महाबोधि मुक्ति आंदोलन: धम्म के काम में नहीं, पाप कर्मों में खर्च हो रहा डोनेशन का पैसा—आचार्य प्रज्ञाशील ने BTMC के बारे में कही ये बड़ी बात!

03:32 PM Mar 12, 2025 | Geetha Sunil Pillai

बोधगया, बिहार — महाबोधि महाविहार मंदिर को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त करने और इसे पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग को लेकर बीते 29 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे भिक्षुओं ने मंदिर प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि बुद्ध की सबसे बड़ी विरासत बोधगया मंदिर में दुनिया भर से आने वाले करोड़ों रुपये के डोनेशन का उपयोग बुद्ध धम्म के प्रचार और ज्ञान, करुणा और मैत्री के कार्यों में खर्च करने की बजाय अधिकारियों, मंत्रियों और राज्यपालों की आवभगत में अनर्गल व्यय किया जा रहा है।


महाराष्ट्र के आचार्य प्रज्ञाशील, जो बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) में 6 साल तक सचिव के रूप में कार्यरत रहे हैं, ने ये गंभीर आरोप लगाए। प्रज्ञाशील पहले बौद्ध हैं जो BTMC में 1998 में सचिव पद पर नियुक्त हुए थे।

उन्होंने कहा, "दुनिया भर से आने वाला डोनेशन बुद्ध के धम्म, करुणा और मैत्री के कार्यों जैसे शिक्षा और अस्पताल बनाने में खर्च नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसे पाप कर्मों में लगाया जा रहा है। जिस पैसे से गरीब बच्चों के लिए स्कूल, कालेज, जरूरतमंदों के इलाज के लिए अस्पताल में धन खर्च करना चाहिए वो अफसरों की पगार, यहाँ आने वाले मंत्रियों , गवर्नर, नेताओं पर खर्च हो रहा है। मैं 6 साल इसमें सचिव रहा हूँ, मुझे जानकारी है कि कमेटी कैसे कार्य करती है।"

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आचार्य प्रज्ञाशील ने कहा, "आज हम इतने दिनों से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकारी मीडिया इस बात को दबाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, हमारे पास सोशल मीडिया है, और आज दुनिया भर को पता चल गया है कि बोधगया में क्या हो रहा है।"

1949 के बोधगया टेंपल एक्ट पर सवाल

महाबोधि मुक्ति आंदोलन 12 फरवरी से तेज हुई थी, जब बौद्ध भिक्षुओं और अनुयायियों ने बोधगया स्थित महाबोधि महाविहार मंदिर को गैर-बौद्धों के नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू किया। उनकी मांग है कि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए और 1949 के बोधगया टेंपल एक्ट को रद्द किया जाए।

प्रज्ञाशील ने  एक्ट को लेकर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "यह कानून देश में संविधान लागू होने से पहले बनाया गया था, जो आज संविधान के नाम पर कलंक बन गया है। यह कानून भेदभाव को बढ़ाता है और हिंदू और बौद्धों के बीच झगड़ा बढ़ाने वाला है।"

उन्होंने आगे कहा, "इस कानून के अनुसार, बोधगया में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) केवल हिंदू ही हो सकता है। यह कैसा कानून है? क्यों बोधगया में DM केवल हिंदू ही हो सकता है? DM का पद सम्मानित पद है, और इसमें केवल हिंदू को अधिकार देना लोकतंत्र की हत्या है। यह सिख, लिंगायत, जैन, बौद्ध, पारसी, मुस्लिम सभी अल्पसंख्यक वर्ग के आईएस अधिकारियों के साथ भेदभावपूर्ण और अन्यायपूर्ण है।"

प्रज्ञाशील ने 1960 के एक मामले का जिक्र करते हुए कहा, "एक बार 1960 में एक मुस्लिम अधिकारी को DM बनाया गया था, लेकिन उन्हें BTMC का प्रभारी नहीं बनाया गया। उनके नीचे के अधिकारी को चार्ज दिया गया। यह अन्यायपूर्ण कानून खत्म होना चाहिए।"

इधर बिहार विधान सभा में भी महाबोधि मुक्ति की आवाज उठ रही है. विधायक अमरजीत कुशवाह, अजीत कुमार, सतीश कुमार दास BT एक्ट को निरस्त करने की मांग उठा चुके हैं। आल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम के आकाश लामा ने बताया कि बिहार के कई विधायक इस आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं और संपर्क में हैं।