दोनों हाथ नहीं, फिर भी पैरों से रच रहा कमाल! जयपुर के दलित बच्चे की संघर्ष कहानी पूरे राजस्थान को हिला रही है..

11:03 AM Jun 02, 2025 | Avinash

नई दिल्ली: राजस्थान को अक्सर सामंती सोच का गढ़ कहा जाता है, लेकिन यहाँ के कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहाँ सामाजिक न्याय, भाईचारा और बदलाव की नई कहानियाँ जन्म ले रही हैं। राजधानी जयपुर, जिसे गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाता है, हमेशा से युवाओं के लिए रोजगार और अवसरों का केंद्र रहा है। इसी जयपुर के शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र के गोविंदपुरा बांसड़ी गाँव से एक होनहार लड़का इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा में है — उसका नाम है विवेक

विवेक साधारण बच्चा नहीं है। वह जन्म से ही दोनों हाथों के बिना है, लेकिन उसकी हिम्मत ने उसे असाधारण बना दिया है। अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी के सभी काम — लिखाई, पढ़ाई, खाना, और अन्य गतिविधियाँ — वह अपने पैरों से करता है। यह सिर्फ उसकी शारीरिक क्षमता की नहीं, बल्कि उसके अदम्य साहस और संघर्ष की कहानी है।

गोविंदपुरा बांसड़ी गाँव एक पिछड़ा इलाका है, जहाँ सड़कें टूटी-फूटी हैं, स्वास्थ्य सेवाएँ नाममात्र की हैं, और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। विवेक के पिता टाइल्स लगाने का काम करते हैं और मज़दूरी से परिवार का गुजारा चलता है। चार भाई-बहनों के इस परिवार की माली हालत कमजोर है। विवेक दलित समुदाय से आते हैं, जिनके पास कोई पारंपरिक या पैतृक ज़मीन-जायदाद नहीं है। उनकी माँ गृहिणी हैं, जो घर संभालती हैं।

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स्कूल के अध्यापक गण विवेक के घर आकर उसे सम्मानित करते हुए.

विवेक के स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि वह बाकी बच्चों से अलग है। स्कूल प्रधान ने बताया,

शाहपुरा विधानसभा के विधायक मनीष यादव, जो सामाजिक न्याय के लिए सक्रिय माने जाते हैं, ने भी विवेक के जज़्बे को सलाम किया है। उन्होंने घोषणा की है कि विवेक की पढ़ाई का पूरा खर्च वे उठाएँगे ताकि वह आगे बढ़ सके और अपनी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल कर सके।

हालांकि, विवेक का संघर्ष सिर्फ उसकी व्यक्तिगत चुनौतियों तक सीमित नहीं है। वह जिस दलित बस्ती में रहता है, वहाँ के लोगों को पानी लाने के लिए रोज़ाना लंबा संघर्ष करना पड़ता है। कई बार महिलाओं को देर रात भी पानी भरने जाना पड़ता है, जिससे खतरे की स्थिति बनी रहती है।

अपने पैर की उँगलियों से कॉपी में लिखता हुआ विवेक.

सिर्फ इतना ही नहीं, हाल ही में विवेक के घर के सामने एक शराब की दुकान खुली है, जिसका स्थानीय समुदाय ने कड़ा विरोध किया है। विवेक की माँ और अन्य लोग मानते हैं कि इससे बस्ती में नशे की समस्या बढ़ेगी, जिससे युवाओं का ध्यान शिक्षा, रोजगार और अपने हक़ों के लिए आवाज़ उठाने से भटक जाएगा। समुदाय को डर है कि इससे उनकी सामाजिक लड़ाई कमजोर होगी और नशे का बढ़ता असर उनकी प्रगति के लिए घातक साबित होगा।

विवेक की कहानी सिर्फ उसकी व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और बदलाव की कहानी भी है। यह कहानी बताती है कि अगर समर्थन और अवसर मिलें, तो सबसे पिछड़े गाँव से भी सितारे चमक सकते हैं।