रांची- राज्य गठन के 24 साल बाद भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोज़गार और पलायन की समस्या को लेकर नाराज झारखंडी युवाओं ने 5 अगस्त को विधानसभा घेराव का एलान किया है. झारखंड जनाधिकार महासभा के युवा कार्यकर्ताओं ने शनिवार को मीडिया को बताया कि प्रदेश के युवा पलायन को मजबूर हैं. रघुवर सरकार की जनविरोधी स्थानीयता नीति अब भी लागू है और छह साल की हेमंत सरकार के बावजूद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।
राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर चिंता जताते हुए युवाओं ने बताया कि 7,900 प्राथमिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक है, जबकि 17,850 शिक्षक पद खाली हैं। उच्च शिक्षा में 4,000 से अधिक रिक्त पदों और SC/ST/OBC आरक्षण न मिलने को "सिस्टमिक भेदभाव" बताया गया। मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा गया कि निजी क्षेत्र में केवल 21% झारखंडियों को रोज़गार मिलता है, जबकि 75% आरक्षण नियम की धज्जियां उड़ रही हैं।
राज्य सरकार ने 40,000 रुपये प्रतिमाह से कम वेतन वाली नौकरियों में 75% आरक्षण झारखंडियों के लिए अनिवार्य किया है, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है। यह स्थिति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व को भी बाधित करती है। साथ ही, प्रमोशन में आरक्षण और 50% से अधिक आरक्षण सीमा की मांग लगातार उठती रही है, लेकिन सरकार इस पर भी चुप्पी साधे हुए है। ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़े स्कूल, पर्याप्त शिक्षक न होना और स्थानीय भाषा आधारित शिक्षा की उपेक्षा, राज्य की नई पीढ़ी के लिए खतरे का संकेत हैं।
दूसरी ओर, नियोजन नीति की अस्पष्टता ने भर्ती प्रक्रिया को जटिल और भेदभावपूर्ण बना दिया है। इसका ताज़ा उदाहरण पलामू, लातेहार और खूंटी जिले की चौकीदार बहाली है, जहाँ अनुसूचित जाति के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं की गई- यह साफ तौर पर संवैधानिक आरक्षण नीति की अनदेखी है। पलामू में 2017 से कार्यरत 251 चतुर्थ वर्गीय कर्मियों का सेवा विस्तार समाप्त कर देना और उन्हें स्थाई नियुक्ति न देना भी शासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निकाली गई विज्ञापन संख्या 1/2025 को स्थानीय नियमावली का हवाला देकर प्रभावहीन बना दिया गया 35,000 से अधिक अभ्यर्थियों के साथ यह धोखा है, जो चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। यह महज़ संयोग नहीं है कि 60% से अधिक सरकारी व निजी नौकरियों में बाहरी लोगों का दबदबा बना हुआ है (JSSC RTI के अनुसार)। राज्य में भूमिहीन दलित युवा, आज भी जमीन और जाति प्रमाण पत्र के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
पेपर लीक, बेरोजगारी और पलायन
JSSC-CGL की जनवरी और सितंबर 2024 की परीक्षाएं पेपर लीक के चलते रद्द हुईं, हाई कोर्ट में CBI जांच की मांग के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। वहीं उत्पाद सिपाही भर्ती में नियमावली बदलने के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप हो गई और इसमें 12 अभ्यर्थियों की असमय मौत हुई। इसी तरह, झारखंड सिपाही प्रतियोगिता परीक्षा-2023 के अंतर्गत 4919 पदों के लिए जारी विज्ञापन भी वापस ले लिया गया, जिससे हजारों उम्मीदवारों की मेहनत बेकार चली गई। हाई कोर्ट में CBI जांच की मांग के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। नियोजन की अस्पष्टता और परीक्षाओं की असफलता ने राज्य के युवाओं का सरकार और प्रणाली दोनों से विश्वास छीन लिया है।
ऐसी ही स्थिति सभी सरकारी विभागों की है. इतना ही नहीं, बल्कि पलायन, बेरोजगारी और भर्तियों की असमानता ने झारखंड के युवाओं की उम्मीदों को तोड़ दिया है। राज्य की बेरोजगारी दर 17% पार कर चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है। हर साल लाखों झारखंडी युवा रोज़गार की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों, जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब और केरल की ओर पलायन कर रहे हैं। प्रवासी श्रमिक सेल के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों की संख्या 10 लाख से भी ज़्यादा होने का अनुमान है। झारखंड से पलायन करने वाले युवाओं को गंतव्य स्थानों पर शोषण, भेदभाव, अमानवीय कार्यदशाओं, स्थानीय श्रमिकों की तुलना में कम भुगतान और पहचान के संकट जैसे गंभीर सामाजिक अन्यायों का सामना करना पड़ता है।
झारखंड जनाधिकार महासभा ने 5 अगस्त को विधानसभा घेरने के अलावा सात सूत्रीय मांगें रखी हैं, जिनमें रघुवर सरकार की स्थानीयता नीति रद्द करना, स्थायी नियोजन नीति, SC/ST/OBC और महिलाओं के लिए बढ़ा हुआ आरक्षण, भूमिहीन दलितों को जमीन व जाति प्रमाणपत्र देना और पलायन रोकने के उपाय शामिल हैं। युवा नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो आंदोलन और तेज होगा।
युवा कार्यकताओं अजय एक्का, अलका आईंद , अपूर्वा, दीपक रंजीत, मनोज भुइयां , रिया तूलिका पिंगुआ आदि ने मीडिया के समक्ष आकड़ो के साथ झारखण्ड की ये दुखद तस्वीर प्रतुत की और इन मुद्दों के समाधान के लिए आन्दोलन की चेतावनी दी। इस आंदोलन में राज्यभर से युवा शामिल होंगे, जो इसे "झारखंड की पहचान और अधिकारों की लड़ाई" बता रहे हैं। राज्य में 17% बेरोज़गारी दर और हर साल 10 लाख से अधिक युवाओं के पलायन के आंकड़े इस आक्रोश की बड़ी वजह हैं।