रांची। विधानसभा चुनावों में जीत के लिए अनेक राजनैतिक पार्टियां लाखों करोड़ों रूपये की योजनाएं देने का दम्भ भर रहीं हैं। राजनैतिक पार्टियों का अधिक झुकाव योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को रिझाने में लगा है। हाल ही में झारखंड सरकार द्वारा कम समय में लागू की गई प्रभावशाली योजना जिसे 'मंईया सम्मान योजना' के नाम से जाना जा रहा है, के पोस्टर पूरे झारखंड में नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ 'गोगो दीदी योजना' के माध्यम से दूसरी पार्टी महिलाओं को रिझाने में लगी है। इन चुनावी मुद्दों के बीच झारखंड में खेल का मुद्दा भी अन्य मुद्दों से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
झारखंड की इस धरती पर गांव से लेकर शहर तक आपको कई जगह फुटबॉल के मैदान देखने को मिल जायेंगे। यह मैदान झारखंडी युवाओं और युवतियों में खेल के प्रति प्रेम को दर्शाता है। हालांकि, राज्य सरकार के पास खेलों के लिए सीमित संसाधन हैं। यही कारण है कि खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा विश्व स्तर पर प्रदर्शन करने के लिए उचित दशा और दिशा नहीं मिल पा रही है। यही कारण है कि प्रतिभावान खिलाड़ी संगीता सोरेन और उसके परिवार की जिंदगी मुफलिसी में बीत रही है।

भारत में खेल जगत और खिलाड़ियों से जुड़ी उनके जीवन के संघर्ष की कई कहानियां आप सब ने जरुर पढ़ी होंगी। इन कहानियों में आपने फर्श से अर्श तक एक खिलाड़ी के पहुंचने और उसके जीवन के संघर्ष के बारे में पढ़ा होगा। लेकिन यह कहानी उससे अलग है। सरकार और विभागों की अनदेखी के कारण देश की होनहार खिलाड़ी का जीवन मात्र दो वक्त की रोटी जुटाने में बीत जा रहा है।
यह कहानी भारतीय खेलजगत का एक शर्मनाक पहलू भी है। झारखंड के धनबाद जिले में रहने वाली, राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी प्रतियोगिता में नाम रोशन कर चुकी सोनू खातून अब सब्जी बेचकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं जबकि इंटरनेशनल फुटबॉलर संगीता सोरेन और उनका परिवार मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है। संगीता के पिता दूबे सोरेन नेत्रहीन होने की वजह से कोई काम करने में असमर्थ हैं।
खिलाड़ी की मां सुंदरी सोरेने और दोनों भाई बाबू चंद सोरेन और लक्ष्मण सोरेन दिहाड़ी मजदूर हैं। परिवार की आमदनी कम और खर्चा अधिक होने के कारण पेट पालने के लिए संगीता को भी ईंट भट्टे में काम करना पड़ रहा है। संगीता अंतराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी हैं। संगीता अंडर-17, अंडर-18 और अंडर-19 लेवल पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। अंडर-17 फुटबॉल चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
अगस्त 2020 में संगीता सोरेन तब चर्चा में आई जब परिवार का पेट भरने के लिए ईंट भट्ठे पर काम करने के दौरान एक पत्रकार ने उनका वीडियो कैमरे में कैद किया और इसे सोशल मीडिया पर डाल दिया। देखते ही देखते यह वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह वायरल हो गया। महिला सुरक्षा और अधिकारों की बात करने वाले वर्गों ने इस मुद्दे को तेजी से उठाया।
झारखंड के धनबाद जिले के बाघमारा की अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर संगीता सोरेन आज पत्तल बनाकर अपने और परिवार का भूख मिटाने को मजबूर है। संगीता 2018 में भूटान सहित एशिया के कई देशों में अपने राज्य और देश का नाम रौशन किया। पर आज इनका सुध लेने वाला कोई नहीं। @HemantSorenJMM pic.twitter.com/cth8Yp92ay
— Sohan singh (@sohansingh05) August 6, 2020
इस वीडियो के बाद सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी। वायरल वीडियो का संज्ञान लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संबंधित अधिकारियों को हर सम्भव मदद करने के आदेश दिए थे। जिसके बाद झारखंड स्पोर्ट्स एथोरिटी के द्वारा संगीता को दो लाख पचास हजार रूपये की आर्थिक सहायता दी गई थी। इसके साथ ही झारखंड के सीएम ने स्वयं एक लाख रूपये और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पदाधिकारियों ने इक्यावन हजार रूपये की आर्थिक सहायता पहुंचाई थी।
.@dc_dhanbad कृपया संगीता बेटी और उनके परिवार को जरूरी सभी सरकारी मदद पहुँचाते हुए सूचित करें।
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) August 6, 2020
खेल-खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृतसंकल्पित है और जल्द ही नीति और कार्यप्रणाली के साथ जनता के समक्ष आने वाली है। https://t.co/BJBEPAj5Jn
खेल विभाग में सरकारी नौकरी देने का हुआ था वादा
मुख्यमंत्री कार्यालय से कहा गया था कि संगीता को नियमित प्रशिक्षक/कोच के रूप में नियुक्ति दी जायेगी। इसके साथी ही महिला आयोग ने इस पर एक्शन लेते हुए झारखंड सरकार और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन को चिट्ठी लिखी थी। आयोग ने उनसे संगीता को अच्छी नौकरी देने के लिए कहा था, ताकि वे अपना बाकी जीवन सम्मान के साथ गुजार सकें। लेकिन समय बीतने के साथ ही सब संगीता को सभी भूलते चले गए।
द मूकनायक ने संगीता से की बातचीत
द मूकनायक की टीम ने धनबाद जिले के बाघमारा प्रखंड के रेंगुनी पंचायत में आने वाले बांसमुड़ी गांव में रहने वाली संगीता सोरेन से बातचीत की। संगीता सोरेन कहती हैं, "मैंने फुटबॉल का खेल केवल टाइम पास और मजे के लिए शुरू किया था। मुझे नहीं पता था यह एक सफर में बदल जाएगा और मेरे जीवन का हिस्सा बन जायेगा। शुरुआत में मैं अपनी दोनों बहनों के साथ मैच खेला करती थी। जब उनकी शादी हुई थी तब मैं अकेली ही रह गई। लेकिन मैंने खेलना नहीं छोड़ा।"
'परिवार वाले खिलाफ थे, कहते थे यह लड़कों का खेल है'
संगीता बताती हैं, "मुझे हेमंत सोरेन सरकार की तरफ से कुल तीन लाख पचास हजार की सहायता मिली थी। जिसमें एक लाख रूपये मुख्यमंत्री की तरफ से जबकि दो लाख पचास हजार रूपये की सहायता झारखंड की स्पोर्ट्स ऑथोरिटी से मिली थी। इसके अतरिक्त कांग्रेस के पदाधिकारियों ने इक्यावन हजार रूपये की सहायता दी थी।"
केंद्रीय खेल मंत्री किरन रिज्जू मदद का आश्वासन देकर भूले
I've been informed about footballer Sangeeta Soren, who has represented India in international competitions, and is in a financial crisis in this pandemic. My office has contacted her & financial help will be extended soon. Ensuring a dignified life for athletes is our priority. https://t.co/ldT0i7GxuX
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) May 23, 2021
संगीता सोरेन बताती हैं, "जब मेरे संघर्ष की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे थे तब सभी मेरे संघर्ष को सराह रहे थे। तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री किरन रिज्जू ने भी मेरी मेहनत को सराहा था। उन्होंने मेरी मदद का ऐलान भी किया था, मैं बहुत खुश थी कि मेरे जीवन में बड़ा बदलाव आने वाला है। लेकिन मुझे उनसे सिर्फ आश्वासन ही मिला। इसके अतरिक्त किसी प्रकार की कोई सहायता केंद्र सरकार से नहीं मिली। इससे मेरा मनोबल गिर गया।"
नहीं मिला अबुआ और पीएम आवास का लाभ, आर्थिक मदद से बना घर भी अधूरा

संगीता बताती हैं, "मुझे जो आर्थिक सहायता मिली थी। मेरे माता-पिता और भाई बहन कच्चे मकान में रह रहे थे। हमें अब तक न तो प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला और न ही राज्य सरकार कि अबुआ आवास योजना का लाभ मिला। इस कारण मुझे मिली आर्थिक सहायता से मैंने-मैंने अपना पक्का घर बनाने का निर्णय लिया। लेकिन घर बनाने कि लिए शायद वह राशि कम थी। मेरा मकान अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है। अब हमारे पास पैसा भी नहीं बचा है।"

21 साल के भाई की पढ़ाई का जिम्मा उठाया
संगीता कहती हैं, "मेरी तीन बड़ी बहनों और बड़े भाई की शादी हो चुकी है। मैं और मेरा छोटा भाई अभी पढ़ ही रहे हैं। मेरा छोटा भाई मुझसे दो साल छोटा है। उसकी पढ़ाई का जिम्मा भी मुझ पर है। गर्मी के दिन में मैं ईंट भट्ठे पर काम करके पैसा जोड़ती हूँ और सर्दी के दिनों में टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर पैसा कमाती हूँ, लेकिन यह राशि बहुत ही काम होती है। फिर भी हम किसी तरह अपना जीवन जी रहे हैं।"
वोट मांगने के लिए हाथ फैलाते हैं, जीतने के बाद भी हमारे हाथ खाली
संगीता नेताओं और विधायकों से नाराज हैं। वह कहती हैं, "जब भी चुनाव का समय आता है तब यह सभी प्रत्याशी हमारे आगे फैलाते हैं। हमारा पैर छूकर जाते हैं। लेकिन जब वह चुनाव जीत जाते हैं तब दोबारा झांकने नहीं आते हैं। हम यही उम्मीद लगाते हैं कि यह नेता चुनाव जीतकर योजनाओं के माध्यम से लाभ देकर हमारे खाली हाथों को भर देंगे लेकिन उनके जीतने के बाद भी हमारे हाथ खाली रह जाते हैं।"
'आंखे खोले, बेरोजगार युवाओं को देखकर दुःख होता है'
संगीता सोरेन अपनी सख्त आवाज में कहती हैं, रकार वादे खूब करती है, लेकिन मिलता कुछ भी नहीं है। आप मेरी बात लिख रहे हैं तो सरकार तक मेरी यह बात जरुर पहुंचाइएगा। सरकार से कहियेगा कि सरकार समय रहते अपनी आंखे खोल ले। बेरोजगारी बहुत अधिक बढ़ गई है। हमारे अधिकांश युवा बेरोजगार हैं। कई असुरक्षित और अनियमित नौकरी कर रहे हैं, उन्हें ऐसे देखकर दुःख होता है।"
सब्जी बेचने को मजबूर थी राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी
धनबाद जिले के झरिया जेलगोरा की रहने वाली सोनू खातून राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाजी प्रतियोगिता में मेडल जीतकर नाम रोशन किया था। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें सड़क किनारे सब्जी बेचने पर मजबूर होना पड़ा था। उनसे जुड़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर 2020 में वायरल हुआ। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मामले का संज्ञान लेते हुए उपायुक्त धनबाद को आर्थिक सहायता देने के आदेश दिए थे।
धनबाद,राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी प्रतियोगिता में मेडल जीत चुकी झरिया जेलगोरा की सोनू खातून के अरमान रह गए अधूरे
— Dhananjay Mandal (@dhananjaynews) June 3, 2020
आर्थिक तंगी के कारण सोनू सड़क किनारे सब्जी बेचने पर है मजबूर।
तैयारी करने के लिए चाहिए धनुष @KirenRijiju @MundaArjun @purnimaasingh @HemantSorenJMM @scribe_prashant pic.twitter.com/ChIL69sMYt
बीस हजार की आर्थिक सहायता और अस्पताल में नौकरी
सोनू खातून से जुड़ा वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो सीएम ने मामले का संज्ञान लिया। इसके बाद उपायुक्त धनबाद ने बीस हजार की आर्थिक सहायता दी थी। इसके साथ ही उपायुक्त ने एशियन द्वारकादास जालान सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नौकरी के लिए नियुक्ति पात्र भी सौंपा था।
तीरंदाज सोनू खातून को आज एशियन द्वारकादास जालान सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नियुक्ति का पत्र प्रदान किया गया है। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने पर अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्पांसर भी किया जाएगा।
— DC Dhanbad (@dc_dhanbad) June 12, 2020
जिला प्रशासन इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।@HemantSorenJMM @JharkhandCMO pic.twitter.com/yyBZiyTVRh
भारत और खेलों में प्रतिस्पर्धा
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1.4 बिलियन से अधिक घरों वाला भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। 2022 में, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में ब्रिटेन से आगे निकल गया, और पिछले साल चंद्रमा पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतारने वाले सिर्फ़ चार देशों में से एक बन गया। और इसका नेतृत्व एक महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री कर रहे हैं जिनका वैश्विक मंच पर व्यापक प्रभाव है। उन्हें विश्व गुरु की उपाधि जाती है,लेकिन जब बात ओलंपिक की आती है तो भारत अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन करता है।
भारत ने पेरिस में सिर्फ छह पदक जीते, जो 2021 में टोक्यो में सात पदक के अपने रिकॉर्ड से पीछे रह गया। भारत की एक चौथाई से भी कम जनसंख्या वाला संयुक्त राज्य अमेरिका 126 पदकों के साथ तालिका में शीर्ष पर है, जबकि चीन 91 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर है। पदक तालिका में भारत 71वें स्थान पर है, जो जॉर्जिया, कजाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे बहुत कम आबादी वाले देशों से भी नीचे है। भारत ने 1900 में अपने पदार्पण के बाद से अब तक कुल 41 ओलंपिक पदक जीते हैं , और वे सभी ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में जीते गए हैं।
"नेशन एट प्ले: ए हिस्ट्री ऑफ स्पोर्ट इन इंडिया" के लेखक रोनोजॉय सेन ने हाल ही में एक मीडिया आउटलेट से बातचीत के दौरान कहा था कि, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ओलंपिक और आम तौर पर वैश्विक खेलों में खराब प्रदर्शन कर रहा है। यदि आप जनसंख्या और पदक के अनुपात को देखें तो यह संभवतः सबसे खराब है।"
पेरिस में भारत के लिए उज्ज्वल स्थानों में, भाला खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने टोक्यो 2020 में जीते गए स्वर्ण के साथ रजत पदक भी जोड़ा, और निशानेबाज मनु भाकर ने दोहरा कांस्य पदक जीतकर एक ही खेलों में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की ओलंपिक क्षमता का दोहन न हो पाने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें खेलों में कम निवेश एक प्रमुख कारण है।
खेल विश्लेषक और "ड्रीम्स ऑफ़ ए बिलियन: इंडिया एंड द ओलंपिक गेम्स" के लेखक बोरिया मजूमदार मीडिया आउटलेट से बातचीत के दौरान कहा था, "जब लोग कहते हैं कि 1.4 बिलियन लोग और केवल (छह) पदक, तो यह पूरी तरह से गलत शीर्षक है, क्योंकि ... 1.39 बिलियन लोगों के पास खेल सुविधाओं तक पहुंच नहीं है।" मजूमदार ने कहा कि भारत ओलंपिक में अमेरिका जैसी शीर्ष टीमों की तुलना में बहुत कम एथलीट और सहयोगी स्टाफ भेजता है। उदाहरण के लिए, पेरिस में 117 भारतीय प्रतियोगी गए, जबकि लगभग 600 अमेरिकी थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को व्यापक स्वास्थ्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जो विकास में बाधा डालती हैं और बचपन से ही खेल क्षमता को कम करती हैं। 2023 ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर है । 18.7% के साथ, यह दुनिया में सबसे ज़्यादा बाल दुर्बलता दर वाला देश है - ऐसे बच्चों की संख्या जो अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत पतले हैं - जो गंभीर कुपोषण को दर्शाता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम आयु के एक तिहाई से ज़्यादा बच्चे कुपोषण के कारण बौने हैं, यानी वे अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटे हैं।
2018 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में "खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करने" के लिए एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम "खेलो इंडिया" या "लेट्स प्ले इंडिया" लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में होनहार युवा प्रतिभाओं की पहचान करना और उन्हें वित्त पोषित करना था। उसी वर्ष, भारत ने अपनी टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना (TOPS) को भी नया रूप दिया, जो श्रेष्ठ एथलीटों के लिए प्रशिक्षण, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता, उपकरण और कोचिंग का समर्थन और वित्तपोषण करती है। जुलाई 2024 तक, भारत के खेल मंत्रालय ने खेलो इंडिया कार्यक्रम के तहत खेल बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए राज्य सरकारों को लगभग 260 मिलियन डॉलर आवंटित किए हैं। फिर भी हालात में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं दिखाई देता है.