नई दिल्ली- जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस विभाग की प्रोफेसर डॉ. सोनाझरिया मिन्ज एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अपने जीवन में असंख्य चुनौतियों का सामना करते हुए न केवल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि वैश्विक मंच पर आदिवासी समुदायों के अधिकारों, ज्ञान प्रणालियों और आत्मनिर्णय को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को की को-चेयर के रूप में नियुक्त होकर इतिहास रच दिया है। भारत की ओरांव आदिवासी समुदाय से डॉ. सोनाझारिया मिंज और कनाडा के निस्गा राष्ट्र से डॉ. एमी पैरेंट संयुक्त रूप से स्वदेशी ज्ञान अनुसंधान शासन और पुनर्वास में परिवर्तन में अगले 4 सालों के लिए यूनेस्को चेयर का नेतृत्व करेंगे। यह नियुक्ति वैंकूवर में साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय और नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के बीच ऐतिहासिक सहयोग का प्रतीक है। अगले चार वर्षों में, सह-अध्यक्ष कनाडा, भारत और उसके बाहर स्वदेशी समुदायों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करेंगे, ताकि उनके आत्मनिर्णय और अनुसंधान प्रशासन के अधिकारों को मजबूत किया जा सके।
डॉ. सोनाझारिया मिंज भारत की पहली आदिवासी हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पद प्राप्त हुआ है। 1989 से यूनेस्को इस प्रकार की नियुक्ति करता आया है और अब तक 1061 चेयर नियुक्त हुए हैं जिसमें भारतीय भी शामिल हैं लेकिन अब तक भारत से कोई भी आदिवासी व्यक्ति शामिल नहीं हो सका था लेकिन डॉ. सोनाझारिया मिंज ना केवल पहली आदिवासी महिला बल्कि भारत के जनजाति वर्ग से पहली शख्सियत बन गयी हैं जिन्हें ये मुकाम हासिल हुआ है। लेकिन उनका ये सफ़र आसान नहीं था- सामाजिक, भाषाई और लैंगिक भेदभाव की कई चुनौतियों को पार करके आज वे यहाँ तक पहुंची हैं। इससे पहले 2020 में सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति बनने पर डॉ. मिंज ने भारत में किसी यूनिवर्सिटी की पहली आदिवासी महिला कुलपति बनने का भी रिकार्ड कायम किया।
क्या आप यकीन करेंगे कि अपनी आदिवासियत की वजह से मिन्ज को 5 साल की नन्ही उम्र में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला नहीं मिल सका था। इसका कारण उनकी आदिवासी पहचान और उनके पिता का प्रोटेस्टेंट पादरी होना था, जो उस कैथोलिक स्कूल के प्रशासन को स्वीकार्य नहीं था। इस घटना ने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने कहा, “ मैं सिर्फ़ पाँच साल की थी, लेकिन मुझे समझ में आ गया कि मुझे उस स्कूल में दाखिला इसलिए नहीं मिला क्योंकि मैं आदिवासी थी। मुझे नहीं पता कि मैं भेदभाव को समझती थी या नहीं, लेकिन मैं वंचना को समझती थी। मुझे पता था कि मैं आदिवासी होने की वजह से किसी चीज़ से वंचित थी और इसलिए मैं जानती थी कि मैं एक ऐसे सामाजिक क्षेत्र से हूँ जिसे भविष्य में भी भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है। मुझे पता था कि मुझे हतोत्साहित किया जा सकता है, इसलिए मैं यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मैं अपनी क्षमता का निर्माण कर सकूँ और उस पर भरोसा कर सकूँ। मैंने उन्हें गलत साबित करने का संकल्प लिया।"
इसलिए जब मिंज कक्षा एक में थी और उसने अपनी शिक्षिका को यह कहते हुए सुना कि वह एक अच्छी शिक्षिका बनेगी, तो उसे लगा कि यह एक भविष्यवाणी है, "मैं गणित में अच्छी थी, इसलिए मैंने तुरंत फैसला किया कि मैं बड़ी होकर गणित की शिक्षिका बनूँगी।" मिंज कहती हैं कि जब उन्होंने स्कूल में दाखिला लिया तो उन्हें भाषा की बहुत समस्या थी और यह एक ऐसा विषय था जिससे उन्हें जूझना पड़ा। दूसरी ओर, गणित आसान था। इसके लिए उन्हें हिंदी जानने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन इसलिए उन्हें यह पसंद आया और उन्होंने तय किया कि वे इसमें सर्वश्रेष्ठ बनेंगी।
उनके एक बार एक गैर-आदिवासी गणित शिक्षक ने उन्हें यह कहकर हतोत्साहित करने की कोशिश की, “तुमसे ना हो पाएगा।” इस टिप्पणी ने उन्हें और अधिक दृढ़ निश्चयी बना दिया। उन्होंने गणित में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और कक्षा में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किए। उन्होंने ठान लिया कि वह न केवल गणित में उत्कृष्टता हासिल करेंगी, बल्कि एक गणित शिक्षक बनेंगी।
UNESCO Co-chairs to advance Indigenous rights, knowledge systems, and self-determination
— Dr. Abhay Sagar Minz (@abhayminz) June 16, 2025
Dr. Amy Parent & Dr. Sonajharia Minz, appointed UNESCO Co-chairs to advance Indigenous rights, knowledge systems,and self-determination. Groundbreaking collaboration will uplift Indigenous… pic.twitter.com/SamvprgCVv
भेदभाव से परेशान होकर साऊथ इंडिया शिफ्ट हुआ परिवार
संथाल जनजाति के बाद झारखंड में भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति उरांव समुदाय, कई भारतीय राज्यों में लगभग 3.6 मिलियन लोगों का समूह है, जिसमें से 1.7 मिलियन अकेले झारखंड में रहते हैं। डॉ. मिंज की मातृभाषा कुरुख है, और वह अपने वंश को मिंज (मछली) कबीले से जोड़ती हैं, उनकी माँ खेस (धान) कबीले से थीं।
झारखंड से मिंज का परिवार दक्षिण भारत चला गया. उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें अपने गृह राज्य में जिस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा, वैसा उन्हें नहीं करना पड़ेगा, "हमारे रूप-रंग के कारण, मेरे पिता को लगा कि हम यहाँ के लोगों से ज़्यादा मिलते-जुलते दिखेंगे और हमें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।" बैंगलोर में अपना प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स पूरा करने के बाद मिंज चेन्नई के महिला क्रिश्चियन कॉलेज में स्नातक की डिग्री के लिए गईं और फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से गणित में मास्टर्स की डिग्री ली। लेकिन वह यहाँ सिर्फ़ पढ़ाई-लिखाई में ही शामिल नहीं थीं, बल्कि खेलकूद में भी आगे थीं। उन्होंने हॉकी में बेहतरीन प्रदर्शन किया। MCC के बाद मिंज ने JNU दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में एमफिल और पीएचडी की डिग्री हासिल की।
बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय में में सहायक प्रोफेसर से सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की वीसी बनने तक का सफर
1990 में मिंज की पहली नौकरी भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में थी. वह मार्च 1991 में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के कंप्यूटर विज्ञान विभाग में शामिल हुईं। जनवरी 1992 में मिंज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज में सहायक प्रोफेसर बन गईं। उन्होंने 1997 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली से कंप्यूटर विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
मिंज को 1997 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया था और 2005 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज में प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया था। उनके शोध के क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, सॉफ्ट कंप्यूटिंग (रफ सेट थ्योरी, ग्रैन्युलर कंप्यूटिंग), डेटा माइनिंग और जियोस्पेशियल एनालिटिक्स शामिल हैं।
27 मई 2020 को झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें दुमका में सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया । मुख्यधारा की आदिवासी भाषाओं, कला और संस्कृति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के साथ, झारखंड के दुमका में सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में संथाल संस्कृति अध्ययन, आदिवासी डिजाइन, कला और शिल्प पर सर्टिफिकेट कोर्स जैसे नए कार्यक्रम शुरू किये । 2022 में बार्सिलोना यूनेस्को उच्च शिक्षा सम्मेलन में उन्होंने उच्च शिक्षा में आदिवासी/स्वदेशी ज्ञान की भूमिका पर एक सत्र में भाग लिया।
जून 2023 में झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद सोनाझरिया मिंज अपने मूल संस्थान, स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में लौट आईं।
मिंज सिर्फ जेएनयू में प्रोफेसर ही नहीं रहीं , बल्कि वे जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष भी बनीं, जो देश के सबसे लोकप्रिय, आकर्षक और 'राजनीतिक' शिक्षक संगठनों में से एक है। अपने कार्यकाल के दौरान, मिंज ने यह भी सुनिश्चित किया कि वे कैंपस में हाशिए पर पड़े छात्रों से जुड़ें और उन्हें सशक्त बनाएं और उनके संघर्षों में उनकी मदद करें।
क्या है यूनेस्को चेयर?
यूनेस्को चेयर एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक पद है, जो दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में शिक्षा, संस्कृति, सतत विकास और मानवाधिकार जैसे यूनेस्को के महत्वपूर्ण विषयों पर वैश्विक सहयोग, ज्ञान साझा करने और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है। 125 से अधिक देशों में 1,000 से ज्यादा यूनेस्को चेयर हैं।
Indigenous Knowledge Research Governance (IKRG) स्वदेशी समुदायों द्वारा निर्देशित एक प्रणाली है, जो उनके ज्ञान, अधिकारों, भाषाओं और भूमि से जुड़े शोध को नियंत्रित करती है। यह प्रकृति और सभी जीवों के प्रति सम्मान, साझेदारी और जिम्मेदारी पर आधारित है। साथ ही, यह लैंगिक हिंसा, शोषण और शोध में औपनिवेशिक मानसिकता का विरोध करता है।
को- चेयर्स दुनिया भर के स्वदेशी समुदायों, संगठनों और सरकारों के साथ मिलकर काम करेंगे, जैसे सांस्कृतिक धरोहरों की वापसी (जबसे चुराई या ली गई चीजें उनके असली मालिकों को लौटाई जाएँ)। स्वदेशी-नेतृत्व वाले शोध मॉडल बनाना। स्वदेशी भाषाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नीतियाँ बनाना है। इसका मकसद स्वदेशी लोगों को अपने ज्ञान, संसाधनों और भविष्य पर खुद का नियंत्रण दिलाना है।