MP में हर दिन औसतन 41 दलित-आदिवासी महिलाएं बन रही हैं अपराध की शिकार, विधानसभा में सरकार ने पेश किए चौंकाने वाले आंकड़े

11:34 AM Jul 30, 2025 | Rajan Chaudhary

भोपाल – मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में मंगलवार को एक ऐसा सच सामने आया जिसने समाज की जातीय और लैंगिक असमानता की गहरी परतों को उजागर कर दिया। कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद के सवाल पर सरकार ने जो आंकड़े पेश किए, वे राज्य में दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों की भयावह स्थिति को दर्शाते हैं।

2022 से 2024 के बीच 7418 दलित-आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 से 2024 के बीच मध्य प्रदेश में 7418 दलित और आदिवासी (SC/ST) महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें से 338 मामलों में गैंगरेप, और 558 मामलों में पीड़िता की हत्या की गई। ये आंकड़े बताते हैं कि हर दिन औसतन 7 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुईं।

हर दिन 5 SC/ST महिलाएं यौन हिंसा की शिकार, 2 को झेलनी पड़ रही घरेलू हिंसा

इन तीन वर्षों में राज्य में 5983 छेड़छाड़ की घटनाएं दर्ज की गईं, यानी हर दिन करीब 5 दलित या आदिवासी महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार हुईं। इसके अलावा, 1906 घरेलू हिंसा के मामले भी सामने आए, यानी हर दिन लगभग 2 महिलाएं घर के भीतर ही हिंसा झेल रही हैं।

Trending :

तीन साल में 44,978 अपराध: हर दिन 41 महिलाओं के खिलाफ अपराध

विधानसभा में रखे गए आंकड़ों के मुताबिक, बीते तीन वर्षों में कुल 44,978 अपराध दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ दर्ज हुए। यानी हर दिन औसतन 41 SC/ST महिलाएं किसी न किसी रूप में अपराध की शिकार बनीं।

आदिवासी महिलाएं यौन और घातक हिंसा की ज्यादा शिकार, दलित महिलाएं घरेलू हिंसा से पीड़ित

विधानसभा में पेश रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि आदिवासी महिलाएं अधिकतर मामलों में रेप और हत्या जैसी घातक हिंसा का शिकार बनीं, जबकि दलित महिलाओं को घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ का अधिक सामना करना पड़ा। यह वर्गीय और जातिगत भेदभाव की गहराई को दिखाता है।

MP की 38% आबादी SC/ST, फिर भी सबसे असुरक्षित महिलाएं यहीं से

मध्य प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 38% हिस्सा अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों से आता है (SC – 16%, ST – 22%)। इसके बावजूद, इस वर्ग की महिलाएं समाज में सबसे अधिक हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं, जो राज्य की कानून व्यवस्था और सामाजिक संरचना पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

आजादी के 76 साल बाद भी SC-ST महिलाओं की सुरक्षा अधूरी?

इन आंकड़ों के सामने आने के बाद सवाल उठता है कि क्या भारत की कानून व्यवस्था, प्रशासन, और सामाजिक सोच अब भी इन वर्गों की महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने में विफल हैं? क्या ये केवल नंबर हैं, या उन हज़ारों असहाय जिंदगियों की चीखें, जिन्हें कभी इंसाफ नहीं मिला?

यह रिपोर्ट क्यों मायने रखती है?

  • मध्य प्रदेश में SC/ST महिलाओं के खिलाफ अपराध में लगातार वृद्धि हो रही है।

  • जातिगत और लैंगिक आधार पर हिंसा की शिकार महिलाएं अब भी न्याय से दूर हैं।

  • यह रिपोर्ट सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में दलित-आदिवासी महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता में लाने की जरूरत बताती है।