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बौद्धों का ब्राह्मणों से सवाल — जब धर्म ग्रंथों में बुद्ध का चेहरा देखना पाप था, तो आज वे बोधगया में क्या कर रहे हैं? महाबोधि छोड़ो!

बोधगया - महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को बौद्ध समुदाय को सौंपने की वर्षों से लंबित मांग को लेकर सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और अनुयायी भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनका सवाल साफ है—जब हिंदू धर्मग्रंथों में बुद्ध और बौद्ध दर्शन की आलोचना की गई, जब महाभारत में ब्राह्मणों ने मगध को ‘पापियों की भूमि’ कहा और बुद्ध के दर्शन मात्र से मृत्यु दंड ही प्रायश्चित बताई, तो फिर आज वही ब्राह्मण महाबोधि मंदिर के प्रशासन पर काबिज क्यों हैं?

महाबोधि महाविहार मंदिर को गैर-बौद्धों के नियंत्रण से मुक्त करने और इसे पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग को लेकर 12 फरवरी से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। यह प्रदर्शन बोधगया में महाबोधि मंदिर के पास शुरू हुआ, जहां सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां खुले आसमान के नीचे शांतिपूर्ण धरने पर बैठे हैं। उनकी मांग है कि बौद्ध धार्मिक मामलों में राज्य का हस्तक्षेप समाप्त हो और महाबोधि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। आन्दोलन स्थल में देशभर से अनुयायी पहुंच रहे हैं, त्रिपुरा, लद्दाख, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र आदि से लोग यहाँ पहुंच कर इस महा आन्दोलन में अपनी भागीदारी और समर्थन जाहिर कर रहे हैं.

अनशनकर्ताओं का कहना है की विश्व के पवित्र महाबोधि महाविहार का वैदिक ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मणीकरण किया जा रहा है यह तथागत बुद्ध के सिद्धांतों का अपमान है

आन्दोलन स्थल में देशभर से अनुयायी पहुंच रहे हैं, त्रिपुरा, लद्दाख, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र आदि से लोग यहाँ पहुंच कर इस महा आन्दोलन में अपनी भागीदारी और समर्थन जाहिर कर रहे हैं.

20 फरवरी को प्रदर्शन के नौवें दिन, प्रदर्शनकारियों ने ब्राह्मणवादी तत्वों और राज्य प्रशासन द्वारा लगातार हो रहे उत्पीड़न की शिकायत की। उन्होंने आरोप लगाया कि भिक्षुओं को डराया-धमकाया जा रहा है, उनकी शांतिपूर्ण सभा को भंग करने के लिए जानबूझकर तेज आवाजें पैदा की जा रही हैं, और सरकारी अधिकारी उनसे बातचीत करने से इनकार कर रहे हैं।

आन्दोलन से जुड़े डॉ विलास खरात ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि "महाबोधि महाविहार का मूल मालिक सम्राट अशोक है। जिन्होंने एक लाख सोने की मुद्राएं खर्च कर यह महाविहार बनाया था। आज महंत ब्राह्मण इसपर कब्जा किया हुआ है। इसलिए यह आंदोलन चल रहा है।"

खरात ने आगे बताया, " 1949 का एक्ट भारत के संविधान और अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक कानूनों के खिलाफ है। यह शुद्ध बौद्ध स्थल है, लेकिन Bodhgaya Temple Management Committee (BTMC) पर धर्म योगियों का कब्जा है। यहां BTMC के ब्राह्मण सदस्य मुख्य मंदिर में घंटी बजाते हैं और धूप जलाते हैं। यहां बुद्ध की मूर्तियों को पांडवों से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है।"

खरात ने आगे कहा कि "पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण था, जिसने बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के सिर काटकर लाने वालों को 100 मुद्राएं देने की घोषणा की थी। शशांक नामक ब्राह्मण ने बोधि वृक्ष को उखाड़ फेंका था। ये सब देश की पहचान मिटाने का काम है। हम जो अनशन पर बैठे हैं, यह कोई मामूली लड़ाई नहीं है, यह देश की पहचान और गौरव बचाने की लड़ाई है।" उन्होंने यह भी बताया कि कैसे वर्षों से बुद्ध के स्थान को हिंदू मंदिर बताने के प्रयास किए गए हैं और इसे शिव मंदिर और पांडवों से जोड़ा गया है।

खरात ने आगे कहा, " भारत की पहचान बुद्ध और अशोका हैं, आज बुद्ध और अशोक को माइनस कर दो तो मगध की क्या पहचान है? देश का सिंबल अशोक सम्राट का चिन्ह है, शेर हमारा चिन्ह है, चक्र है लेकिन कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि यहाँ 84 हजार स्तूप की स्थापना की गई थी उसमे एक अशोका का स्तूप है जिसमे हाथी यानी बुद्ध लगे हुए थे, वो हाथी गायब हो गया- वो हाथी 1890 में महंत की कोठी में मिला, उस कोठी में सेकड़ों बुद्ध की मूर्तियाँ मिली, ये सब क्या है? बुद्ध की विरासत किस प्रकार के लोगों के कब्जे में हैं?

भूख हड़ताल के दसवें दिन, कुछ भिक्षुओं की हालत गंभीर हो गई है।

1949 के बोधगया टेम्पल एक्ट का विरोध

महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर 1949 में बना बोधगया टेम्पल एक्ट इस मंदिर के प्रबंधन के लिए एक नौ सदस्यीय बोधगया टेम्पल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) का गठन करता है। हालांकि, इन नौ सदस्यों में से केवल चार बौद्ध हैं, जबकि पांच सदस्य, जिनमें अध्यक्ष (जिला मजिस्ट्रेट) भी शामिल है, हिंदू हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह अन्यायपूर्ण व्यवस्था बौद्धों को उनके सबसे पवित्र स्थल, जहां गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, के प्रबंधन का अधिकार देने से इनकार करती है।

भूख हड़ताल के दसवें दिन, कुछ भिक्षुओं की हालत गंभीर हो गई है। डॉक्टरों ने उनकी जांच की,उनकी सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। विलास खरात ने कहा कि "यह मृत्युंजय अनशन है, और हम अपनी जान देकर भी इस विरासत को बचाने के लिए तैयार हैं।" उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन और पुलिस की मदद से इस आंदोलन को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि "जिस तरह G20 समिट में दिल्ली में सरकार ने हरे पर्दे लगाकर झुग्गी बस्तियों को छुपाया था, उसी तरह इस आंदोलन को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। गुरूवार को अनशन स्थल के बाहर एक बड़ी वेन खड़ी कर डी गई ताकि देश विदेश से आने वाले मेहमानों को आन्दोलन की जानकारी ना हो. "

उन्होंने यह भी कहा कि BTMC का ध्येय केवल लाभ अर्जित करने पर केन्द्रित है, इंटरनेशनल करेंसी प्राप्त करने के लिए डोनेशन ऑफिस खोला हुआ है जिन्हें यहाँ आने वालों के साथ होने वाली बदसलूकी या परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है.

इस प्रदर्शन को भारत भर की 500 से अधिक बौद्ध संगठनों, जिनमें बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया भी शामिल है, और श्रीलंका, थाईलैंड, जापान और मंगोलिया जैसे देशों के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघों का समर्थन मिला है।

चुनावी राजनीति और बौद्ध समुदाय का रोष

इस साल बिहार में चुनाव होने वाले हैं, और बौद्ध समुदाय ने साफ कर दिया है कि अगर उनकी मांगों को नहीं सुना गया, तो वे नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे। खरात ने कहा कि "हमने इतने दिनों से यहाँ बैठे हैं क्या सरकार को इसका पता नहीं है, मुख्यमंत्री को अगले दिन यहाँ आना चाहिए था, हमने सुना था वे बौध धर्म से प्यार करते हैं, लेकिन सरकार ने बातचीत करने का कोई प्रयास नहीं किया। अब हमारा अनशन तब तक जारी रहेगा, जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। अगर हमारे जान देने से देश की पहचान को बचाई जा सकती है तो हम इसके लिए तैयार हैं."

इस प्रदर्शन को भारत भर की 500 से अधिक बौद्ध संगठनों, जिनमें बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया भी शामिल है, और श्रीलंका, थाईलैंड, जापान और मंगोलिया जैसे देशों के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघों का समर्थन मिला है। हालांकि, सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

आन्दोलन से जुड़े आकाश लामा ने कहा कि "हर धार्मिक समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूरा नियंत्रण होता है, लेकिन बौद्धों को यह अधिकार नहीं दिया जा रहा है। सरकार महाबोधि मंदिर से राजस्व कमा रही है, लेकिन बौद्धों की मांगों को नजरअंदाज कर रही है।"

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