटना महज एक और अपमान है। उन्हें कोर्ट के आदेश, यूजीसी नियम और यहां तक कि भारत के राष्ट्रपति तक के हस्तक्षेप के बावजूद उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है।

दो दशकों से चल रहा भेदभाव का सिलसिला

संस्थागत उत्पीडन का दौर और संघर्ष डॉ. रवि के लिए 2005 से शुरू हुआ , जब उन्हें डेयरी टेक्नोलॉजी विभाग में एक अनुबंधित सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। स्थायी प्रोफेसर्स के समान काम करने के बावजूद उन्हें उनके वेतन का एक अंश ही मिलता था, और हर छह महीने में उनका कॉन्ट्रैक्ट 2-3 दिन के ब्रेक के साथ नवीनीकृत किया जाता था—यह एक ऐसी रणनीति थी जो अनुबंधित कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा देने से बचने के लिए अपनाई जाती है।

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2010 में, यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) ने नियम बनाया कि अनुबंधित शिक्षकों को "समान काम के लिए समान वेतन" मिलना चाहिए। जब एसवीवीयू ने इसकी अनदेखी की, तो डॉ. रवि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट पहुंचे। यूनिवर्सिटी ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देशों के जवाब में कहा कि वर्मा यूजीसी द्वारा सुझाए गए वेतन के हकदार नहीं हैं, क्योंकि उनका चयन चयन समिति द्वारा नहीं किया गया था और उनके पास यूजीसी द्वारा आवश्यक NET योग्यता भी नहीं है।

यह बयान विश्वविद्यालय के 2012 और 2013 के कार्यों के विपरीत है, जब NET योग्यता को छूट देकर चयन किया गया था और यूजीसी द्वारा सुझाए गए नियमित वेतनमान दिए गए थे। आज भी 5 सहायक प्रोफेसर ऐसे हैं जिनके पास NET की न्यूनतम आवश्यक योग्यता नहीं है, लेकिन उन्हें पूरे भत्तों सहित नियमित वेतनमान का लाभ मिल रहा है।

आरटीआई दस्तावेजों से पता चलता है कि 2012-2013 के बीच, एसवीवीयू ने 150 से अधिक फैकल्टी सदस्यों को NET योग्यता के बिना नियुक्त किया था, जिन सभी को पूर्ण वेतन और पदोन्नति मिली। इसके विपरीत, डॉ. रवि सुप्रीम कोर्ट के 2016 के "समान कार्य के लिए समान वेतन" के फैसले और एपी एससी/एसटी आयोग के बार-बार के आदेशों के बावजूद - अनुबंधात्मक सीमित स्थिति में ही अटके रहे।

कोर्ट के आदेश के बावजूद विवि ने अनुपालना नहीं की जिसके बाद डॉ. वर्मा ने कोर्ट की अवमानना की याचिका भी प्रस्तुत की जिसपर सुनवाई जारी है।

अक्टूबर 2024 में, डॉ. रवि ने वाइस चांसलर से मुलाकात की और अपनी समस्याओं से अवगत कराया। VC ने न्याय दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

डॉ. रवि के फर्श पर बैठकर काम करने की घटना ने ऐतिहासिक जातिगत भेदभाव की याद दिला दी, जहां दलितों को बुनियादी सम्मान से भी वंचित रखा जाता था। उन्होंने यह कदम संस्थान की नीतियों के विरोध स्वरुप उठाया।

यूनिवर्सिटी सूत्रों के अनुसार, HoD ने नई कुर्सियों की आपूर्ति प्राप्त की थी और डॉ. रवि को एक कुर्सी दी गई थी, लेकिन 19 जून को जब वह एक दिन की छुट्टी पर थे, तो एसोसिएट डीन डॉ. रेड्डी ने यह कहते हुए कि यह दूसरे विभाग के लिए है, कुर्सी हटा दी । अगले दिन HoD ने एक विजिटर चेयर डॉ. रवि के ऑफिस में रख दी, लेकिन जब वह लौटे, तो उन्होंने इस अपमान के विरोध में फर्श पर बैठकर काम करना शुरू कर दिया। मामला तब तक बढ़ता गया जब तक कि VC और प्रिंसिपल ने हस्तक्षेप कर मध्यस्थता नहीं की। सूत्रों का कहना है कि डॉ. रेड्डी ने माफी मांगी, लेकिन यह पुष्टि नहीं हो पाई है।

कुछ फैकल्टी सदस्यों का मानना है कि डॉ. रवि की कुर्सी हटाना एक जानबूझकर किया गया काम था, खासकर उनके समान वेतन के 20 साल के संघर्ष और न्यायिक आदेशों की अवहेलना के लिए विश्वविद्यालय के खिलाफ लंबित अवमानना कार्यवाही को देखते हुए, यह विवि प्रशासन द्वारा उनके खिलाफ किया गया लक्षित हमला था।

सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल हुई तो बहुजन संगठनों ने पुरजोर विरोध किया। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर सवाल उठाते हुए पूछा, "आपकी सरकार में एक दलित प्रोफेसर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है?"

यूनिवर्सिटी के टालमटोल रवैये और कोर्ट के आदेश की पालना नहीं किये जाने से दुखी होकर डॉ. रवि ने 23 मई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र भी लिखा है जिसमें उन्होंने अपने 20 साल के संघर्ष का विवरण दिया। उन्होंने बताया कि कैसे यूनिवर्सिटी के कंट्रोलर ने 2020 में कोर्ट के आदेशानुसार 2014 से अरियर्स देने की सिफारिश की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

उन्होंने लिखा "मैं आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं हूं कि लगातार लड़ता रहूं" और यह बताया कि कैसे यह सिस्टम हाशिए और वंचित समुदाय के शिक्षाविदों को कानूनी लड़ाई में उलझाकर उनके संसाधन खत्म कर देता है।

The Mooknayak ने इस प्रकरण को लेकर VC और रजिस्ट्रार से यूनिवर्सिटी की कोर्ट आदेशों की अवहेलना पर प्रतिक्रिया मांगी है। उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी।