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MP: ग्वालियर हाईकोर्ट में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति को लेकर विवाद गहराया, बहुजन संगठनों की सभा पर प्रशासन ने लगाई रोक!

भोपाल। मध्य प्रदेश के ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर चल रहा विवाद अब और गहरा गया है। इसी विवाद के चलते प्रशासन ने जय भीम संगठन द्वारा 26 मई को प्रस्तावित सभा और माल्यार्पण कार्यक्रम को अनुमति देने से इनकार कर दिया है। पुलिस और प्रशासन ने इस कार्यक्रम को शांति भंग की आशंका के चलते प्रतिबंधित किया है।

जय भीम संगठन ने इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की मौजूदगी की घोषणा की थी। इसमें संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंजीत सिंह नोटियाल, भीमसेना के नवाब सतपाल सिंह तंवर और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सहित अन्य प्रमुख नेताओं के शामिल होने की संभावना थी। माना जा रहा था कि इन नेताओं की उपस्थिति से पहले से गर्माए माहौल में और अधिक तनाव पैदा हो सकता था।

ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह ने बताया कि 22 मई को हुए प्रदर्शन के दौरान तनाव की स्थिति बनी थी। इसी को ध्यान में रखते हुए 26 मई की सभा के लिए अनुमति नहीं दी गई। सीएसपी इंदरगंज और थाना प्रभारी पड़ाव द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने सभा को लेकर खतरे की आशंका जताई थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया।

प्रशासन और संगठनों के बीच हुई थी बातचीत

इससे पहले प्रशासन ने इस विवाद को सुलझाने के लिए संबंधित पक्षों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में सभी से शांति बनाए रखने की अपील की गई थी और दोनों पक्षों ने उस समय प्रशासन की बात से सहमति भी जताई थी। हालांकि, बाद में जब सभा और माल्यार्पण की घोषणा की गई तो एक बार फिर विवाद गहरा गया।

माल्यार्पण कार्यक्रम भी प्रतिबंधित

जय भीम संगठन की प्रदेश उपाध्यक्ष राधा सैनी ने 26 मई को अंबेडकर पार्क, फूलबाग में माल्यार्पण और लक्ष्मीबाई समाधि स्थल पर सभा आयोजित करने के लिए अनुमति मांगी थी। लेकिन प्रशासन ने हाईकोर्ट परिसर में चल रहे विवाद को देखते हुए इस शांतिपूर्ण कार्यक्रम की भी इजाजत नहीं दी। इससे संगठन के कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी जा रही है।

प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि अगर बिना अनुमति सभा आयोजित की गई, तो उसे अवैध माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए पुलिस ने शहर में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात कर दिए हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी गई है और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने की पूरी तैयारी की गई है।

अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने 'द मूकनायक' से बातचीत में कहा, “बाबा साहेब केवल दलितों के नहीं, पूरे देश के प्रेरणा स्रोत हैं। उनका योगदान भारतीय संविधान, लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में अमूल्य है। उनकी प्रतिमा लगना न्यायपालिका की गरिमा को बढ़ाएगा।”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट में अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जा सकती है, तो ग्वालियर बेंच में क्यों नहीं? उन्होंने बार एसोसिएशन के विरोध को संविधान और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ बताया।

जानिए कैसे शुरू हुआ विवाद?

  • 19 फरवरी 2025 – ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति लगाने की मांग को लेकर अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन सौंपा।

  • 26 मार्च 2025 – जबलपुर स्थित प्रधान रजिस्ट्रार ने अधिवक्ताओं के समर्थन के आधार पर मूर्ति स्थापना के आदेश दिए।

  • 21 अप्रैल 2025 – रजिस्ट्रार ने PWD को स्थल पर मंच निर्माण कर मूर्ति स्थापित करने के निर्देश दिए।

  • 10 मई 2025 – मूर्ति का विरोध कर रहे वकीलों ने स्थल पर तिरंगा फहराया, पुलिस से झड़प हुई।

  • 14 मई 2025 – वकीलों के दो गुटों में टकराव, सोशल मीडिया पर पोस्टर वॉर शुरू।

  • 17 मई 2025 – हाईकोर्ट परिसर में भीम आर्मी के सदस्य पर हमला हुआ, जिससे तनाव बढ़ गया।

  • 23 मई 2025 – बसपा प्रमुख मायावती ने बयान दिया कि मूर्ति विरोध जातिवादी मानसिकता का परिणाम है, सीएम और राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की।

  • 24 मई 2025 – कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने CJI को पत्र लिखकर मूर्ति विरोध की निंदा की।

  • 25 मई 2025 – प्रशासन ने 26 मई को होने वाली सभा की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट परिसर संवेदनशील

ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति लगाने को लेकर अधिवक्ताओं के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं। मूर्ति समर्थक अधिवक्ता 26 मई को एक सभा और माल्यार्पण कार्यक्रम आयोजित करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने पूर्व की घटनाओं और संभावित तनाव को देखते हुए इस सभा की अनुमति नहीं देने की सिफारिश की। प्रशासन ने भी स्थिति की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए न सिर्फ सभा बल्कि माल्यार्पण कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि बिना अनुमति के कोई सभा आयोजित की जाती है तो उसे अवैध माना जाएगा और पुलिस कार्रवाई करेगी। इस पूरे विवाद ने हाईकोर्ट परिसर के माहौल को और अधिक संवेदनशील बना दिया है।

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