नई दिल्ली- अमेरिका की सोशलिस्ट लीडर और एंटी कास्ट एक्टिविस्ट क्षमा सावंत को भारतीय वीज़ा देने से फिर इनकार कर दिया गया है। उनके पति केल्विन प्रीस्ट को जहां इमरजेंसी एंट्री वीज़ा मिल गया, वहीं खुद सावंत का नाम कथित तौर पर "रिजेक्शन लिस्ट" में डाल दिया गया है।
क्षमा की मां वसुंधरा रामानुजम 82 वर्ष की हैं जो एट्रियल फिब्रिलेशन, सीओपीडी, क्रोनिक किडनी डिजीज, डायबिटीज मेलिटस, हाइपरटेंशन और इस्केमिक हार्ट डिजीज के लिए 2 साल से बंगलुरु में अस्पताल में इलाज करा रही हैं।
शनिवार को भारतीय वाणिज्य दूतावास, सिएटल में क्षमा सावंत और उनके समर्थकों ने अधिकारियों से जवाब मांगते हुए विरोध दर्ज कराया। सावंत ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, "वे हमें कोई कारण नहीं बता रहे कि मेरा नाम इस लिस्ट में क्यों डाला गया है। हम तब तक यहाँ से नहीं जाएंगे, जब तक हमें जवाब नहीं मिलेगा।"
स्थिति उस वक्त तनावपूर्ण हो गई जब भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों ने क्षमा और उनके समर्थकों को वहाँ से जाने को कहा और पुलिस बुलाने की धमकी दी। सावंत के समर्थकों का कहना है कि यह पूरी तरह से एक राजनीतिक बदले की कार्रवाई है।
सिएटल में रहने वाली भारतीय मूल की राजनेता और एक्टिविस्ट क्षमा सावंत ने तीन बार भारत आने के लिए वीज़ा आवेदन किया, लेकिन हर बार उन्हें इनकार किया गया।
29 मई 2024 – पहली ई-वीज़ा अर्जी खारिज
7 जून 2024 – दूसरी ई-वीज़ा अर्जी भी अस्वीकार
9 जनवरी 2025 – इमरजेंसी एंट्री वीज़ा के लिए आवेदन, कोई जवाब नहीं
6 फरवरी 2025 – उनके पति को वीज़ा मिला, लेकिन उनका नाम "रिजेक्शन लिस्ट" में डाल दिया गया
सावंत ने कहा, "मैंने अपनी मां की गंभीर तबीयत को देखते हुए इमरजेंसी वीज़ा के लिए आवेदन किया था। हमने डॉक्टर की चिट्ठी भी दी थी, लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला। आज जब हमने खुद जाकर पूछा, तो कहा गया कि मेरा नाम रिजेक्शन लिस्ट में है, लेकिन वजह नहीं बताएंगे!"
क्षमा सावंत को भारत सरकार द्वारा वीज़ा न देना सिर्फ एक तकनीकी मामला नहीं बल्कि उनके राजनीतिक विचारों और कार्यों से जुड़ा हुआ नजर आ रहा है।
2020 में, उन्होंने सिएटल सिटी काउंसिल में सीएए-एनआरसी का विरोध करते हुए प्रस्ताव पारित करवाया, जिसमें मोदी सरकार की आलोचना की गई थी। इस प्रस्ताव के खिलाफ भारतीय वाणिज्य दूतावास ने सिएटल प्रशासन को पत्र भी लिखा था।
2023 में, सिएटल को पहला अमेरिकी शहर बनाने में भूमिका निभाई जिसने जाति-आधारित भेदभाव को अवैध घोषित किया। इस फैसले का विरोध अमेरिका और भारत के हिंदुत्ववादी संगठनों ने किया था।
भारत सरकार पर पहले भी अपने आलोचकों को दबाने के आरोप लगते रहे हैं। इससे पहले स्वीडिश प्रोफेसर अशोक स्वैन का वीज़ा रद्द कर दिया गया था, जो मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं।
क्षमा सावंत के साथ हुई इस घटना की बहुजन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने निंदा की है।
बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारों को आगे बढ़ाने वाले कार्यकर्ता अनिल एच. वाघड़े ने कहा, "क्षमा की मां अपनी आखिरी सांसें गिन रही हैं, और उन्हें अपनी बेटी को देखने की इच्छा है। यह कैसी सरकार है जो एक बेटी को अपनी मां से मिलने से रोक रही है? वीज़ा देने वाले अधिकारियों को थोड़ी भी इंसानियत दिखानी चाहिए।"
इस बीच, क्षमा सावंत के समर्थन में ऑनलाइन अभियान तेज हो रहा है। Change.org पर उनके समर्थन में एक याचिका शुरू की गई, जिस पर अब तक करीब 800 लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं।