रांची। एक समय था जब झारखंड के सभी जिलों में महुआ और माढ़ी से बनी शराब का ग्रामीणों द्वारा एक बड़े स्तर पर सेवन किया जा रहा था। झारखंड में इसे हड़िया शराब के नाम से जाना जाता है। इस जहरीली शराब के सेवन से मौत के मामले भी राज्य में तेजी से बढ़े थे। इन मामलों को रोकने के लिए हेमंत सोरेन ने सत्ता में आते ही एक नई योजना को लागू कर दिया। इस योजना के तहत पूरे राज्य में लगभग छत्तीस हजार महिलाओं को जोड़कर सरकार ने उनकी दशा और दिशा दोनों बदल दी हैं। इस योजना के तहत मिलने वाली राशि से अब इन महिलाओं के रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं। योजना का लाभ मिलने के बाद महिलाओं ने कच्ची शराब बनाने का काम छोड़कर छोटे-छोटे रोजगार के साधन स्थापित किये हैं।
झारखंड में लॉकडाउन में हड़िया बेचने वाली महिलाओं को चिह्नित करने का काम सरकार ने किया था। उस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि शराब का धंधा समाज के लिए अच्छा नहीं माना जाता है और उसमें भी यह कार्य महिलाएं करें, यह पूरे घर-परिवार समाज और झारखंड के लिए शर्मनाक थी. इस कारण पिछले लॉकडाउन में राज्य सरकार ने फूलो-झानो आशीर्वाद योजना की शुरुआत करते हुए हड़िया-दारू बेचने वाली महिलाओं को चिह्नित कर उन्हें आजीविका के दूसरे साधन से जोड़ने का निर्णय लिया।
राज्य सरकार ने आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाते हुए झारखंड को नशामुक्त बनाने में इस योजना को लागू कर दिया। 20 सितंबर 2020 को उन्होंने फूलो झानो आशीर्वाद अभियान चलाया और इन महिलओं को आर्थिक सहायता देकर समाज के मुख्यधारा से जोड़ते हुए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये।
अब तक इस योजना का लगभग 36 हजार महिलाओं को लाभ मिल चुका है। यह महिलाएं हड़िया-शराब बेचना छोड़कर सम्मान की जिंदगी जी रही हैं। सबसे खास बात ये कि इससे गांव भी नशामुक्त हो रहे हैं। एक तरफ जहां महिलाएं शराब बेचना छोड़कर स्वरोजगार कर रही हैं और इज्जत की जिंदगी जीकर परिवार को सहयोग कर रही हैं, वहीं झारखंड को नशामुक्त बनाने की दिशा में भी ये जुटी हुई हैं। इससे न सिर्फ महिलाओं की जिंदगी गुलजार हो गयी है, बल्कि घर की बात तो छोड़िए गांव में भी किसी महिला द्वारा हड़िया-शराब की बिक्री नहीं की जा रही है।
द मूकनायक ने इन महिलाओं से सम्पर्क किया। गोड्डा की वीणा ने पोल्ट्री फार्म शुरू किया और आज सम्मानजनक जीवन जी रही है। वह कहती हैं, "जब हडिया- दारु का काम करती थी तब आए दिन समाज के लोग मुझसे गाली-गलौज और लड़ाई करते थे। इससे शर्ममिंदगी महसूस होती थी, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।"
बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड के बंगा गांव की रहने वाली अंजू को फूलों झानो योजना के तहत दस हजार रूपये की आर्थिक सहायता मिली है। वह कहती हैं, "हड़िया शराब बेचने के कारण समाज में हमारा सम्मान नहीं होता था। इस योजना ने हमारा खोया हुआ सम्मान वापस दिलवाया है। अब मेरा अपना छोटा होटल है। मैं अपने होटल पर चाय -समोसा, पकौड़ी बनाकर बेचती हूँ। अब यह काम बहुत ही सम्मानजनक है।"
बोकारो जिला की सुतली देवी कहतीं हैं, "पहले दारु-हड़िया की बिक्री से खाने-पीने के अलावा बच्चों की पढ़ाई का भी खर्च नहीं निकल पाता था। आये दिन पुलिस हमें परेशान करती थी। साथ ही आस-पास की महिलाएँ ताना देतीं थी, लेकिन अब राशन दूकान से घर में रहकर परिवार का खर्च निकल जाता है।"
लोहरदगा जिले के कुडू प्रखण्ड रहने वाली कमला देवी को हड़िया-दारू बेचने के काम से छुटकारा मिल गया है। इस योजना के तहत मिले दस हजार रुपये के ब्याजमुक्त ऋण से उन्होंने किराना दुकान खोली है जिससे वे सम्मान से हर महीने 5000 रुपये तक कमा लेतीं हैं।
साहेबगंज जिले के बरहेट की मोनिका मरांडी कभी हड़िया दारू बेचने को विवश थी। सरकार की तरफ से मिली आर्थिक सहायता की मदद से उन्होंने एक बैट्री रिक्शा खरीदा है। वह बैट्री रिक्शा चलाकर अच्छी आय कर रही है। वहीं रोतिला देवी लोन के जरिए बत्तख पालन कर 5000 महीने कमा रही है। मोनिका एवं रोतिला जैसी 32 लाख महिलाओं के जीवन में सखी मंडल के जरिए बदलाव दस्तक दे रही है।
बदलाव की ये कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं है। पूरे झारखंड में बड़ी संख्या में महिलाओं ने हड़िया-दारू बेचना छोड़ दिया है और खेती-बारी, पशुपालन एवं बत्तखपालन समेत अन्य स्वरोजगार से जुड़कर जिंदगी की नयी शुरुआत कर चुकी हैं, वह अपने-अपने गांव को नशामुक्त बना रही हैं। फूलो झानो आशीर्वाद अभियान से बहार आई इन महिलाओं के परिवारों में खुशियां लौट आयी हैं।
सरकार बनने के एक साल बाद शुरू हुआ मौत का सिलसिला थम गया
हेमंत सोरेन की 2019 में सरकार बनी थी। सरकार के कार्यकाल का अभी एक साल भी ठीक से नहीं गुजरा था कि फरवरी 2020 में गिरिडीह जिले के देवरी एवं सरिया थाना क्षेत्र में जहरीली शराब पीने से 11 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं इससे पूर्व वर्ष 2018 में रांची जिले के गोंदा थाना क्षेत्र व वर्ष 2017 में रांची के डोरंडा थाना क्षेत्र में भी जहरीली शराब पीने से कई व्यक्तियों की मौत हुई थी। इस मौत के सिलसिले जो रोकने के लिए हेमंत सोरेन ने इस योजना को जमीन पर उतारा, जिससे कई परिवारों की जिंदगियां बदल गई हैं।