महाबोधि मुक्ति आंदोलन: भिक्खुओं का बड़ा ऐलान—बुद्ध पूर्णिमा तक प्रतीक्षा, बिहार सरकार नहीं मानी तो फिर 1 करोड़ बौद्ध एकत्र होंगे

01:47 PM Mar 10, 2025 | Geetha Sunil Pillai

बोधगया, बिहार — महाबोधि मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व कर रहे ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम के प्रमुख नेता आकाश लामा ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि अगर बिहार सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो बुद्ध पूर्णिमा तक प्रतीक्षा की जाएगी। उसके बाद देश के कोने-कोने से 1 करोड़ बौद्ध बोधगया में एकत्र होंगे और एक विशाल आंदोलन शुरू किया जाएगा।


महाबोधि मुक्ति आंदोलन के 26वें दिन, 9 मार्च को भिक्षुओं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बिहार सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि बिहार सरकार ने आंखों पर पट्टी बांधकर उनकी मांगों को नजरअंदाज कर रखा है। भिक्षुओं ने कहा, "हमारा संघर्ष जारी रहेगा। अगर सरकार नहीं सुनती है, तो हम 1 करोड़ बौद्धों को एकत्र करके बड़ा आंदोलन शुरू करेंगे।"

आकाश लामा ने कहा, "अभी तक लाखों लोग सड़कों पर उतर चुके हैं, लेकिन अगर बिहार सरकार नहीं सुनती है, तो जल्द ही करोड़ों लोग बोधगया में आंदोलन करेंगे। आंदोलन में पूरे देश से बौद्ध इसमें शामिल होंगे। लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी, गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक लाखों की संख्या में बौधजन महाबोधि महाविहार शान्ति मार्च करते हुए 12 मई 2025 को बोधगया पहुंचेंगे।

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समुदाय की तीन प्रमुख मांगें हैं जिसमे: महाबोधि महाविहार का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपने, बोधगया टेंपल एक्ट, 1949 को तुरंत रद्द करने, बौद्ध धार्मिक मामलों में राज्य के हस्तक्षेप को समाप्त करना शामिल है।

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इधर, बिहार सरकार आन्दोलन को दबाने के लिए प्रयास कर रही है। भंते विनाचार्य ने बताया कि उनके खलाफ बैध गया थाने में तहरीर दी गई है। विनाचार्य ने कहा, " हमने उनसे सवाल उठाया कि महाबोधि महाविहार में पिंडदान, श्राद्ध, शिवलिंग पर पूजा अर्चना किस अधिकार के तहत की जा रही है? अब उन्होंने मंदिर परिसर में नोटिस लगा दिया है कि यहां फोटो विडियो लेना मना है। विनाचार्य ने समुदाय से सवाल पूछते हुए कहा- वर्षों से बौध गया मंदिर ब्राह्मणों के कब्जे में हैं, हमारी बौध विरासत को क्या आप लोग यूँ ही जाने देंगे? आज बहुजन समुदाय इस आन्दोलन को देख रहा है- देख चुका है कैसे आन्दोलन ध्वस्त किये जाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बुद्धभूमी फाउंडेशन, कल्याण, ठाणे ने सम्राट अशोक की जयंती (5 अप्रैल 2025) के अवसर पर एक भव्य कोकण स्तरीय जनसभा आयोजित करने का निर्णय लिया है। इस जनसभा का उद्देश्य महाबोधि महाविहार को मुक्त कराने के लिए चल रहे आंदोलन को और मजबूत करना है।

इस जनसभा की तैयारी के लिए मंगलवार, 12 मार्च को शाम 5 बजे भंते गौतमरत्न महाथेरो की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में मुंबई, मुंबई उपनगर, रायगढ़, ठाणे, कल्याण, डोंबिवली, उल्हासनगर, अंबरनाथ, बदलापुर, कर्जत, पनवेल, भिवंडी, मुरबाड, शहापुर और पालघर जैसे कोकण क्षेत्र के सभी बौद्ध संगठनों, बहुजनवादी और आंबेडकरवादी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थाओं, और बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया गया है।

महाबोधि मुक्ति आंदोलन अब एक राष्ट्रव्यापी और वैश्विक आंदोलन बन चुका है। बौद्ध समुदाय ने साफ कर दिया है कि वे अपने अधिकारों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और बौद्ध समुदाय की मांगों को पूरा करे।

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महाबोधि महाविहार का इतिहास

महाबोधि महाविहार का निर्माण सम्राट अशोक ने किया था। सम्राट अशोक के 84 हजार बुद्ध विहार में से यह एक महत्वपूर्ण महाविहार है। सम्राट अशोक ने बुद्ध के याद में बोधिवृक्ष की पूजा तथा स्तूपों की पूजा शुरू की थी। ललित विस्तार और ऐतिहासिक दस्तावेज बताते है कि सम्राट अशोक ने इस महाविहार को बनाने के लिए एक लाख सोने की मुद्राएं दान में दी थी।

मध्य प्रदेश के अशोक कालीन भरहुत के अभिलेख में 'भगवतो सका मुनिनो बोधि' अर्थात 'भगवत शाक्य मुनि का बोधि (वृक्ष) यह लिखा हुआ है और साथ ही महाबोधि महाविहार के मंदिर की प्रतिकृति भी शिल्पों में दिखाई गई है। महाराष्ट्र के जुन्नर गुफा में भी बोधि वृक्ष अंकित है। महाबोधि महाविहार को ढूंढने का काम मेजर मिड तथा सर मेजर जनरल कनिंघम ने किया है। सन 1891 में महाबोधि महाविहार का उत्खनन कार्य कनिंघम महोदय ने खुद के खर्चे से किया था। वज्रासन, बोधि वृक्ष, अशोक राजा ने बनाया हुआ कठड़ा और सम्राट अशोक के अभिलेखों के आधार पर महाबोधि महाविहार का मुख्य स्थान ढूंढ लिया गया। लेकिन चीनी बौद्ध भिक्खू व्हेनसांग ने महाबोधि महाविहार में बुद्ध की जो भव्य मूर्ति देखी थी वह मूर्ति वहां नहीं थी। मूल मूर्ति महंत ब्राह्मण के कोठी की दीवार में छिपाकर रखी है यह बात उस रिपोर्ट में दर्ज है।

आज भी बुद्ध के दो दर्जन स्तूप तथा बौद्ध स्थल ढूंढना बाकी है जिसका वर्णन व्हेनसांग ने किया था। बोधगया में सम्राट अशोक ने यहां दक्षिण दिशा में 100 फिट ऊंचा स्तूप बनाया था। व्हेनसांग के समय में यहां पर तीन मंजिला संघाराम देखा था जिसे महाबोधि संघाराम कहा जाता था। जिसमें 600 कमरे थे और 1000 भिक्खू वहां निवास करते थे। कनिंघम के बाद वहां कोई नया संशोधन नहीं किया गया। महंत ब्राह्मण के विवाद के बाद शायद ऐसा हुआ होगा। ब्रिटिश भारत से जाने के बाद एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) ने महंत ब्राह्मण के नियंत्रण में रहकर काम करना मंजूर किया। महंत के कोठी में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियां तथा स्तूप, अभिलेख पड़े हुए है।

महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के मुख्य प्रवर्तक अनागारिक धर्मपाल ने यह आंदोलन शुरू किया। सन 1893 वे महाबोधि महाविहार देखने आए। उन्हें इस महाविहार की दयनीय स्थिति देखी नहीं गई। उन्होंने महाबोधि महाविहार को महंत ब्राह्मण के चंगुल से छुड़ाने के लिए महाबोधि सोसायटी की स्थापना की।

उन्होंने विश्व के बौद्ध जगत से संपर्क किया और अमरीकामें सर्व धर्म परिषद का आयोजन किया जिसके मुख्य नायक (कशी) के तौर पर सामने आए। लेकिन ब्राम्हणों ने तथाकथित आजादी के कुछ दशकों बाद विवेकानंद (कायस्थ व्यक्ति) को प्रमोट किया। अनागारिक धर्मपालजी परिषद से वापिस लौटते हुए जापान के टोक्यो गए और वहां से उन्हें बौद्ध की 18 फिट की बुद्ध की मूर्ति बोधगया महाविहार में रखने को दी थी।

ब्रिटिश सरकार से अनुमति लेकर वह मूर्ति महाविहार में वे रखनेवाले थे। लेकिन अनागारिक धर्मपालजी पर महंत ब्राह्मण ने जानलेवा हमला किया तथा बुद्ध पूजा में खलल डाल दिया। ब्रिटिश कोर्ट गया में आईपीसी की धारा 295,296,297,143,506 के तहत मुकदमा चला था। इस ऐतिहासिक मुकदमे में महंत ब्राह्मण अपना उस महाविहार पर मालिकाना हक सिद्ध नहीं कर पाया।