नई दिल्ली- भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव आज भी बदस्तूर है। हाल ही में ऑपरेशन सिन्दूर और सीजफायर उल्लंघन की घटनाओं ने दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बना दी है।
इस संदर्भ में 51 साल पहले की एक ऐतिहासिक घटना याद आती है, जब भारत ने 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण टेस्ट रेंज में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण को ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा का कोड नाम दिया गया, जिसने भारत को न केवल वैश्विक मंच पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया, बल्कि रक्षा के क्षेत्र में देश की स्थिति को अभूतपूर्व रूप से मजबूत किया।
यह भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इस गोपनीय मिशन ने भारत की वैज्ञानिक और रणनीतिक क्षमता को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। आईये जानते हैं ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा की पृष्ठभूमि, प्रक्रिया, महत्व और बुद्ध से इसका क्या संबध है।
परमाणु परीक्षण के लिए क्यों चुना बुद्ध पूर्णिमा का ही दिन
18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा का दिन था, जो भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति, और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। बुद्ध की शिक्षाएं शांति, अहिंसा, और करुणा पर आधारित हैं। इस दिन को चुनना और ऑपरेशन का नाम "स्माइलिंग बुद्धा" रखना भारत की रणनीति का हिस्सा था। यह नाम और तारीख वैश्विक समुदाय को यह संदेश देने के लिए चुनी गई कि भारत का परमाणु कार्यक्रम आक्रामक नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण और रक्षात्मक है। साथ ही, यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को वैश्विक मंच पर उजागर करने का एक प्रतीकात्मक कदम था।
भारत का परमाणु कार्यक्रम 1944 में डॉ. होमी जहांगीर भाभा द्वारा शुरू किया गया, जिन्हें भारतीय परमाणु विज्ञान का जनक माना जाता है। 1948 में भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (IAEC) की स्थापना हुई, जिसका प्रारंभिक उद्देश्य शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा का विकास था। 1950 के दशक में कनाडा और अमेरिका के सहयोग से CIRUS रिएक्टर स्थापित किया गया, जो बाद में इस परीक्षण के लिए प्लूटोनियम उत्पादन में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
1960 के दशक में क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाओं ने भारत को परमाणु हथियार विकसित करने के लिए प्रेरित किया। 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध, और 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने भारत की सुरक्षा के लिए चिंताएं बढ़ाईं। इन परिस्थितियों में भारत ने अपनी रक्षा के लिए स्वदेशी परमाणु क्षमता विकसित करने का निर्णय लिया। 1972 में इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) को परमाणु डिवाइस के परीक्षण की अनुमति दी, जिससे ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा की नींव पड़ी।
ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा
तारीख और स्थान: 18 मई 1974, पोखरण टेस्ट रेंज, राजस्थान।
समय: सुबह 8:05 बजे।
विस्फोट की शक्ति: 8-12 किलोटन (लगभग हिरोशिमा बम के बराबर)
डिवाइस का प्रकार: इम्प्लोजन-टाइप प्लूटोनियम बम, जो अमेरिका द्वारा नागासाकी पर इस्तेमाल "फैट मैन" बम के समान था।
नेतृत्व: इस ऑपरेशन की देखरेख BARC के निदेशक डॉ. राजा रमन्ना, डॉ. पी.के. आयंगर, और डॉ. होमी सेठना ने की।
गोपनीयता: ऑपरेशन को अत्यंत गोपनीय रखा गया। केवल 75 वैज्ञानिकों और अधिकारियों की एक छोटी टीम को इसकी जानकारी थी। अमेरिका और अन्य खुफिया एजेंसियां इसे भांप नहीं पाईं।
प्रक्रिया: परमाणु डिवाइस को 107 मीटर गहरे गड्ढे में रखा गया और रिमोट कंट्रोल से विस्फोट किया गया।
परीक्षण की सफलता के बाद डॉ. राजा रमन्ना ने इंदिरा गांधी को फोन पर कोड वाक्य कहा, "द बुद्धा हैज़ स्माइल्ड" (बुद्ध मुस्कुराए हैं)। भारत ने इसे शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (Peaceful Nuclear Explosion) के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य खनन, नहर निर्माण, और अन्य सिविल इंजीनियरिंग कार्यों के लिए तकनीक का उपयोग करना था।
ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा ने भारत को दुनिया का छठा परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाया, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों (अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन) के बाहर पहला देश था।
इस परीक्षण ने भारत में राष्ट्रीय गौरव की भावना को जागृत किया। इंदिरा गांधी की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई। यह भारत की स्वदेशी वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन था, जो बिना किसी विदेशी सहायता के हासिल की गई। इसने दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों की होड़ को तेज किया। पाकिस्तान ने 1998 में अपने परमाणु परीक्षण किए।
अमेरिका, कनाडा, और अन्य देशों ने भारत पर तकनीकी और आर्थिक प्रतिबंध लगाए। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर अपनी स्वतंत्र नीति बनाए रखी।
परीक्षण के बाद भारत को तकनीकी सहायता और परमाणु ईंधन की आपूर्ति में कटौती का सामना करना पड़ा। कई देशों ने इसे सैन्य उद्देश्यों से जोड़ा, जिससे भारत की शांतिपूर्ण छवि पर सवाल उठे। पोखरण में विस्फोट से आसपास के क्षेत्र में रेडियोधर्मिता की आशंका जताई गई, हालांकि भारत ने इसे नकारा।