नई दिल्ली- पोप फ्रांसिस के 88 वर्ष की आयु में 21अप्रैल को निधन के बाद कैथोलिक चर्च एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहा है। वेटिकन ने नौ दिनों के शोक काल (नोवेंडियाले) की घोषणा की है, जिसके दौरान अगले पोप का चुनाव करने की तैयारी शुरू होगी। इस पवित्र प्रक्रिया में 135 कार्डिनल, जो 80 वर्ष से कम उम्र के हैं, वोट देंगे, और इनमें से चार भारत से हैं। ये चार कार्डिनल—फिलिप नेरी फेराओ (गोवा), बेसिलियस क्लीमिस (केरल), एंथनी पूला (हैदराबाद) और जॉर्ज जैकब कूवकड (केरल)—दुनिया के 1.4 अरब कैथोलिकों के लिए नए नेता का चयन करेंगे। जैसे ही सिस्टिन चैपल की चिमनी से काला या सफेद धुआँ निकलेगा, इनका वोट चर्च के भविष्य को आकार देगा।
भारत के चार कार्डिनल देश की विविध ईसाई परंपराओं—लैटिन, सिरो-मालाबार और सिरो-मलंकारा—का प्रतिनिधित्व करते हैं। केरल में ये तीन चर्च राज्य के 50% से अधिक ईसाइयों का हिस्सा हैं, जो 3.3 करोड़ की आबादी का लगभग 17% हैं। फेराओ, क्लीमिस, पूला और कूवकड की कॉन्क्लेव में मौजूदगी भारत के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है, जो 2013 के कॉन्क्लेव में पांच भारतीय कार्डिनलों की भागीदारी से और मजबूत हुई थी।
भारत के चार कार्डिनल: कौन हैं ये?
पहले दलित कार्डिनल एंथनी पूला (रोमन कैथोलिक चर्च)
63 वर्षीय कार्डिनल एंथनी पूला भारत के पहले दलित कार्डिनल हैं। 15 नवंबर 1961 को आंध्र प्रदेश के पोलुरु में जन्मे पूला ने मिशनरियों की मदद से गरीबी से उबरकर पढ़ाई की और पुरोहित बने। 1992 में पुरोहित बने, वे 2008 से 2020 तक कुरनूल के बिशप रहे और 2021 में हैदराबाद के मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप बने। अगस्त 2022 में पोप फ्रांसिस ने उन्हें कार्डिनल बनाया, जिसे चर्च में जातिगत असमानता को दूर करने की दिशा में कदम माना गया। पूला गरीब बच्चों की शिक्षा और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए काम करते हैं।
कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ (रोमन कैथोलिक चर्च)
72 वर्षीय कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ गोवा और दमन के आर्चबिशप हैं। 20 जनवरी 1953 को मापुसा, गोवा में जन्मे फेराओ 1979 में पुरोहित बने और 1994 में बिशप। अगस्त 2022 में पोप फ्रांसिस ने उन्हें कार्डिनल बनाया, जिससे वे छठे गोअन कार्डिनल बने। भारत के कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस और एशियाई बिशप्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में, फेराओ सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और प्रवासियों के अधिकारों के लिए काम करते हैं। उनका नेतृत्व चर्च को आधुनिक चुनौतियों से जोड़ता है।
कार्डिनल बेसिलियस क्लीमिस (सिरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च)
64 वर्षीय कार्डिनल बेसिलियस क्लीमिस तिरुवनंतपुरम में सिरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च के मेजर आर्चबिशप-कैथोलिकोस हैं। 15 जून 1959 को तिरुवल्ला, केरल में जन्मे, वे 1986 में पुरोहित और 2001 में बिशप बने। 2012 में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने उन्हें कार्डिनल बनाया, जिससे वे सिरो-मलंकारा चर्च के पहले कार्डिनल और उस समय सबसे युवा कार्डिनल बने। 2013 में पोप फ्रांसिस के चुनाव में उन्होंने हिस्सा लिया था, और उस समय उनकी कमरे की खिड़की फ्रांसिस के बगल में थी।
कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवकड (सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च)
51 वर्षीय कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवकड दुनिया के सबसे युवा कार्डिनलों में से एक हैं। 11 अगस्त 1973 को केरल के चेत्तिपुझा में जन्मे, वे सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च से हैं। 2004 में पुरोहित बने कूवकड ने वेटिकन राजनयिक के रूप में पोप फ्रांसिस की अंतरराष्ट्रीय यात्राओं का आयोजन किया। दिसंबर 2024 में उन्हें कार्डिनल बनाया गया, जो उस समय बिशप न होने वाले पुरोहित के लिए दुर्लभ सम्मान था। अब वे इंटररिलीजियस डायलॉग के लिए डिकास्ट्री के प्रीफेक्ट हैं और वेटिकन में भारत का प्रभाव बढ़ाते हैं।
कार्डिनल पूला का पहला दलित कार्डिनल बनना भारत की भागीदारी को और खास बनाता है। उनकी नियुक्ति को समावेशिता की दिशा में कदम माना गया है, जो पोप फ्रांसिस के हाशिए पर रहने वालों के समर्थन से मेल खाता है। कूवकड की हालिया नियुक्ति और क्लीमिस का 2013 का अनुभव भारत के युवा और अनुभवी नेतृत्व को दर्शाता है। फेराओ का एशियाई कैथोलिक कॉन्फ्रेंस में नेतृत्व प्रवास और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत की आवाज को मजबूत करता है।
पोप का चुनाव: सिस्टिन चैपल की चिमनी के काले और सफेद धुएँ का रहस्य
नए पोप का चुनाव सैकड़ों साल पुरानी परंपराओं के साथ सिस्टिन चैपल में होता है। नोवेंडियाले के बाद, भारत के चार कार्डिनलों सहित सभी मतदाता कार्डिनल कॉन्क्लेव में इकट्ठा होंगे, जहां वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे रहेंगे। यूनिवर्सी डोमिनिसी ग्रेगिस के नियमों के तहत, पोप बनने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए।
हर दिन चार बार वोटिंग होती है। कार्डिनल अपने चुने हुए उम्मीदवार का नाम एक कागज पर लिखते हैं, जिसे माइकलएंजेलो की लास्ट जजमेंट पेंटिंग के नीचे एक पात्र में डाला जाता है। तीन कार्डिनल वोटों को जोर से गिनते हैं। अगर कोई उम्मीदवार दो-तिहाई वोट नहीं पाता, तो वोटिंग पेपर को रसायनों के साथ जलाया जाता है, जिससे काला धुआँ निकलता है। यह काला धुआँ दुनिया को बताता है कि अभी पोप नहीं चुना गया और वोटिंग जारी रहेगी।
जब कोई उम्मीदवार दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लेता है, तो कार्डिनल्स के डीन पूछते हैं कि क्या वह चुनाव स्वीकार करता है। स्वीकृति के बाद, नया पोप अपना पापल नाम चुनता है, पारंपरिक वस्त्र पहनता है, और वोटिंग पेपर को अलग रसायनों के साथ जलाया जाता है, जिससे सफेद धुआँ निकलता है। यह सफेद धुआँ सेंट पीटर स्क्वायर में इकट्ठी भीड़ को बताता है कि “हैबेमुस पापम” (“हमें पोप मिल गया”)। फिर एक कार्डिनल सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से नए पोप का नाम घोषित करता है, जो अपना पहला संदेश देता है। कॉन्क्लेव मई 2025 की शुरुआत में शुरू होने की उम्मीद है, जिसमें भारत के कार्डिनल अहम भूमिका निभाएंगे।
जैसे ही सिस्टिन चैपल की चिमनी काले या सफेद धुएँ के लिए तैयार होती है, दुनिया उत्सुकता से इंतज़ार कर रही है। भारत के चार कार्डिनल—प्रत्येक देश की समृद्ध ईसाई विरासत का एक अनूठा पहलू दर्शाते हुए—कैथोलिक चर्च के भविष्य को प्रभावित करने के लिए तैयार हैं। उनके वोट न केवल अगले पोप का चयन करेंगे, बल्कि पोप फ्रांसिस की करुणा, सुधार और समावेशिता की विरासत को भी आगे बढ़ाएंगे। इस बदलाव के दौर में, कॉन्क्लेव में भारत की मौजूदगी वैश्विक ईसाइयत को आकार देने में उसकी बढ़ती भूमिका का प्रमाण है।