कर्नाटक: दलित संघर्ष समिति का RSS पर तीखा हमला, कहा- 'अनुमति जय श्री राम के नारों से नहीं, संविधान से मिलती है'

03:27 PM Nov 25, 2025 | Rajan Chaudhary

कलबुर्गी: दलित संघर्ष समिति (DSS) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की कार्यप्रणाली और विचारधारा पर गंभीर सवाल उठाए हैं। समिति ने आरोप लगाया है कि संघ लगातार भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की भावना के विपरीत काम करता है। हालांकि, समिति का कहना है कि कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के चित्तपुर में 16 नवंबर को निकाले गए पथ संचलन (रूट मार्च) के दौरान संघ को न चाहते हुए भी संविधान का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

100 साल के इतिहास में पहली बार कानून का पालन

24 नवंबर को कलबुर्गी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, दलित संघर्ष समिति के राज्य संयोजक अर्जुन भाद्रे ने एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि RSS के 100 साल के इतिहास में यह पहली बार था जब संगठन को अपने रूट मार्च के लिए कानून और संविधान के दायरे में रहना पड़ा। 16 नवंबर, 2025 को चित्तपुर में आयोजित इस मार्च को अदालत के निर्देशों के बाद ही अनुमति मिली थी।

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भाद्रे ने तंज कसते हुए कहा कि संगठन को अब यह समझ लेना चाहिए कि किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम की अनुमति 'जय श्री राम' के जोरदार नारे लगाने से नहीं, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने से मिलती है।

संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने का आरोप

समिति के संयोजक ने RSS प्रमुख मोहन भागवत के उस हालिया बयान पर भी कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने संगठन के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) की स्थिति पर सफाई दी थी। भाद्रे ने आरोप लगाया कि भागवत ने गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी की है, जो संविधान की गरिमा को कम करती है।

उन्होंने कहा, "भारत का संवैधानिक ढांचा सहिष्णुता, बहुलवाद और समानता की नींव पर खड़ा है। लेकिन दुख की बात है कि RSS से जुड़ी सांप्रदायिक ताकतें इन मूल्यों को कमजोर करने का काम कर रही हैं।"

'जब माओवादी संविधान मान सकते हैं, तो RSS क्यों नहीं?'

अर्जुन भाद्रे ने संघ पर जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले विचार फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने अपनी बात को बल देने के लिए एक हालिया घटना का उदाहरण भी दिया।

The Hindu की रिपोर्ट के अनुसार, भाद्रे ने कहा, "हाल ही में महाराष्ट्र में माओवादियों के एक समूह ने हथियार डालकर आत्मसमर्पण किया। सरकारी पुनर्वास कार्यक्रम के दौरान उन्होंने न केवल राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया बल्कि संविधान को भी स्वीकार किया। जब हथियारबंद विद्रोही मुख्यधारा में लौटकर संविधान का सम्मान कर सकते हैं, तो RSS ऐसा क्यों नहीं कर सकता?"