सामाजिक सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले पर बनी बहुप्रतीक्षित फिल्म फुले की रिलीज को दो हफ्ते के लिए टाल दिया गया है, जिससे फुले अनुयायियों में गुस्सा भड़क गया है। अनंत नारायण महादेवन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा मुख्य भूमिका में हैं, और ये 19वीं सदी के भारत में जाति और लैंगिक अन्याय के खिलाफ फुले दंपति की लड़ाई को दिखाती है, जिसमें 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने का उनका ऐतिहासिक कदम भी शामिल है।
लेकिन महाराष्ट्र में ब्राह्मण संगठनों के विरोध और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) द्वारा की गई भारी कटौती के चलते रिलीज टल गई, जिसकी वजह से कार्यकर्ता और प्रशंसक तीखी आलोचना कर रहे हैं।
मिड-डे को दिए एक इंटरव्यू में, अनंत महादेवन ने खुलासा किया कि फिल्म के निर्माताओं को अलग-अलग ब्राह्मण संगठनों से पत्र और नोटिस मिले हैं। डायरेक्टर ने बताया कि ट्रेलर रिलीज के बाद एक गलतफहमी हो गई है। वे और निर्माता इन शंकाओं को दूर करना चाहते हैं ताकि फिल्म को बिना किसी रुकावट के देखा जा सके।
“जब मैंने अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और उन्हें बताया कि हमने कैसे दिखाया है कि कुछ ब्राह्मणों ने ज्योतिबा फुले को 20 स्कूल खोलने में मदद की थी, तो वे खुश हुए। जब फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, तो ये ब्राह्मण ही इसके स्तंभ थे। मैं खुद एक कट्टर ब्राह्मण हूं। मैं अपने समुदाय को क्यों बदनाम करूंगा? हमने सिर्फ तथ्य दिखाए हैं। ये कोई एजेंडा फिल्म नहीं है,” अनंत ने टैब्लॉइड को बताया।
For anyone who wonders why it is almost impossible to make a good and truthful Hindi film, what is happening with the Phule film is an excellent example.
— Darab Farooqui (@darab_farooqui) April 9, 2025
Ananth Mahadevan directed the Hindi biographical film Phule, which focuses on the lives of social reformers Jyotirao Phule… pic.twitter.com/IkzWTWw8zK
स्क्रीन राइटर दारब फारूकी (@darab_farooqui) द्वारा 9 अप्रैल को साझा किए गए सीबीएफसी सर्टिफिकेशन दस्तावेज के अनुसार, बोर्ड ने फिल्म में 12 खास बदलाव मांगे हैं। 29 मार्च 2025 को सर्टिफाइड इस फिल्म की अवधि 129 मिनट 30 सेकंड है। इन कटौती में कई ऐसे सीन हटाए गए हैं जो जाति-आधारित भेदभाव को दिखाते थे, जिसे कार्यकर्ता फिल्म के मुख्य संदेश—फुले दंपति के खिलाफ सिस्टमिक दमन—को कमजोर करने वाला मानते हैं।
मसलन, सीबीएफसी ने एक डायलॉग हटाने को कहा जिसमें कहा गया था, “ब्राह्मण शूद्रों को इंसान नहीं मानते,” और एक सीन जिसमें ब्राह्मण बच्चे सावित्रीबाई फुले पर कचरा फेंकते हैं—जो इतिहासकारों द्वारा स्वीकार किया गया एक सच्चा वाकया है। इसके अलावा, “महार” और “मांग” जैसे जाति-विशिष्ट शब्दों और शिक्षा में ब्राह्मण प्रभाव वाले डायलॉग को भी हटा दिया गया। सीबीएफसी ने एक डिस्क्लेमर जोड़ने को भी कहा कि फिल्म किसी समुदाय को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं रखती, जिससे फुले समर्थकों में और नाराजगी बढ़ गई है, जो इसे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश मानते हैं।
रिलीज टालने का एक बड़ा कारण महाराष्ट्र के ब्राह्मण संगठनों का विरोध है, जिन्होंने ट्रेलर रिलीज के बाद से फिल्म में अपनी समुदाय की छवि पर सवाल उठाए हैं। न्यूज9लाइव की 3 अप्रैल की रिपोर्ट के मुताबिक, इन संगठनों का कहना है कि फिल्म ब्राह्मणों को गलत तरीके से फुले दंपति का विरोधी दिखाती है। एक संगठन के सदस्य ने कहा, “ब्राह्मण समुदाय ने कभी ज्योतिराव फुले या सावित्रीबाई फुले का विरोध नहीं किया। हमें पता चला है कि कई समुदायों ने उनका विरोध किया था, न कि सिर्फ एक ने। लेकिन फिल्म में ब्राह्मण समुदाय को ही विरोधी बनाकर जानबूझकर दिखाया गया है।” उन्होंने उन सीन को हटाने की मांग की जो वे “आपत्तिजनक और बदनाम करने वाले” मानते हैं, जिसमें कचरा फेंकने वाला सीन भी शामिल है, जिसे वे गलत बताते हैं, भले ही इतिहासकार इसे सही मानते हों। इस दबाव को रिलीज टालने की एक बड़ी वजह माना जा रहा है।
रिलीज में देरी और सीबीएफसी की कटौती ने फुले अनुयायियों और कार्यकर्ताओं में गुस्सा भर दिया है, जो इसे जाति-आधारित अत्याचारों की सच्चाई दबाने की कोशिश मानते हैं। X पर दारब फारूकी ने लिखा, “जो कोई सोचता है कि भारत में एक अच्छी और सच्ची हिंदी फिल्म बनाना क्यों लगभग असंभव है, फुले फिल्म के साथ जो हो रहा है वो इसका बेहतरीन उदाहरण है।” उन्होंने सीबीएफसी द्वारा अहम सीन हटाने पर सवाल उठाया और बोर्ड के सदस्यों—जिनमें विद्या बालन, विवान अग्निहोत्री, राजेशकर और चंद्रशेखर जैसे ऊंची जातियों से जुड़े नाम शामिल हैं—पर निशाना साधा।
दूसरे X यूजर्स ने भी इस नाराजगी को साझा किया- @Khaleesi99999 ने लिखा, “52% ओबीसी समाज के फूले जी की फिल्म 3% ब्राह्मणों ने रोक दी। 52% ओबीसी समाज पता नहीं कब तक सोता रहेगा।” @MarwanNizam ने लिखा , “#Phule एक जाति-विरोधी सुधारक की फिल्म है, लेकिन इसमें जाति का जिक्र तक नहीं?!सीबीएफसी…क्या मजाक है!! शायद नाजुक ब्राह्मण जीन को चोट पहुंच जाए।” @satyawan_ ने लिखा, “@vidya_balan ये हैरानी की बात है कि विद्या बालन उस बोर्ड में हैं जिसने सच्चाई को दबा दिया!!!”