कुदलीगी/होसपेटे: इतिहास में पहली बार, कुदलीगी तालुक के कल्लाहल्ली गुल्लारहट्टी गांव ने दलित समुदाय के व्यक्ति को गांव में प्रवेश की अनुमति दी है। आज़ादी के बाद से चली आ रही यह पाबंदी विधायक एन.टी. श्रीनिवास और तालुक प्रशासन के प्रयासों से टूटी है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह गांव, जो मुख्य रूप से यादव समुदाय के लगभग 130 घरों से बसा है, पीढ़ियों से दलितों के प्रवेश पर रोक लगाए हुए था। ग्रामीणों का मानना था कि दलितों का गांव में प्रवेश अशुभ होगा। हाल ही में, जब एक दलित सरकारी अधिकारी सर्वे के लिए गांव पहुंचे, तो उन्हें भी अंदर आने से रोक दिया गया।
इस घटना की जानकारी मिलने पर तहसीलदार वी.के. नेत्रवती अपने स्टाफ के साथ गांव पहुंचीं और ग्रामीणों को ऐसे अंधविश्वासी और असंवैधानिक रीति-रिवाज छोड़ने की सख्त चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “हमने ग्रामीणों को संविधान में दिए गए प्रावधानों और ऐसे भेदभाव के कानूनी परिणामों के बारे में बताया। इसके बाद ग्रामीणों ने दलित युवाओं और अन्य लोगों का स्वागत करने पर सहमति जताई।”
गांव में दलितों के प्रवेश पर रोक के अलावा, यहां मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अलग झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर करने की भी प्रथा रही है।
विधायक श्रीनिवास ने इस बदलाव को सराहते हुए कहा, “चाहे जानबूझकर या अनजाने में, भेदभावपूर्ण परंपराएं संविधान के खिलाफ हैं। दलितों का स्वागत करने का निर्णय विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है।”
कल्लाहल्ली गुल्लारहट्टी का यह फैसला बल्लारी ज़िले के उन गांवों की सूची में एक नया नाम जोड़ता है, जो जातीय भेदभाव की दीवारें गिराकर बराबरी की ओर बढ़ रहे हैं।