भोपाल। मध्य प्रदेश के भिंड जिले में पत्रकारिता और लोकतंत्र की आत्मा को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। जिले के करीब आठ पत्रकारों को पुलिसकर्मियों ने एसपी ऑफिस में खूब पीटा। इनमें दो पत्रकार – शशिकांत गोयल और अमरकांत चौहान – के साथ पुलिसकर्मियों ने सिर्फ इसलिए मारपीट की क्योंकि वे पुलिस प्रशासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखते थे। इनमें से एक पत्रकार, शशिकांत गोयल, दलित समुदाय से आते हैं, और उन्होंने आरोप लगाया है कि उनका नाम और जाति पूछने के बाद उन्हें चप्पलों से पीटा गया। यह सब पुलिस अधीक्षक (SP) डॉ. असित यादव की मौजूदगी में हुआ।
"नाम क्या है?" – और फिर शुरू हुई चप्पलों से पिटाई
शशिकांत गोयल ने बताया कि उन्हें 1 मई को एसपी असित यादव के ऑफिस बुलाया गया था। वहां पहुँचते ही एसआई गिरीश शर्मा और सत्यबीर सिंह ने उनका नाम पूछा। उन्होंने जैसे ही अपना नाम शशिकांत गोयल जाटव बताया, दोनों पुलिसकर्मियों ने गाल पर चप्पलों से मारना शुरू कर दिया। शशिकांत ने कहा, “मैंने पूछा सर क्यों मार रहे हो, मेरी गलती क्या है? तो उन्होंने जवाब दिया – तू बहुत लिखने लगा है पुलिस के खिलाफ।
उन्होंने यह भी बताया कि उनसे जबरन "जी सर" कहने को कहा गया। जब उन्होंने सवाल किया कि "सर जी" और "जी सर" में क्या फर्क है, तो उन्हें एसपी के सामने फिर से पीटा गया और जातिसूचक गालियाँ दी गईं।
"चाय पर बुलाया, और फिर पीट दिया" – अमरकांत चौहान की आपबीती
पत्रकार अमरकांत चौहान ने द मूकनायक से कहा कि उन्हें भी 1 मई की शाम एसपी कार्यालय से कॉल आया था। फोन पर कहा गया कि "चाय पर चर्चा" करनी है। वह लगभग शाम 5 बजे एसपी दफ्तर पहुँचे, यहाँ उनका पहले फोन छीन लिया गया। और फिर पीछे से लात मारी गई फिर पुलिसकर्मियों ने बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया।
“मैं गिर पड़ा था, लेकिन एसपी साहब खड़े होकर सब देख रहे थे। किसी ने नहीं रोका। मुझे गंदी-गंदी गालियाँ दी गईं और कहा गया कि भाग यहाँ से, बहुत पत्रकार बन रहा है,” अमरकांत ने बताया।
रात को घर पहुँची पुलिस, वीडियो डिलीट कराने का दबाव
अमरकांत ने बताया कि रात करीब 10 बजे पुलिस उनके घर पहुँच गई। पुलिसकर्मियों ने धमकाया कि जो वीडियो उन्होंने मारपीट के बाद बनाया है, वह फर्जी है और उसे डिलीट कर दें। उन्हें कहा गया कि कोई घटना हुई ही नहीं। और पुलिस ने दवाब डाल के एक वीडियो भी बनाया।
अमरकांत ने कहा, "हमें अपनी जान का खतरा लगने लगा। इसलिए रात 12 बजे हम ट्रक पकड़कर ग्वालियर पहुँचे और वहाँ से ट्रेन से भोपाल के लिए रवाना हो गए।"
भोपाल में उच्च अधिकारियों से मुलाकात, कार्रवाई की मांग
भोपाल पहुँचने के बाद पीड़ित पत्रकारों ने रॉयल प्रेस क्लब के अध्यक्ष पंकज भदौरिया और संयुक्त सचिव अंकित पचौरी के साथ मिलकर पुलिस महानिदेशक (DGP) को ज्ञापन सौंपा और इंटेलिजेंस एडीजी ए. साईं मनोहर से मुलाकात की।
पत्रकारों ने विस्तार से पूरी घटना बताई और मांग की कि पुलिस अधीक्षक असित यादव, एसआई गिरीश शर्मा और सत्यबीर सिंह को तुरंत पद से हटाया जाए और उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
इंटेलिजेंस एडीजी ने पत्रकारों को आश्वस्त किया कि मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, “पत्रकारों की स्वतंत्रता और सुरक्षा सर्वोपरि है और विभाग इस पर गंभीरता से काम करेगा।”
पत्रकार संगठनों का विरोध, लोकतंत्र पर हमला बताया
रॉयल प्रेस क्लब के अध्यक्ष पंकज भदौरिया ने घटना की तीव्र निंदा करते हुए कहा, “यह सिर्फ दो पत्रकारों पर हमला नहीं है, यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला है। अगर पुलिस ही सवाल पूछने वालों की आवाज दबाएगी, तो समाज कहाँ जाएगा?”
उन्होंने मांग की कि –
एसपी असित यादव को तत्काल निलंबित किया जाए,
एसआई गिरीश शर्मा और सत्यबीर सिंह के खिलाफ FIR दर्ज कर गिरफ्तारी की जाए,
पीड़ित पत्रकारों को सुरक्षा दी जाए।
कांग्रेस ने बताया लोकतंत्र की हत्या
भिंड के पत्रकारों के साथ हुई बर्बरता पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह घटना सिर्फ पत्रकारों पर हमला नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की सीधी हत्या है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस सत्ता के दबाव में काम कर रही है और निष्पक्ष पत्रकारिता को कुचला जा रहा है। जीतू पटवारी ने कहा कि कांग्रेस इस घटना के खिलाफ सड़क से सदन तक संघर्ष करेगी।
नेता प्रतिपक्ष ने डीजीपी को लिखी चिट्ठी
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने द मूकनायक से बात करते हुए बताया कि उन्होंने इस घटना के बाद प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा है और निष्पक्ष जांच की मांग की है। उमंग सिंघार ने कहा कि वे इस मुद्दे को विधानसभा में जोरशोर से उठाएंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा, "पत्रकारों पर हमला किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह लोकतंत्र की नींव पर हमला है, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।"
एसपी ने आरोपों को बताया बेबुनियाद
पत्रकारों से मारपीट के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए भिंड के पुलिस अधीक्षक असित यादव ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं है। उन्होंने कहा, "जो लोग आरोप लगा रहे हैं, वे पहले भी इसी मामले में शिकायत देकर वापस ले चुके हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने स्वयं वीडियो बनाकर यह भी कहा था कि कोई मारपीट नहीं हुई है। अब वे भोपाल जाकर क्यों ऐसे आरोप लगा रहे हैं, यह समझ से परे है। सभी आरोप पूरी तरह से निराधार हैं।"
क्या यह घटना SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं?
चूंकि पीड़ित पत्रकार शशिकांत गोयल दलित समुदाय से हैं, और उनके साथ मारपीट और गाली-गलौच उनकी जाति पूछने के बाद हुई, यह घटना अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्पष्ट रूप से अपराध है।
धारा 3(1)(r): सार्वजनिक रूप से जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर अपमान करना – 5 वर्ष तक की सजा।
धारा 3(1)(s): सार्वजनिक स्थल पर अपमानित या अपदस्थ करना – 5 वर्ष तक की सजा।
धारा 3(2)(va): यदि अन्य अपराध जातीय आधार पर किया जाए – सख्त सजा।
पत्रकारों का हौसला नहीं टूटा
हालांकि पीड़ित पत्रकार भयभीत हैं, लेकिन शशिकांत और अमरकांत ने कहा कि वे आवाज उठाना नहीं छोड़ेंगे। “अगर हम चुप रहेंगे, तो यह सिलसिला नहीं रुकेगा। हम कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे और सच्चाई भी लिखते रहेंगे,”
भिंड में एसपी के सामने एक दलित पत्रकार की जाति पूछकर की गई पिटाई ने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पीड़ित पत्रकार का आरोप है कि ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने न केवल उसे जातिगत अपशब्द कहे, बल्कि उसकी पहचान जानकर उसे बेरहमी से पीटा। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी जांच का विषय है कि क्या इस मामले में एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत आरोपी पुलिसकर्मियों और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी?