कोरबा- छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कुसमुंडा क्षेत्र में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब लगभग 20-25 भू-विस्थापित आदिवासी महिलाओं ने दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) के कार्यालय के मुख्य द्वार पर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। 18 जुलाई को महिलाओं ने उनकी पुश्तैनी जमीनों के अधिग्रहण के बाद उचित मुआवजे, नौकरी और पुनर्वास की मांग को लेकर यह प्रदर्शन किया।
पहली बार हुआ है जब महिलाओं ने अर्धनग्न होकर ऐसे किसी दफ्तर के भीतर प्रदर्शन किया है। महिलाओं ने अपनी चूड़ियाँ और साडी लहराते हुए नारे लगाये- SECL चूड़ी-साड़ी पहन लो! महिलाओं में इस प्रकार की नाराजगी और गुबार देखकर प्रशासन भी सकते में आ गया और सोशल मीडिया में प्रदर्शन के क्लिप खूब वायरल हुए जिसके बाद छतीसगढ़ सरकार की कड़ी आलोचना भी की गई।
कोरबा, छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख औद्योगिक और खनन क्षेत्र है, जो कोयला खदानों और बिजली उत्पादन के लिए जाना जाता है। कुसमुंडा में SECL की कोयला खदानें भारत की सबसे बड़ी खनन परियोजनाओं में से एक हैं। इन परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहण किया गया, जिसमें कोरवा और अन्य अनुसूचित जनजातियों की पुश्तैनी जमीनें शामिल हैं। ये समुदाय पीढ़ियों से इन जमीनों पर खेती और वन संसाधनों के जरिए अपनी आजीविका चला रहे थे।
वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत इन्हें जमीन और वन संसाधनों पर अधिकार दिए गए हैं, लेकिन इन प्रावधानों का बार-बार उल्लंघन हुआ है। SECL ने कोयला खनन के लिए इन जमीनों को अधिग्रहित किया और बदले में प्रभावित परिवारों को मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास का वादा किया गया। हालांकि, कई वर्षों बाद भी ये वादे पूरे नहीं हुए, जिसने आदिवासी समुदायों में गहरी निराशा और आक्रोश व्याप्त है।
भू-विस्थापितों का रोजगार प्रकरण काफी लंबे अरसे से रुका हुआ हैं जिस पर आवेदन करते कई वर्ष गुजर गए है किंतु भू-विस्थापितों को रोजगार नहीं मिल सका। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने बताया कि पहले भी उन्होंने खदान में कई बार प्रदर्शन और हड़ताल की थी।
प्रभावित परिवारों ने बताया कि उनकी जमीनें छीनी गईं, लेकिन उन्हें न तो उचित मुआवजा मिला, न ही नौकरी, और न ही पुनर्वास की सुविधाएँ। SECL ने भू-विस्थापितों के लिए नौकरी का वादा किया था, लेकिन कई मामलों में फर्जी नियुक्तियाँ की गईं। कुछ परिवारों ने आरोप लगाया कि उनके नाम पर अन्य लोगों को नौकरी दी गई या उनके हक को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। जमीन छीने जाने के बाद ये परिवार अपनी आजीविका खो चुके हैं और आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि उनकी जमीनें औद्योगिक विकास के नाम पर छीनी गईं, लेकिन इसका लाभ बड़े उद्योगपतियों को मिला, जबकि स्थानीय आदिवासी समुदाय उपेक्षित रहा। भू-विस्थापित रोजगार एकता महिला किसान कुसमुंडा के अध्यक्ष का कहना है कि असली भू विस्थापित के स्थान पर फर्जी तरीके से लगे हुए व्यक्तियों को हटाया जाय। साथ ही असली वारिस को रखने हेतू बार बार आवेदन किया गया था।
कई बार स्थानीय प्रशासन और SECL अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिसने इन महिलाओं को इस चरम कदम की ओर धकेल दिया।
इस प्रदर्शन ने सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर व्यापक ध्यान आकर्षित किया। सोशल मीडिया, विशेष रूप से X पर, इस घटना की व्यापक चर्चा हुई, और कई लोगों ने इसे सरकार की संवेदनहीनता का प्रतीक बताया। हालांकि, अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक सरकारी बयान या कार्रवाई की पुष्टि नहीं हुई है। यह प्रदर्शन आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर बढ़ते खतरे को भी दर्शाता है। जमीन छीने जाने के बाद ये समुदाय न केवल आर्थिक रूप से कमजोर हुए हैं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक जड़ें भी खतरे में हैं।