MP पाथाखेड़ा ऑनर किलिंग: 11 साल बाद पिता समेत 6 दोषियों को उम्रकैद, 14 वर्षीय बेटी की हत्या परिवार ने ही की थी

01:55 PM Sep 30, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के पाथाखेड़ा में 1 जनवरी 2014 को हुए ऑनर किलिंग केस में आखिरकार 11 साल बाद न्याय मिला। सोमवार को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने 14 वर्षीय कंचन कुशवाह की हत्या के मामले में उसके पिता समेत परिवार के 6 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। यह मामला हत्या, साक्ष्य छिपाने और साजिश से जुड़ा था, जिसने 11 वर्षों तक अदालत और पुलिस की जांच को उलझाए रखा।

1 जनवरी 2014 को 9वीं कक्षा की छात्रा कंचन कुशवाह का शव पाथाखेड़ा में उसके फूफा के घर के बाथरूम में जली हुई हालत में मिला था। उस समय परिजनों ने दावा किया था कि कंचन ने आत्महत्या की है। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसकी मौत गला दबाने से हुई थी, और बाद में साक्ष्य छिपाने के लिए शव को जलाया गया।

मामले की गंभीरता तब बढ़ गई जब जांच में सामने आया कि घर के अंदर मौजूद परिजन ही इस पूरी वारदात के पीछे थे।

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परिवार के 6 दोषियों को उम्रकैद

लोक अभियोजक गोवर्धन सूर्यवंशी ने बताया कि कोर्ट ने हत्या (धारा 302), आपराधिक साजिश (धारा 120-बी) और साक्ष्य छिपाने (धारा 201) के आरोपों में 6 लोगों को दोषी पाया। इनमें कंचन के पिता सुरेंद्र प्रसाद कुशवाह, दादी गीता कुशवाह, दीपक सिंह, उसकी पत्नी राधिका, ओमप्रकाश और लक्ष्मण शामिल हैं।

सुनवाई के दौरान मुख्य आरोपी जोगेंद्र की मौत हो गई थी, जबकि एक अन्य आरोपी अनुराधा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।

पुलिस की जांच, और गवाह बने फैसले का आधार

इस मामले में पुलिस ने कोई चश्मदीद गवाह नहीं पाया। इसके बावजूद पड़ोस के 70 लोगों के बयान दर्ज किए गए। इन बयानों से यह साबित हुआ कि घटना के दिन घर में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आया था, जिससे संदेह परिजनों पर ही केंद्रित हुआ।

जांच अधिकारी सुरेंद्र नाथ यादव ने बताया कि शुरुआती जांच में परिजनों ने हत्या के आरोपों से इनकार किया था और इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की। बाद में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने सच्चाई उजागर कर दी।

आरुषि-हेमराज केस जैसी पेचीदगी

पाथाखेड़ा की यह घटना शुरू से ही रहस्य और उलझनों से भरी रही। 2008 के चर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड की तरह इस मामले में भी परिवार ने शुरू से ही पुलिस जांच पर सवाल उठाए। आरुषि-हेमराज केस में जिस तरह परिवार के ही लोगों पर हत्या का शक गया था और पुलिस से लेकर सीबीआई तक की जांच में पेचीदगियां सामने आईं, ठीक उसी तरह कंचन हत्याकांड में भी परिजनों ने आत्महत्या की कहानी गढ़ने की कोशिश की और पुलिस पर पक्षपात के आरोप लगाए।

शुरुआत में परिजन लगातार यह दावा करते रहे कि कंचन ने खुदकुशी की है, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि उसकी मौत गला दबाने से हुई थी। इसके बाद परिवार ने पुलिस की जांच पर ही सवाल उठाए और हाईकोर्ट तक गुहार लगाई। जांच में कोई चश्मदीद गवाह न होने के कारण पुलिस के लिए भी यह मामला चुनौतीपूर्ण हो गया था। गवाहों के बयान, फॉरेंसिक रिपोर्ट और परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर ही अदालत तक मामला पहुंचा और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 11 साल बाद सच्चाई सामने आई और दोषियों को सजा मिली।

ऑनर किलिंग: समाज के लिए चेतावनी

कंचन की हत्या को ऑनर किलिंग माना गया, जो समाज के लिए गंभीर संदेश लेकर आया है। तथाकथित “परिवार की इज्जत” बचाने के नाम पर 14 साल की मासूम बेटी की जान ले लेना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह भारतीय समाज में मौजूद उस सोच को भी उजागर करता है जो बेटियों की स्वतंत्रता और अधिकारों को लेकर अब भी पितृसत्तात्मक मूल्यों में जकड़ी हुई है।

अदालत का यह फैसला इस बात का सीधा संकेत है कि सम्मान के नाम पर किसी भी तरह का अपराध कानून की नजर में अपराध ही रहेगा। यह सजा उन तमाम लोगों के लिए चेतावनी है जो परिवार की प्रतिष्ठा के नाम पर बेटियों की जिंदगी छीनने की सोच रखते हैं।