लेखिका जसिंता केरकेट्टा को मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार

07:44 PM Dec 21, 2024 | The Mooknayak

नई दिल्ली: जसिंता केरकेट्टा को महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 21 दिसंबर को मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार नवोदित आदिवासी साहित्य परिषद द्वारा दिया गया. परिषद द्वारा महाराष्ट्र के डॉ. संजय लोहकरे को भी व्यंकटेश आत्राम साहित्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. प्रशस्ति पत्र, शाल के साथ दस हज़ार की पुरस्कार राशि उन्हें दी गई.

जसिंता केरकेट्टा ने यह पुरस्कार लेते हुए कहा कि आदिवासी समाज को स्वशासन के लिए सशक्त होने, अपना अस्तित्व और प्रकृति को बचाने के लिए बौद्धिक रूप से सशक्त होना पड़ेगा. इसके लिए पढ़ने, लिखने, रचने, संगठित होने, अपनी कमियां और शक्तियों को पहचानने की ज़रूरत है. उस बड़ी व्यवस्था को भी पहचानने की ज़रूरत है जो हर कीमत पर विकास के नाम पर, धर्म के नाम पर आदिवासियों का बलिदान चढ़ाएगा. इसलिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों को एकजुट होने की ज़रूरत है. एक बेहतर दुनिया के सपने देखने वाले सभी लोगों से जुड़ने और उन्हें जोड़ने के रास्ते भी देखने चाहिए.

कार्यक्रम ने उपस्थित लोगों को संबोधित करती हुईं जसिंता केरकेट्टा

आपको बता दें कि, यवतमाल जिले के मधुकरराव मड़ावी समाज सुधारक और चिंतक थे. व्यंकटेश आत्राम गोंडी साहित्य को सशक्त करने वाले व्यक्ति थे. दोनों ने महाराष्ट्र में आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया है, जिनके नाम पर हर साल दो पुरस्कार साहित्य के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने वाले लोगों को दिया जाता है. इस दौरान मधुकरराव मड़ावी के पुत्र शंकर मड़ावी मौजूद थे.

महाराष्ट में आदिवासियों ने आदिवासी युवाओं, स्त्रियों, लोगों को पढ़ने, लिखने, रचने के लिए प्रोत्साहित करने और आदिवासी समाज में वैचारिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांगठनिक चेतना को जगाने के लिए नवोदित आदिवासी साहित्य परिषद का निर्माण किया है. इसके ही बैनर तले हर साल एक साहित्यिक सम्मेलन, कविता पाठ और पुरस्कार समारोह का आयोजन किया जाता है. इस दौरान आदिवासियों द्वारा लिखे किताबों का विमोचन भी होता है. इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के अलग अलग जिलों से आदिवासी जुटते हैं.

महाराष्ट में आदिवासी महात्मा फुले, बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों के साथ धरती आबा वीर बिरसा मुंडा को अपनी प्रेरणा मानते हैं. और उनके जीवन संघर्ष का प्रचार प्रसार महाराष्ट्र के आदिवासियों के बीच किया है.

सम्मान समारोह और साहित्यिक सम्मेलन में वरिष्ठ साहित्यकार वसंत कनाके, प्रब्रह्मनंद , डॉ. अरविंद कुलमेथे, बालकृष्ण गेडाम, राजू मड़ावी, शंकर मड़ावी, कविता कनाके, गंगा गवली, रामदास जी गिलंदे, प्रो. नितिन टेकाम, प्रो. नीलकांत कुलसंगे, कुसुम अलाम सहित अन्य लोग मौजूद रहे.