भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (MCU), भोपाल के छात्रों ने विश्वविद्यालय में दलित समाज से (कुलगुरु) कुलपति नियुक्त किए जाने की मांग की है। इस विषय में छात्रों ने देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर इस मांग को प्राथमिकता देने की अपील की है। छात्रों का कहना है कि इससे विश्वविद्यालय में सामाजिक समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया जा सकेगा।
छात्र तनय शर्मा और अमन पठान ने अलग-अलग पत्रों के माध्यम से अपनी मांग रखी है। छात्रों ने लिखा है कि भारतीय संविधान, जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने गढ़ा था, उनका मुख्य उद्देश्य समाज में समानता स्थापित करना था। उन्होंने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि MCU के इतिहास में अब तक किसी दलित समाज से कुलगुरु (कुलपति) की नियुक्ति नहीं हुई है।
छात्रों का कहना है, “हम चाहते हैं कि इस बार कुलगुरु पद पर दलित समाज से आने वाले किसी योग्य व्यक्ति को नियुक्त किया जाए। इससे यह विश्वविद्यालय बाबा साहब अंबेडकर के सामाजिक समरसता के आदर्शों को आगे बढ़ा सकेगा।”
छात्रों ने विशेष रूप से वंडर बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इंटरनेशनल, लंदन द्वारा सम्मानित अरुण खोबरे को कुलगुरु बनाए जाने की मांग की है। उन्होंने लिखा कि यह निर्णय संविधान की मूल भावना के अनुरूप होगा और विश्वविद्यालय में एक सकारात्मक संदेश देगा।
NSUI का समर्थन
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने भी इस मांग का समर्थन किया है। NSUI के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष चौकसे ने एक वीडियो जारी कर कहा कि भाजपा सरकार लगातार दलित समाज और डॉ. अंबेडकर का अपमान कर रही है।
उन्होंने कहा, “देश के सबसे बड़े पत्रकारिता विश्वविद्यालय में दलित छात्रों और शिक्षकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। इस मांग को पूरा कर भाजपा सरकार को यह दिखाना होगा कि वह सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस और NSUI दलित समाज के अधिकारों की लड़ाई में उनके साथ खड़ी रहेगी।”
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और पत्रकार ऋषभ राज सिंह ने मांग की है कि विश्वविद्यालय में पहली बार दलित समुदाय से कुलगुरु नियुक्त किया जाए। उन्होंने द मूकनायक से कहा कि विश्वविद्यालय के इतिहास में कभी भी दलित कुलगुरु नहीं हुआ है, जो सामाजिक समरसता और समानता के मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि यह समय है कि विश्वविद्यालय नेतृत्व में बदलाव लाकर अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
ऋषभ राज सिंह ने इसे सामाजिक न्याय और समावेशिता से जोड़ते हुए कहा कि जब विश्वविद्यालय एक लोकतांत्रिक देश में संचालित होता है, तो यह जरूरी है कि नेतृत्व में भी समानता दिखे। उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया कि कुलगुरु की नियुक्ति करते समय केवल योग्यता ही नहीं, बल्कि वंचित वर्गों को प्राथमिकता देने पर भी विचार किया जाए। यह कदम विश्वविद्यालय के लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करेगा।
डॉ. अरुण खोबरे, जिनका नाम छात्रों द्वारा कुलगुरु पद के लिए प्रस्तावित किया गया है, ने छात्रों की भावनाओं के प्रति आभार व्यक्त किया है। उन्होंने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “मैं पद की आशा में नहीं हूं। यह छात्रों का विश्वास और प्रेम है जिसने इस मांग को जन्म दिया। मैं उनके विचारों और संवेदनाओं का सम्मान करता हूं। उनका प्रेम-विश्वास मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।”
दलित प्रतिनिधित्व का मुद्दा
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय का नाम स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर रखा गया है। छात्र चाहते हैं कि विश्वविद्यालय उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का काम करे। इस संदर्भ में, कुलगुरु पद पर दलित समाज से प्रतिनिधित्व देने की मांग को एक ऐतिहासिक और आवश्यक कदम माना जा रहा है।
छात्रों ने अपने पत्र में यह भी कहा है कि यह मांग किसी त्वरित भावना का परिणाम नहीं है, बल्कि पत्रकारिता के विद्यार्थी होने के नाते उन्होंने तुलनात्मक दृष्टिकोण से विचार करने के बाद इस मांग को उठाया है।
संघ का अप्रत्यक्ष कब्जा?
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, जिसे 1990 में स्थापित किया गया, भारतीय पत्रकारिता के मूल्यों को सुदृढ़ करने और छात्रों को उत्कृष्ट पत्रकार बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। विश्वविद्यालय को एक स्वायत्त संस्थान के रूप में विकसित किया गया, जहां स्वतंत्रता, निष्पक्षता और बहुलतावाद को बढ़ावा दिया जाए। लेकिन समय के साथ यह संस्थान विवादों में घिरता गया, जिसमें इस पर एक खास विचारधारा के प्रभाव का आरोप लगाया गया।
कई शिक्षाविद और पत्रकार दावा करते हैं कि विश्वविद्यालय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है। इस दावे का आधार है पाठ्यक्रम में बदलाव, नियुक्तियों में कथित पक्षपात, और एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने वाले आयोजनों की बढ़ती संख्या। कुछ रिपोर्टों में यह आरोप लगाया गया कि विश्वविद्यालय में प्रमुख पदों पर संघ से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है, जिससे संस्थान की स्वतंत्रता पर सवाल उठता है। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि वे केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
बीते दिनों माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (MCU) पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से अनुषंगी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के पक्ष में काम करने और एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे। एनएसयूआई (NSUI) ने इन घटनाओं का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर और प्रशासनिक अधिकारी एबीवीपी का समर्थन कर रहे हैं।
9 दिसंबर को विश्वविद्यालय में आयोजित एक सामाजिक समरसता के कार्यक्रम में एबीवीपी की इकाई कार्यकारिणी का गठन किया गया था, जिसमें विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ प्रोफेसरों की भागीदारी रही। इन प्रोफेसरों में कुलसचिव डॉ. अविनाश बाजपेई और प्रोफेसर डॉ. आशीष जोशी प्रमुख हैं। कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर डॉ. परेश उपाध्याय को एबीवीपी का गमछा पहने हुए देखा गया, जिससे विवाद और गहरा गया था। एनएसयूआई ने प्रोफेसर की नेम प्लेट पर कालिख तक पोत दी थी।