भोपाल। मध्य प्रदेश के सतना जिले के अनुसूचित जनजाति पोस्ट मैट्रिक छात्रावास के छात्रों ने एक बार फिर प्रशासन के खिलाफ आवाज़ बुलंद की है। शनिवार देर रात 11 बजे 18 छात्र कलेक्टर बंगले के बाहर धरने पर बैठ गए। छात्रों ने छात्रावास अधीक्षक रामानंद कुशवाहा और कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि उन्हें दूषित भोजन दिया जा रहा है और विरोध करने पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।
छात्रों की आपबीती: मच्छरदानी और जरूरत का सामान भी नहीं मिलता
एमए बीएड कर रहे छात्र जितेंद्र दोहरे ने बताया कि अधीक्षक मच्छरदानी सहित कई आवश्यक सामानों को कमरे में बंद कर रखते हैं, जिससे छात्रों को परेशानी होती है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिकायत करने पर छात्रों को धमकाया जाता है और बात को नजरअंदाज किया जाता है।
छात्र रामप्रकाश ने छात्रावास की महिला कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वे छात्रों से बदसलूकी करती हैं और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देती हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि महिला कर्मचारी छात्रों के हाथ से रोटी तक छीन लेती हैं।
एसडीएम ने की जांच
छात्रों के प्रदर्शन की सूचना मिलते ही रविवार को एसडीएम सिटी राहुल सिलाडिया छात्रावास पहुंचे। उन्होंने किचन, पानी की टंकी, साफ-सफाई और अन्य व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया। छात्रों से बात कर उन्हें समझाया गया और भरोसा दिलाया गया कि समस्याओं का समाधान होगा।
एसडीएम ने कहा, "मुख्य समस्या छात्रों और अधीक्षक-कर्मचारियों के बीच समन्वय की कमी है। हमने निरीक्षण के दौरान पाई गई खामियों को दूर करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही छात्रों की एक समिति बनाई जाएगी, जो सीधे तौर पर मुझसे समस्याओं की रिपोर्टिंग करेगी।"
पहले भी हो चुकी है शिकायत
यह पहला मौका नहीं है जब छात्रावास के खिलाफ इस तरह की शिकायतें सामने आई हैं। इससे पहले 28 मार्च को भी करीब 40 आदिवासी छात्रों ने ऐसी ही शिकायत की थी। तब तहसीलदार की मध्यस्थता से मामला शांत हुआ था और अधीक्षक को हटाया गया था। लेकिन छात्रों का कहना है कि परिस्थितियां नहीं बदलीं, केवल जिम्मेदार चेहरे बदले हैं।
छात्रों ने मांग की है कि अधीक्षक रामानंद कुशवाहा को तत्काल हटाया जाए और भोजन की गुणवत्ता में सुधार किया जाए। साथ ही छात्रावास में शोषण और धमकी देने की घटनाओं की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए।
कानूनी प्रावधान
विधि विशेषज्ञ और अधिवक्ता मयंक सिंह ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि यदि अनुसूचित जनजाति के छात्रों के साथ छात्रावास में भेदभाव या प्रताड़ना की जाती है, तो यह एक गंभीर अपराध है। ऐसा करना अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दंडनीय है।
उन्होंने बताया कि अगर किसी छात्र को जानबूझकर डराने या अपमानित करने के लिए अपशब्द कहे जाते हैं, तो यह धारा 3(1)(r) के तहत आता है, जिसमें 6 महीने से 5 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। इसी तरह, अगर किसी जनजातीय छात्र को खाने-पीने की सुविधा से वंचित किया जाता है, तो यह धारा 3(1)(z) के तहत अपराध है। ऐसी स्थिति में छात्र पुलिस में शिकायत करें, तो इन धाराओं में मामला दर्ज किया जा सकता है।