भोपाल। मध्य प्रदेश में छुआछूत और ऊंच-नीच की पुरानी प्रथाएं आज भी समाज में अपनी जड़ें जमाए हुए हैं, और इसका ताजा उदाहरण छतरपुर जिले के सटई थाना क्षेत्र के अतरार गांव में देखने को मिला। यहां बीते साल 20 अगस्त को एक दलित व्यक्ति द्वारा मंदिर में प्रसाद चढ़ाने और उसे गांव के अन्य लोगों में बांटने पर उनके परिवार और प्रसाद ग्रहण करने वाले पांच अन्य लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।
गांव के सरपंच संतोष तिवारी ने कथित तौर पर यह आदेश दिया कि इन सभी व्यक्तियों को अब किसी भी सामाजिक कार्यक्रम, जैसे शादी, तेरहवीं या चौक में आमंत्रित नहीं किया जाएगा। इसके चलते बहिष्कृत व्यक्तियों को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। पीड़ित दलित परिवार ने इस मामले की शिकायत पुलिस अधीक्षक (एसपी) से की है और कार्रवाई की मांग की है।
मामले की शुरुआत कैसे हुई?
अतरार गांव के जगत अहिरवार ने बताया कि उन्होंने 20 अगस्त को गांव के हनुमान मंदिर में पुजारी के माध्यम से प्रसाद चढ़वाया था। इसके बाद उन्होंने यह प्रसाद गांव के अन्य लोगों में बांट दिया। जब यह बात सरपंच संतोष तिवारी को पता चली, तो उन्होंने न केवल जगत अहिरवार बल्कि प्रसाद ग्रहण करने वाले अन्य लोगों का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
जगत ने बताया, "हमने बस धार्मिक भावनाओं के तहत प्रसाद चढ़ाया और उसे सभी में बांटा। लेकिन हमारे दलित समाज से होने के कारण सरपंच और कुछ अन्य लोगों ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। यह हमारे साथ छुआछूत की प्रथा का खुला प्रदर्शन है।"
जिन्होंने प्रसाद लिया उन्हें भी किया बहिष्कृत
गांव के लगभग 20 लोग, जिन्होंने प्रसाद खाया था, उन्हें भी सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। बहिष्कृत व्यक्तियों का कहना है कि उन्हें अब किसी भी प्रकार के सामाजिक आयोजन में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है।
बहिष्कृत व्यक्ति रमेश कुशवाहा ने कहा, "हमने केवल प्रसाद ग्रहण किया था, लेकिन अब हमें भी सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। यह न केवल हमारे लिए अपमानजनक है, बल्कि हमारे परिवारों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।"
पुलिस ने दर्ज की मामला?
पीड़ित दलित परिवार ने मामले की शिकायत छतरपुर एसपी से की है। पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और जांच शुरू कर दी है। सटई थाना प्रभारी ने बताया, "हमें शिकायत मिली है और हम मामले की जांच कर रहे हैं। दोषी पाए जाने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। समाज में इस तरह की प्रथाएं अस्वीकार्य हैं।"
समझिए क्या है कानून
भारतीय संविधान में छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ कड़े प्रावधान किए गए हैं।
- अनुच्छेद 17: छुआछूत का अंत और इसे किसी भी रूप में बढ़ावा देने पर रोक।
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: इसके तहत किसी भी प्रकार का सामाजिक बहिष्कार या जातिगत उत्पीड़न एक दंडनीय अपराध है।
पीड़ित परिवार और अन्य बहिष्कृत लोग अब पुलिस से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे और इस तरह के अन्याय को सहन नहीं करेंगे। उन्होंने मांग की है कि सरपंच के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
छुआछूत की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण: प्रदीप अहिरवार
मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य एवं एससी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने 'द मूकनायक' से बातचीत करते हुए इस घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में छुआछूत और जातिगत भेदभाव की घटनाएं आम हो गई हैं, जो समाज की गहरी असमानता को उजागर करती हैं।
अहिरवार ने कहा, "छुआछूत दंडनीय अपराध है, लेकिन इसके बावजूद ये घटनाएं हर रोज सामने आती हैं। यह केवल कानून व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की धीमी गति का भी संकेत है। पुलिस को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही सामाजिक चेतना बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास जरूरी हैं।"
उन्होंने सरकार से अपील की कि छुआछूत और जातिगत भेदभाव के मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि समाज को इस कुप्रथा से मुक्त किया जा सके।"