+

महिलाओं को टॉप रैंक मिलने के बाद भी सेना ने किया बाहर! सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा – ये भेदभाव क्यों?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में महिलाओं की कम भागीदारी को लेकर केंद्र सरकार से कड़ा सवाल किया। अदालत ने सेना में महिलाओं और पुरुषों की 50:50 चयन नीति पर गंभीर आपत्ति जताई।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने यह टिप्पणी सेना की JAG ब्रांच में नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका दायर करने वाली दो महिला अभ्यर्थी अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी ने क्रमशः चौथा और पाँचवाँ स्थान प्राप्त किया था, लेकिन महिलाओं के लिए सीमित सीटों के कारण उनका चयन नहीं हो सका।

न्यायमूर्ति दत्ता ने टिप्पणी करते हुए कहा, “जब भारतीय वायुसेना में एक महिला राफेल फाइटर जेट उड़ा सकती है, तो सेना में JAG ब्रांच में अधिक महिलाओं की नियुक्ति क्यों नहीं हो सकती?”

सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता आस्था त्यागी अब भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। इसके बावजूद अदालत ने केंद्र से पूछा कि जब सरकार स्वयं JAG पदों को लैंगिक रूप से तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) बताती है, तो महिलाओं के लिए कम पद क्यों आरक्षित किए जाते हैं।

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि सेना में महिलाओं की नियुक्ति और तैनाती — JAG ब्रांच सहित — एक विकसित होती प्रक्रिया है, जो संचालन संबंधी ज़रूरतों के अनुसार तय की जाती है।

उन्होंने कहा, “2012 से 2023 तक पुरुषों और महिलाओं की भर्ती 70:30 अनुपात में हुई है, जिसे अब 50:50 किया गया है। इसे भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताना न केवल अनुचित है, बल्कि यह कार्यपालिका के उस अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा, जो सेना में नियुक्तियों का निर्धारण करता है।”

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब मेरिट सूची में महिला उम्मीदवार पुरुषों से आगे हैं, तो फिर चयन में उन्हें दरकिनार करना जेंडर न्यूट्रल अप्रोच कैसे हो सकता है?

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, “सच्चा लैंगिक समानता का मतलब यह है कि चयन पूरी तरह योग्यता के आधार पर हो, न कि पुरुष और महिला के लिए बराबर-बराबर सीटें बांटकर।”

उन्होंने यह भी पूछा कि अगर मेरिट के आधार पर टॉप 10 महिलाएं JAG ब्रांच के लिए योग्य हों, तो क्या सभी को नियुक्त किया जाएगा? इस पर ASG भाटी ने कहा कि सेना की सभी शाखाओं में लैंगिक आधार पर सीटों का निर्धारण संचालनात्मक ज़रूरतों और मानव संसाधन मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है।

अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है, जो भविष्य में सेना में भर्ती की नीतियों को प्रभावित कर सकता है।

Trending :
facebook twitter