रेप और SC/ST केस की FIR पर अब AI की नजर: मुआवजे के लिए झूठी शिकायत करने वालों को Expose करने का लखनऊ कोर्ट का मास्टरस्ट्रोक!

10:13 AM Aug 22, 2025 | Geetha Sunil Pillai

लखनऊ- उत्तर प्रदेश की राजधानी में एससी/एसटी एक्ट मामलों की विशेष न्यायालय ने एट्रोसिटी और रेप से जुड़े फर्जी मामलों की बढ़ती संख्या पर गहरी चिंता जताते हुए लखनऊ पुलिस को कड़े निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में बार-बार शिकायत करने वालों की पुरानी एफआईआरों का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाए, ताकि फर्जी शिकायतों पर अंकुश लग सके।

यह फैसला वकील परमानंद गुप्ता के मामले में आया, जिन्होंने अपनी पत्नी के संपत्ति विवाद में दो निर्दोष भाइयों को फंसाने के लिए अनुसूचित जाति की एक छात्रा पूजा रावत का इस्तेमाल कर झूठा गैंगरेप का केस दर्ज करवाया था। अदालत ने गुप्ता को उम्रकैद की सजा सुनाई, साथ ही पुलिस और जिला प्रशासन को फर्जी मामलों से निपटने के लिए एआई टूल्स का उपयोग करने की सलाह दी। यह फैसला 19 अगस्त, 2025 को विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने सुनाया जो सुरक्षात्मक कानूनों के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाने का संकेत देता है।

अदालत की चिंता: फर्जी एफआईआरों से न्याय व्यवस्था पर खतरा

अदालत ने अपने फैसले में एससी/एसटी एक्ट और रेप से जुड़े फर्जी मामलों की बाढ़ पर गंभीर चिंता व्यक्त की। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे मामलों में झूठी शिकायतें न केवल निर्दोषों को परेशान करती हैं बल्कि वास्तविक पीड़ितों की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती हैं। फैसले में कोर्ट ने कहा कि, "SC /ST एक्ट इस देश में समाज के ऐसे वर्गों के हित के लिए बनाया गया था, जो जातिगत आधार पर, गैर एससी/एसटी जाति के व्यक्तियों के अत्याचार से पीड़ित होते हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य यह भी था कि ऐसे अनुसूचति जाति / अनुसूचित जनजाति वर्गों के प्रति अत्याचार करने वाले अत्याचारियों को दण्डित किया जाये, जिससे समाज में एससी/एसटी के प्रति अत्याचार समाप्त हो एवं सामाजिक समरसता बढे तथा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित व्यक्ति की गरिमा, भारत वर्ष के सभी व्यक्तियों में, आपस में बंधुता तथा राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को सुनिश्चित किया जा सके। "

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"वहीं पर जब इस अधिनियम का दुरूपयोग परमानन्द गुप्ता जैसे अपराधी करने लगते हैं तो गैर एससी / एसटी वर्ग के सदस्यों, जैसे पिछड़ों एवं सवर्णों के मन में, समाज के एससी/एसटी जाति के व्यक्तियों के विरूद्ध विद्वेष पैदा हो जाता है कि बिना किसी आधार के उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। प्रकारान्तर से दीर्घावधि में अधिनियम का यह दुरूपयोग, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित व्यक्ति की गरिमा, उनमें आपस में बंधुता तथा राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को भी नुकसान पहुंचाता है। इस कारण इस न्यायालय का विचार है कि ऐसे अपराधियों के प्रति जरा भी दया दिखाने की आवश्यकता नहीं है। यदि दूध से भरे महासागर में खट्टे पदार्थों की बूंदों को गिरने से नहीं रोका गया तो वही बूंदे, पूरा महासागर के दूध को खराब एवं नष्ट कर देंगीं। उसी प्रकार यदि परमानन्द गुप्ता जैसे एडवोकेट को बलात्कार, गैंगरेप एवं एस०सी०/एस०टी० ऐक्ट के दुरूपयोग करने से इस न्यायालय, माननीय उच्च एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय तथा बार काउंसिल आफॅ इण्डिया तथा बार काउसिंल आफॅ यू०पी० के द्वारा न्यायालयों में प्रवेश एवं प्रैक्टिस करने से नहीं रोका गया तो भारतीय न्यायपालिका के प्रति, जनता के विश्वास को गंभीर धक्का लगेगा।"

पुरानी शिकायतों का उल्लेख अनिवार्य

फैसले में लखनऊ पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया गया कि बलात्कार, सामूहिक बलात्कार या एससी/एसटी एक्ट के तहत बार-बार शिकायत करने वाले व्यक्ति या महिला की एफआईआर में उनकी पिछली शिकायतों का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाए। अदालत ने कहा कि एफआईआर में टिप्पणी के रूप में लिखा जाए कि शिकायतकर्ता ने कितनी बार ऐसी एफआईआर दर्ज कराई हैं या आईजीआरएस पोर्टल/थाने में आवेदन दिए हैं।

धारा 173(4) बीएनएसएस के तहत न्यायालय के माध्यम से एफआईआर दर्ज कराने के मामलों में भी पुलिस से जानकारी मांगे जाने पर यह सूचना दी जाए। अदालत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स (एआई टूल्स) का उपयोग करने की सलाह दी ताकि फर्जी मामलों की पहचान आसानी से हो सके। यह निर्देश फर्जी एफआईआरों को रोकने और निर्दोषों को बचाने के लिए दिए गए हैं।

राहत राशि पर अंकुश: फर्जी मामलों में मुआवजा रोकने के आदेश

अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ को निर्देश दिया कि पूजा रावत को क्राइम नंबर 40/2025 में दी गई कोई भी राहत राशि तत्काल वापस ली जाए। फैसले में कहा गया कि एससी/एसटी रूल्स 1995 के तहत राहत राशि (10% से 25% एफआईआर स्तर पर और 50% आरोप पत्र पर) अब एकमुश्त आरोप पत्र आने पर ही दी जाए, न कि मात्र एफआईआर दर्ज होने पर।

अदालत ने कहा: "करदाताओं से प्राप्त बहुमूल्य धन एवं करों (Tax payer's hard earned money) की धनराशि को झूठी FIR लिखवाने वाले शरारती तत्वों को राहत राशि / प्रतिकर के रूप में दिलवाया जाये। अनुसूची संलग्नक-1 में जो राहत राशि के प्रावधान किये गये है वे प्रथम दृष्टया मामला बनने पर, एक श्रेणीबद्ध एवं चरणबद्ध रूप मे इसलिए दिये गये है कि अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को एकमुश्त रकम दे दिये जाने पर, अत्याचार करने वाले अभियुक्तों द्वारा कहीं राहत राशि के कारण ही एससी/एसटी ऐक्ट का वह पीड़ित, कदाचित फिर किसी अन्य अपराध या हिंसा का शिकार न हो जाये। इस कारण एससी/एसटी ऐक्ट की धारा 15क (7) के अधीन विहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिलाधिकारी, लखनऊ को निर्देशित किया जाता है कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण रूल्स 1995 के अधीन राहत राशि के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराये जाने पर, जो राहत राशि क्रमशः (10 प्रतिशत से लेकर 25 प्रतिशत) एवं आरोप पत्र प्रेषित किये जाने के स्तर पर 50 प्रतिशत की पीड़ित को उपलब्ध करायी जाती है वह समस्त धनराशि एकमुश्त, आरोप पत्र प्रेषित किये जाने के स्तर पर ही प्रदान की जाये, मात्र FIR दर्ज किये जाने के स्तर पर ही नहीं दिया जाये।

FIR दर्ज कराने के स्तर पर ऐसी राहत राशि दे दिये जाने पर विशेष अधिनियम SC/ST एक्ट के प्रावधानों का दुरूपयोग करते हुए, फर्जी FIR दर्ज कराये जाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। आरोप पत्र के पूर्व मात्र चिकित्सीय, खाद्य या SC/ST अधिनियम की धारा 15क (11) के अनुसार अत्याचार से पीड़ितों और उनके आश्रितों को वस्तु, खाद्य, जल, कपड़े, आश्रय, चिकित्सीय सहायता, परिवहन सुविधा, भरण पोषण, सुरक्षा आदि के मदद में ही सहायता दी जाये। FIR दर्ज होने के स्तर पर नगद सहायता उपलब्ध कराने से रोकने पर, विधि के दुरूपयोग करने वालों द्वारा फर्जी एफआईआर दर्ज कराने एवं निर्दोषों को फंसाये जाने तथा SC/ST ऐक्ट के अंतर्गत अत्यधिक वादों के लंबित होने की समस्या पर अंकुश लगाया जा सकेगा। जिन मामलों में FIR दर्ज करने के बाद विवेचक के द्वारा विवेचना के उपरांत, प्रथम दृष्टया मामला न बनने के कारण अंतिम रिपोर्ट (एफआर) प्रेषित कर दी गयी हो, उन मामलों में पीड़ित को तब तक कोई प्रतिकर न दिया जाये जब तक कि वादी को सुनकर न्यायालय, विपक्षी को अभियुक्त के रूप में विचारण हेतु तलब न कर ले। यदि अंतिम रिपोर्ट स्वीकार कर ली जाती है तो मात्र एफआईआर दर्ज कराये जाने के कारण पीड़ित को कोई प्रतिकर न दिया जाये, जिससे इस एक्ट को अक्षरशः एवं शब्दशः उसकी मूल भावना (In true letters and spirit) के अनुसार लागू किया जा सके।"

यह निर्देश फर्जी मामलों में मुआवजे के दुरुपयोग को रोकने के लिए हैं, क्योंकि ऐसे मामलों में राहत राशि ही मुख्य प्रलोभन बन जाती है।

परमानंद गुप्ता केस झूठे केसों के लिए नज़ीर

परमानंद गुप्ता ने पूजा रावत के नाम से 30 से ज्यादा फर्जी मामले दर्ज करवाए, जिसमें एससी/एसटी एक्ट और रेप की धाराओं का दुरुपयोग किया। पूजा ने गवाही दी कि गुप्ता ने उसके दस्तावेजों का इस्तेमाल कर झूठे केस बनाए और सरकारी मुआवजे का हिस्सा देने का वादा किया। अदालत ने गुप्ता के 18 व्यक्तिगत मामलों का भी उल्लेख किया, जहां उन्होंने खुद पर हमले का आरोप लगाकर केस दर्ज करवाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुप्ता के 11 मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया: "शिकायतकर्ता और उनके वकील मिलीभगत में हैं... गंभीर अपराधों के लिए झूठी एफआईआर दर्ज कर केवल पैसे वसूलने के लिए।" अदालत ने गुप्ता को "न्याय व्यवस्था का दाग" बताते हुए कहा कि ऐसे वकील बार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाते हैं। फैसले में कहा गया कि गुप्ता ने पूजा को दबाव में रखकर कई दुश्मनों को फंसाया, जिससे सामाजिक विद्वेष बढ़ा। अदालत ने यूपी बार काउंसिल को गुप्ता को प्रैक्टिस से रोकने का निर्देश दिया। यह फैसला फर्जी मामलों की बाढ़ पर अंकुश लगाने का प्रयास है, जो न्याय व्यवस्था को कमजोर कर रही है।