नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनावों के बीच महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन ने नया मोड़ ले लिया है। देश की राजधानी दिल्ली में 26 अक्टूबर को निकली विशाल मशाल यात्रा ने पूरे देश में बौद्ध समाज को एकजुट करने का संदेश दिया। बुद्ध जयंती पार्क, द्वारका से शुरू हुई यह 7 किलोमीटर लंबी यात्रा में हजारों बौद्ध भिक्षु, उपासक-उपासिकाएं और समर्थक शामिल हुए। यात्रा के समापन पर लगभग 5 लाख हस्ताक्षरों से भरे ज्ञापन प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट को सौंपने की तैयारी की गई। यह आंदोलन 1949 के बोध गया मंदिर प्रबंधन अधिनियम (बीटी एक्ट) को रद्द करने और महाबोधि महाविहार को पूर्ण रूप से बौद्धों के नियंत्रण में लाने की मांग को लेकर चल रहा है।
आंदोलन के प्रमुख नेता आकाश लामा ने एक लाइव चर्चा में कहा कि यह संघर्ष अब केवल बोध गया तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देशव्यापी हो चुका है। उन्होंने बताया कि 10 अगस्त को नागपुर से शुरू हुई मशाल यात्राएं महाराष्ट्र, बंगाल, सिक्किम, लद्दाख, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, ओडिशा, त्रिपुरा, असम और दक्षिण भारत के कोने-कोने तक पहुंच चुकी हैं। लामा ने कहा, "ये मशाल यात्राएं केवल प्रतीक नहीं, बल्कि जागृति का माध्यम हैं। 12 फरवरी से हमारा धरना चल रहा है, जो अब 257 वें दिन में प्रवेश कर चुका है। "
महाबोधी महाविहार को बौद्धों के पूर्ण नियंत्रण में लाने की मांग
महाबोधी महाविहार मुक्ति आंदोलन को कानूनी मोर्चे पर नई उम्मीद मिली है। सुप्रीम कोर्ट में 30 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई से पहले आंदोलन के प्रमुख याचिकाकर्ता भंते धम्म शिखर ने अपनी तैयारी का खुलासा किया। 2012 में बौद्ध भिक्षु भंते आर्य नागार्जुन शूराई ससाई और गजेंद्र महानंद पंतावने ने यह रिट याचिका (सिविल नंबर 0380/2012) दायर की थी, जिसमें अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई और मंदिर का विशेष रूप से बौद्ध प्रबंधन मांगा गया। याचिका एक दशक से अधिक समय तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं हुई थी।
बौद्ध पक्ष द्वारा महाबोधि महाविहार मुक्ति आन्दोलन के तहत गया में 12 फरवरी 2025 से भूख हड़ताल में बैठे बौद्ध भिक्षुओं की गिरती सेहत को देखते हुए तत्काल सुनवाई के लिए प्रार्थना पत्र लगाया गया था जिसके बाद 18 मई को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले ने 12 साल की देरी के लिए सरकारी वकीलों को फटकार लगाई और स्पष्ट किया कि अब कोई और स्थगन नहीं दिया जाएगा। उसके पश्चात अगस्त में केस लिस्ट हुई और अंतिम बहस के लिए 30 अक्टूबर की तारीख तय की गयी थी।
भंते धम्म शिखर ने ऐतिहासिक गाथाओं और तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि महाबोधी महाविहार केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि बौद्धों के लिए भगवान बुद्ध का जीवंत रूप है। आंदोलनकारियों ने 5 लाख हस्ताक्षरों के साथ ज्ञापन तैयार किया है, जबकि 27 अक्टूबर को एडवोकेट्स की महत्वपूर्ण बैठक हो चुकी है।
भंते धम्म शिखर जो 2018 से सुप्रीम कोर्ट में इंटरवेंशन पिटीशन के माध्यम से लड़ाई लड़ रहे हैं, ने बताया कि उनकी याचिका में महाबोधी महाविहार को बौद्धों के पूर्ण नियंत्रण में लाने की मांग की गई है। भंते जी ने कहा, "यह स्थल बौद्धों का ऐसा पवित्र स्थान है, जहां तथागत गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई। गाथा कहती है: 'महाबोधी लोकनाथे न पूजिता अहम पिते नमो बोधि राजाय नमस्तुते'। बोधि वृक्ष और महाविहार बुद्ध का रूप हैं। 'वंदामि सब्बे पार धातु महाबोधिं बुद्ध रूपं सकल सदा'- यह स्थान बुद्ध की शारीरिक धातुओं और अस्तित्व का प्रतीक है। हमने एडवोकेट श्रेयस डंबारे जी से कहा है कि याचिका में यह जोरदार तर्क शामिल करें।"
भंते धम्म शिखर की याचिका के अलावा आकाश लामा (ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम के माध्यम से), भारतीय बौद्ध महासभा (2019 में चंद्रबोधि पाटिल जी द्वारा), और भीमराव आंबेडकर महासभा समेत 16-17 याचिकाकर्ता सक्रिय हैं। भंते धम्म शिखर ने बताया, "हमारी कानूनी लड़ाई सामूहिक है। वरिष्ठ एडवोकेट शैलेश नागरे मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, जबकि श्रेयस डंबारे, आनंद जोंधले और अन्य अधिवक्ता पूरी स्टडी के साथ तैयार हैं।"
उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भों का जिक्र किया: "1904-05 में अनागारिक धर्मपाल जी ने मुक्ति आंदोलन शुरू किया। कांग्रेस सभा में पंडित राहुल सांकृत्यायन (तत्कालीन दामोदर दास) ने मांग रखी, लेकिन जवाब न मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी।1948 में पूज्य भिक्खु आनंद कौशल्या देवी ने भी प्रखरता से आवाज उठाई। ये तथ्य हमारी याचिका का मजबूत आधार हैं। एडवोकेट्स को निर्देश दिया है कि इन्हें कोट करें।" भंते जी ने जोड़ा कि सत्य को साक्ष्यों की जरूरत नहीं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में ये महत्वपूर्ण हैं। "बोध गया वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, इससे बड़ा सबूत क्या?"
आंदोलनकारियों को भरोसा है कि 30 अक्टूबर की सुनवाई सकारात्मक रहेगी। "सरकार दबाव में है, लेकिन हम शांतिपूर्ण क्रांति पर विश्वास रखते हैं।भंते धम्म शिखर जी ने कहा- 'अभी नहीं तो कभी नहीं-अभी नहीं तो कभी नहीं' का नारा बुलंद रहेगा। बिहार चुनाव की हलचल के बीच आंदोलन तेज हो रहा है, जहां गुंडा राज और वोट चोरी के आरोपों के बीच बीजेपी-नीतीश गठबंधन और महागठबंधन के बीच तगड़ा मुकाबला नजर आ रहा है।