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कुर्मी समुदाय को ST दर्जे का विरोध: गुमला में आदिवासियों ने भरी 'उलगुलान' हुंकार, कहा - हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं

गुमला: खराब मौसम और बारिश की चुनौतियों के बावजूद, शुक्रवार को गुमला की धरती पर हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा और हथियारों के साथ जुटे। मौका था 'आदिवासी उलगुलान रैली' का, जिसका मुख्य उद्देश्य कुर्मी समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा पाने के प्रयासों का पुरजोर विरोध करना था।

इस विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व विभिन्न सामाजिक संगठनों ने किया, जिनमें आदिवासी छात्र संघ, राजी पड़हा प्रार्थना सभा-भारत और आदिम जनजाति समन्वय समिति प्रमुख रूप से शामिल थे। अपने अस्तित्व और हितों की रक्षा के लिए जुटे इन आदिवासियों ने एक 80 सदस्यीय कोर कमेटी के नेतृत्व में अपना आंदोलन मुखर किया।

रैली विशाल सभा में बदली, नेताओं ने भरी हुंकार

इस प्रदर्शन में उरांव, मुंडा, लोहरा और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) समेत अन्य आदिवासी समुदायों ने अपनी अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया। पहले एक विशाल रैली निकाली गई, जो बाद में एक बड़ी जनसभा में परिवर्तित हो गई। इस सभा को आदिवासी समाज के प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया।

रैली की अध्यक्षता कर रहे पूर्व पुलिस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता जगरनाथ उरांव ने कहा, "यह हमारे सभी आदिवासी समुदायों के लिए एकजुट होने का सही समय है, ताकि हमारे अधिकारों पर किसी भी तरह के अतिक्रमण की कोशिश के खिलाफ मजबूती से लड़ा जा सके।"

"1931 में खुद को क्षत्रिय कहा, अब ST बनना चाहते हैं"

आदिवासी बचाओ मोर्चा के संयोजक और पूर्व मंत्री देवकुमार धान ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कुर्मी समुदाय के दावे पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "साल 2004 में, जनजातीय अनुसंधान संस्थान (TRI) ने कुर्मी समुदाय को आदिवासी मानने से इनकार कर दिया था। इससे पहले, 1931 में मुजफ्फरपुर में हुए एक सम्मलेन में इसी समुदाय ने खुद को 'क्षत्रिय' के रूप में प्रस्तुत किया था और जनेऊ (पवित्र धागा) धारण किया था। आज वही लोग एसटी का दर्जा पाने की कोशिश कर रहे हैं।"

देवकुमार धान ने आगे कहा, "सभी आदिवासी संगठन अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक साथ आए हैं। अभी आदिवासियों पर एक और खतरा मंडरा रहा है, जो कि अगला परिसीमन है। इस परिसीमन से झारखंड में एसटी के लिए आरक्षित सांसद-विधायक सीटों में कटौती हो सकती है। इसके अलावा पेसा (PESA) कानून और अनुसूचित क्षेत्रों से जुड़े मुद्दे भी हमारे सामने हैं।"

"कुर्मियों में जनजातीय लक्षण नहीं"

राज्य की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने भी इस मांग को गलत ठहराया। उन्होंने स्पष्ट कहा, "कुर्मियों में न तो जनजातीय लक्षण हैं और न ही उनकी परंपराएं आदिवासियों जैसी हैं। उनका एसटी दर्जा पाने का प्रयास पूरी तरह से गलत और अन्यायपूर्ण है।"

विरोध प्रदर्शन के बाद, प्रदर्शनकारियों ने एक विस्तृत ज्ञापन गुमला एसडीओ कार्यालय को सौंपा। इस ज्ञापन के साथ कई अनुलग्नक (Annexures) भी जमा किए गए, जिनमें यह समझाया गया है कि कुर्मी समुदाय किस प्रकार आदिवासियों से अलग है।

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