भर्तियों में SC/ST शुल्क छूट पर सुप्रीम कोर्ट और रेलवे भर्ती बोर्ड भी कटघरे में—क्या यह सरकारी दिशानिर्देशों की अवहेलना नहीं?

06:00 AM Feb 09, 2025 | Geetha Sunil Pillai

नई दिल्ली - BHEL और RITES लिमिटेड के बाद अब सुप्रीम कोर्ट और रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB) द्वारा की जा रही भर्तियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) उम्मीदवारों से आवेदन शुल्क लेने का नया विवाद सामने आया है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद इन उम्मीदवारों को परीक्षा शुल्क से छूट नहीं दी गयी है। बहुजन बुद्धिजीवियों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस कदम की कड़ी निंदा करते हुए इसे सरकार की नीतियों का खुला उल्लंघन बताया है, जो हाशिए पर मौजूद समुदायों को समान अवसर देने के लिए बनाई गई थीं।

गौरतलब है कि "क्या PSU भर्ती प्रक्रिया SC-ST उम्मीदवारों को बाहर रखने के लिए बनाई गई है?" शीर्षक से 5 फरवरी को द मूकनायक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद RITES लिमिटेड (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस) ने अपनी आवेदन शुल्क नीति की समीक्षा की।

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RITES Ltd ने घोषणा की कि SC/ST और PwBD (दिव्यांग) उम्मीदवारों से लिया गया आवेदन शुल्क वापस किया जाएगा, बशर्ते वे लिखित परीक्षा या साक्षात्कार में शामिल हों। इस बारे में जल्द ही एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट और रेलवे भर्ती प्रक्रिया पर विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने 4 फरवरी को भर्ती विज्ञापन (No. F.6/2025-SC (RC)) जारी किया, जिसमें जूनियर कोर्ट असिस्टेंट (Group 'B' Non-Gazetted) के 241 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए। लेकिन विज्ञापन में SC/ST/पूर्व सैनिक/दिव्यांग/स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ₹250 (बैंक शुल्क अतिरिक्त) का गैर-वापसी योग्य (non-refundable) आवेदन शुल्क रखा गया है।

यह नियम DoPT के 1 जुलाई 1985 के आदेश (संख्या 36011/3/84-Estt. (SCT)) का उल्लंघन करता है, जिसमें स्पष्ट रूप से SC/ST उम्मीदवारों को परीक्षा शुल्क से छूट दी गई है।

रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB) ने 11,250 टिकट कलेक्टरों की भर्ती के लिए भी SC/ST/PwD उम्मीदवारों से ₹250 शुल्क वसूलने का प्रावधान किया है। यह भर्ती प्रक्रिया जनवरी 2025 में शुरू हुई, और इसे लेकर भी कड़ा विरोध हो रहा है।

क्या कहता है 1 जुलाई 1985 का परिपत्र ?

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) का ओ.एम. संख्या 36011/3/84-Estt. (SCT), दिनांक 1 जुलाई 1985, एससी/एसटी उम्मीदवारों को भर्ती परीक्षा या चयन प्रक्रिया से संबंधित सभी प्रकार की फीस से छूट प्रदान करने का निर्देश देता है। यह आदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग की 1979-80 की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों के आधार पर लागू किया गया था।

इस मेमोरेंडम के अनुसार, सभी मंत्रालयों और विभागों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन हो।

आदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग की 1979-80 की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों के आधार पर लागू किया गया था।

द मूकनायक से बातचीत में पटना के इंजीनियरिंग छात्र शुभम कुमार ने सवाल उठाया कि क्या नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ऐसे उल्लंघनों को चुनौती देने का अधिकार है? शुभम ने कहा, "क्या हम वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने में सक्षम हैं, जो खुलेआम DoPT दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं? जब खुद न्यायपालिका इन प्रावधानों की अनदेखी कर रही है, तो फिर हमें न्याय की क्या उम्मीद रखनी चाहिए?"

सुप्रीम कोर्ट दलित अधिवक्ता संघ के संयोजक आनंद एस. झोंडाले ने SC/ST उम्मीदवारों पर आवेदन शुल्क थोपे जाने को सरकारी नीतियों का खुला उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, "DoPT के नियम साफ कहते हैं कि SC/ST उम्मीदवारों से किसी भी परीक्षा में शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और रेलवे ने इस प्रावधान को नजरअंदाज कर दिया है।"

Dr. Babasaheb Ambedkar National Association of Engineers (BANAE) के अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने ऐसे संस्थानों पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, "जब RITES ने शुल्क वापसी की घोषणा कर दी, तो हम अन्य सरकारी संस्थानों को भी नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करेंगे। हमने BHEL के CMD को नोटिस भेजा है, और यदि उन्होंने DoPT के नियमों का पालन नहीं किया, तो हम उनके खिलाफ SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करेंगे।"

फीस लेने के पीछे RITES ने बताई ये वजह

RITES द्वारा निकाली भर्तियों में SC/ST आवेदकों से ₹300 आवेदन शुल्क लिया जा रहा था लेकिन द मूकनायक द्वारा DoPT गाइडलाइन्स की ओर कंपनी का ध्यान आकर्षित किये जाने के बाद प्रोसीजर की समीक्षा कर बदलाव किया गया. द मूकनायक को उपमहाप्रबंधक (एचआर) द्वारा भेज मेल में बताया गया कि पहले RITES भर्ती के लिए उम्मीदवारों से कोई आवेदन शुल्क नहीं ले रहा था। लेकिन आवेदन शुल्क नहीं होने , बड़ी संख्या में गैर-गंभीर उम्मीदवारों ने आवेदन किया, जिनमें वे भी शामिल थे जो पात्रता मानदंडों को भी पूरा नहीं करते थे। चयन प्रक्रिया में दस्तावेजों की जांच, लिखित परीक्षा का आयोजन और साक्षात्कार का आयोजन शामिल था। सभी आवेदकों को शामिल करना आवश्यक था, जिनमें गैर-गंभीर उम्मीदवार भी शामिल थे, जिनके लिए इन प्रक्रियाओं के लिए बड़े वित्तीय निहितार्थ थे। हालांकि, प्रावधान किए जाने के बावजूद, यह देखा गया कि ये गैर-गंभीर उम्मीदवार, जो मुख्य हिस्सा थे, प्रक्रिया में भाग नहीं लेते थे। परिणामस्वरूप, चयन प्रक्रिया काफी देरी से हुई, इसके अलावा अनावश्यक खर्च हुआ . उक्त परिस्थितियों में, गैर-गंभीर उम्मीदवारों के साथ-साथ अयोग्य उम्मीदवारों को आवेदन जमा करने से रोकने के इरादे से सभी उम्मीदवारों से आवेदन शुल्क लेने का निर्णय लिया गया। 

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि प्रभावित उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट और रेलवे की भर्ती अधिसूचनाओं को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत सरकारी नीतियों का जानबूझकर उल्लंघन करना भेदभाव माना जा सकता है। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 ऐसे भेदभावपूर्ण भर्ती नियमों को चुनौती देने का आधार प्रदान करते हैं।

बहुजन कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी एजेंसियों और सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) द्वारा बार-बार DoPT के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। वे इसे आरक्षण नीतियों को कमजोर करने की साजिश मान रहे हैं, जो वंचित समुदायों को आगे बढ़ाने के लिए बनाई गई थीं।

द मूकनायक ने DoPT राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और विभागीय सचिव को ईमेल भेजकर इस मुद्दे पर ध्यान देने की अपील की है। DoPT के दिशानिर्देशों का पालन न होने की स्थिति में क्या कार्रवाई की जाएगी, इस पर सरकार से प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर खबर अपडेट की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के भर्ती विज्ञापन ने स्वयं न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जैसे-जैसे विरोध बढ़ रहा है, कानूनी कार्रवाई की संभावनाएं भी प्रबल होती जा रही हैं। बहुजन संगठनों और वकीलों ने संस्थानों को जवाबदेह बनाने की तैयारी कर ली है।

अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करता है या नहीं, लेकिन इस विवाद ने निश्चित रूप से भारत में आरक्षण नीतियों के कमजोर होने पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दे दिया है।