रायपुर- सरकारी नौकरी हासिल करना हर युवा का सपना होता है, लेकिन एक बार नौकरी हासिल करने के बाद उसे खोने का डर भयावह होता है और ज्यादा पीड़ादायक भी तब जबकि किसी ने इस सेवा में 1.5 साल बिताकर पूरी मेहनत और निष्ठा से काम किया हो।
छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बस्तर संभाग के लगभग B.Ed प्रशिक्षित 2900 सहायक शिक्षक, जिनमें अधिकांश आदिवासी समुदाय से हैं, आज अपनी नौकरियों को बचाने के लिए पिछले 6 दिनों से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी पीड़ा और संघर्ष उस सामाजिक और आर्थिक संकट को उजागर करते हैं, जिससे आज ये युवा गुजर रहे हैं।
बीएड और डीएड प्रशिक्षित शिक्षकों की योग्यता को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर, 2024 को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया कि प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए डीएड उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस फैसले के बाद बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी किया गया। इन शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने भर्ती विज्ञापन में दोनों योग्यताओं को मान्यता दी थी, फिर अब बीएड शिक्षकों को बाहर करना अन्यायपूर्ण है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर डी.एल.एड धारकों की नियुक्ति की जाए। इस आदेश से मौजूदा बी.एड शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ गई है, जिन्होंने पिछले 14 महीनों से सेवाएं दे रहे हैं।
प्रभावित शिक्षकों में अधिकांश आदिवासी समुदाय से आते हैं। सरकारी नौकरी उनके लिए सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का आधार है। इन नौकरियों को खोने से 2900 परिवारों की आजीविका संकट में आ जाएगी। इनमें 56 ऐसे शिक्षक भी हैं जिन्होंने इन पदों के लिए अपनी पिछली नौकरियां छोड़ दी थीं।
ऐसे शुरू हुई थी प्रक्रिया: दो सरकारों और अदालतों के बीच यूँ पिसे युवा
यह भर्ती प्रक्रिया करीब 6 हजार पदों के लिए तत्कालीन कांग्रेस शासन के समय 5 मई 2023 को विज्ञापन जारी होने के साथ शुरू हुई थी। 3 लाख से अधिक आवेदन B.Ed और D.Ed पास युवाओं से प्राप्त हुए थे, 10 जून 2023 को परीक्षा आयोजित की गई और 2 जुलाई 2023 को मेरिट सूची जारी की गई। इसमें कांग्रेस सरकार ने दो काउंसलिंग आयोजित की और नियुक्ति पत्र जारी किए। विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने भी इस प्रक्रिया को जारी रखते हुए दो और काउंसलिंग की और नियुक्ति पत्र जारी किए। इस प्रकार चार चरणों में नियुक्तिया हुई जिसमे 2897 B.Ed प्रशिक्षित शिक्षकों को नौकरी मिली.
इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त 2023 को आदेश दिया कि B.Ed प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की नियुक्तियां केवल 11 अगस्त 2023 से पहले तक ही मान्य होंगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना के लिए D.Ed अभ्यर्थियों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की शरण ली और B.Ed प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की नियुक्तियां खारिज करने की मांग की. इस पर B.Ed प्रशिक्षित अभ्यर्थियों द्वारा भी याचिका लगाई गई और मामले में सुनवाई करते हुए अब हाल में 10 दिसंबर को उच्च न्यायालय ने डी.एड उम्मीदवारों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद बी.एड शिक्षकों की नियुक्ति रद्द करते हुए 14 जनवरी तक डी.एड उम्मीदवारों की नियुक्ति का आदेश दिया.
शिक्षक कहते हैं ये स्थिति प्रशासनिक त्रुटियों और देरी का परिणाम है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2023 के बाद बीएड प्रशिक्षित उम्मीदवारों की नियुक्तियों को अवैध घोषित कर दिया था। इस देरी के लिए शिक्षकों को सजा देना उनके साथ अन्याय है।
बी.एड शिक्षकों पर मंडराया बेरोजगारी का साया: परिवारों का भविष्य दांव पर
इस आदेश के बाद अब 2897 बी.एड शिक्षक अपनी नौकरी बचाने के लिए वैकल्पिक नियुक्ति, सेवा समाप्ति आदेशों की तत्काल वापसी और सभी अभ्यर्थियों के लिए समान अवसर की मांग कर रहे हैं। शिक्षकों द्वारा हाल में अनुनय यात्रा निकाली जिसके तहत अम्बिकपुर से 350 किलोमीटर पैदल मार्च करते हुए रायपुर तक पहुंचे और तबी से धरना दे रहे हैं.
DPI ने जिला शिक्षा अधिकारियों से बस्तर और सरगुजा संभाग में सक्रिय और निष्क्रिय दोनों तरह के बी.एड और डी.एड प्रशिक्षित शिक्षकों के बारे में जानकारी मांगी है। साथ ही PVTG उम्मीदवारों की स्थिति की भी जानकारी मांगी गई है।
14 जनवरी डी.एड उम्मीदवारों की नियुक्ति की अंतिम तिथि है। इस बीच, बी.एड शिक्षक लगातार नया रायपुर में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन को 6 दिन हो गए हैं, इनका कहना है कि उन्होंने सभी नियमों का पालन करते हुए नौकरी पाई थी और अब विभागीय देरी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। कई शिक्षकों ने बैंक से लोन लिया है, कुछ ने शादी की है, और उनके बच्चों की शिक्षा चल रही है। ऐसे में नौकरी जाने से हजारों परिवारों का भविष्य अंधकार में डूब जाएगा।
शिक्षकों की जिंदगी में आया भूचाल
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले की एक सरकारी प्राथमिक शाला में कार्यरत सहायक शिक्षक सुमित बोरकर की आवाज में दर्द साफ झलकता है। "मैं और मेरे जैसे हजारों साथी आज अपने परिवार के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। हमने पूरी ईमानदारी और मेहनत से इस नौकरी को पाया था, लेकिन आज हमारी जिंदगी अनिश्चितता के घेरे में है," बोरकर ने द मूकनायक से अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा।
सुमित दलित परिवार से हैं जिसके 9 सदस्य हैं. सुमित बताते हैं कि नौकरी मिलने से पहले घर उनके दादाजी के पेंशन से चलता था, माँ थोडा बहुत सिलाई का काम करके सहयोग करती हैं , सुमित की नौकरी के बाद परिवार को थोड़े समय आर्थिक तंगी से राहत मिली लेकिन अब दुबारा वही हालात सोच सोच कर दिल बैठा जा रहा है. 25 साल के सुमित को स्वास्थ्य सबधी भी कुछ दिक्कतें हैं, अपने कार्यस्थल से रोजाना अप डाउन करके वे धरना स्थल पर जाते हैं और न्याय की आस लगाये हैं. सुमित की तरह ही अनेक ऐसे शिक्षक हैं जिनके जीवन में भूचाल आया है. एक तरफ बैंक के कर्ज, दूसरी तरफ नौकरी का संकट, कुछ को बच्चों की पढ़ाई और परिवार के भरण-पोषण की चिंता तो कई शिक्षक और उनके परिवार मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं.
बोरकर ने बताया , "कई साथियों ने बैंक से लोन लिया है, कइयों ने शादी की है, कुछ के घर में बच्चों की पढ़ाई चल रही है। सरकारी नौकरी मिलने के बाद हमने अपने जीवन की नई योजनाएं बनाई थीं, लेकिन अब सब कुछ अधर में लटक गया है"।
प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने कहा कि जब तक राज्य सरकार उन्हें लिखित में उनकी नौकरी की सुरक्षा का आश्वासन नहीं देती, तब तक वे धरने पर डटे रहेंगे। बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षक विकास मिश्रा ने कहा, “14 जनवरी के बाद डीएड प्रशिक्षित उम्मीदवारों को हमारे स्थान पर नियुक्त किया जाएगा। एक बार सेवा पुस्तिका से बाहर हो जाने के बाद, सरकारी नौकरी में हमारी वापसी असंभव हो जाएगी।”
गरियाबंद जिले के मैनपुर से ममता नेगी ने बताया, " नौकरी जाने से हमारे सामने बहुत सी समस्याएं आयेगी, पहली बात तो ये है की जब से हम नौकरी में लगे है हमारी आत्मसम्मान यही बन गईं है और जब आत्मसम्मान ही नही बचेगा तो हमारी मानसिक स्थिति क्या ही रहेगी हम खुद नही बता सकते". पारिवारिक स्थिति की जानकारी देते हुए ममता ने बताया कि "अपने भाई बहन में मैं ही नौकरी में हूँ और मैं एक कृषक परिवार से हूँ. मुझ पर अपने घर की जिम्मेदारियां हैं, अगर दूसरी नौकरी की तैयारी भी करते है तो उसके लिए भी बहुत टाइम देना पड़ता है जो हम लड़कियों के लिए काफी मुश्किल होता है".
महिला शिक्षकों का यह भी कहना है कि बड़ी मुश्किल से सरकारी नौकरी मिली लेकिन अब दुबारा परीक्षा की तैयारी में समय और धन लगेगा, कुछ टाइम बाद घर वाले शादी के लिए दबाव बनाएंगे, ऐसे में नौकरी पाकर आत्म निर्भर बनने का सपना अधूरा रहा जायेगा.
इस संघर्ष में एक युवा शिक्षिका हेमा सिंह की जान भी चली गई। जांजगीर-चांपा की रहने वाली हेमा की तीन महीने पहले कोंडागांव में अपनी पोस्टिंग के दौरान, कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने के बाद लौटते समय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उनके पिता देवनारायण सिंह धरने पर बैठे शिक्षकों को आशीर्वाद देने पहुंचे और भावुक होकर बोले, "ये सभी मेरे बच्चे हैं।"
नौकरी जाने के बाद सामूहिक आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता नहीं...
बागबेड़ा कोंडागांव में पदस्थ पिलेश कुमार कहते हैं, " मैं गरीब परिवार से हूँ। अपने घर में सबसे पहले जॉब में लगा। मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती मैंने कभी अपने मां को बताया ही नहीं कि हमारी जॉब खतरे में हैं, मेरे पापा ने खेती करके मुझे पढ़ाया और अब जॉब नहीं रहने से हमारे परिवार में आर्थिक संकट आ जाएगा। सरकार से एक ही निवेदन है हमारी आत्मसम्मान हमसे न छीने".
रायपुर जिले के नवागांव से रोशन कुमार डांडे ने मूकनायक को बताया, " नौकरी जाने से आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय होगा, मेरा पापा पेरालाईज्ड हैं और मम्मी का भी तबीयत सही नही है, ऐसे में घर में कमाने का भी कोई साधन नहीं है" सुबकते हुए रोशन ने कहा- नौकरी जाने के बाद सामुहिक आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता नहीं होगा क्षमा करना लेकिन मेरे पास मानसिक यातना सहने कि क्षमता ही नहीं बचेगा".
तेजलाल चौहान कोंडागांव के ब्लॉक फरसगांव में कोनगुड़ में पदस्थ हैं . मैं अपने पापा के इलाज के लिए लोन लिया था, मेरे पापा तो नहीं रहे लेकिन यदि मेरी नोकरी भी नहीं रही तो मेरा पूरा परिवार सड़क पर आ जायेगा। मैं अपने परिवार का एक मात्र उम्मीद हुँ। अतः मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से करबद्ध प्रार्थना है किसी भी तरह हमारी नौकरी सुरक्षित करें और हमें बर्बाद होने से बचायें।
राजनीतिक और सामाजिक समर्थन
भाजपा विधायक धर्मजीत सिंह ने इस मुद्दे को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उठाया।
छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी महासंघ के राज्य संयोजक कमल वर्मा ने कहा कि शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने से उनके परिवारों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, “हमारा संगठन इन शिक्षकों की वैकल्पिक नियुक्ति और सेवा समाप्ति आदेश को रद्द करने की मांग करता है।”
छत्तीसगढ़ शिक्षक संघर्ष मोर्चा के प्रमुख वीरेंद्र दुबे ने प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहा कि “जब मेहनती और योग्य लोगों के साथ अन्याय होता है, तो न्याय की मांग के लिए लोग एकजुट होते हैं।”
प्रदर्शनकारी शिक्षक राज्य सरकार और न्यायालय से मांग कर रहे हैं कि उन्हें वैकल्पिक पदों पर समायोजित किया जाए। उनका कहना है कि प्रशासनिक देरी और नीतिगत अस्थिरता के लिए शिक्षकों को दंडित करना अनुचित है। यह स्थिति केवल 2900 शिक्षकों की नहीं, बल्कि उनके परिवारों और समुदायों की भी है।