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केरल के मंदिर में जातिगत भेदभाव: 'कझकम' पद के लिए परीक्षा में अव्वल आया OBC युवा, तो विरोध में उतरे पुजारी — कहा, "ये अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों का!"

त्रिशूर- केरल राज्य, जिसे सामाजिक सुधारों और प्रगतिशील सोच के लिए जाना जाता है, वहां आज भी जातिवाद की जड़ें गहरी हैं। इसका ताजा उदाहरण त्रिशूर स्थित कूडलमणिक्यम मंदिर में देखने को मिला, जहां पिछड़े वर्ग (OBC) से ताल्लुक रखने वाले एक युवक को उसके अधिकार से वंचित कर दिया गया।

देवस्वम रिक्रूटमेंट बोर्ड की परीक्षा में टॉप करने वाले बीए बालू नामक युवा को मंदिर में 'कझकम' के पद पर नियुक्त किया गया था। 'कझकम' का मुख्य कार्य पुजारियों को रस्मों में मदद करना और देवी देवताओं के लिए फूलों की माला बनाना है। हालांकि, मंदिर के उच्च जाति के पुजारियों ने इस नियुक्ति का विरोध किया और मांग की कि यह पद केवल ब्राह्मण/उच्च जाति (वारियर समुदाय) के व्यक्ति को ही दिया जाए। 9 मार्च को मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह होना था, ऐसे में पुरोहितों ने बालू को 'कझकम' पद से नहीं हटाए जाने पर समारोह में सम्मिलित होने से इंकार कर दिया।

बालू ईझवा समुदाय से हैं, जो केरल में पिछड़े वर्ग में आता है। उनकी नियुक्ति को केरल की वामपंथी सरकार और देवस्वम बोर्ड दोनों का समर्थन है लेकिन पुजारियों के विरोध के कारण उसे यह पद नहीं मिल सका। बालू को मंदिर में एक कार्यालयीन नौकरी दे दी गई, जबकि 'कझकम' का पद ब्राह्मण वर्ग के एक व्यक्ति को दे दिया गया।

अगर बालू को यह पद मिलता, तो वह मंदिर के इतिहास में पिछड़े वर्ग से 'कझकम' बनने वाले पहले व्यक्ति होते।

बालू ने इस पूरे प्रकरण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "पुजारियों का रवैया मुझे दुखी करने वाला है। मैं मंदिर में कोई विवाद नहीं चाहता, खासकर उत्सव का माहौल है। मेरे परिवार की भी यही राय है। मैंने मंदिर प्रशासक को एक पत्र लिखकर कहा है कि मुझे 'कझकम' का पद नहीं चाहिए। मैं मंदिर में कार्यालय का काम करने के लिए तैयार हूं।"

देवस्वम बोर्ड के अध्यक्ष सीके गोपी ने बालू को उनके निर्धारित पद पर बनाए रखने के पक्ष में बात की। उन्होंने कहा कि बोर्ड बालू के अनुरोध पर चर्चा करेगा और एक निर्णय लेगा। हालांकि, उन्होंने प्रशासक के फैसले का भी बचाव किया। गोपी ने बताया कि 6 मार्च को, मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से पहले होने वाली शुद्धि रस्म से महज चार घंटे पहले, 'तंत्री' ( पुरोहितों) परिवारों ने एक शिकायत दर्ज की। मंदिर से जुड़े छह परिवारों ने मांग की है कि 'कझकम' का चयन उन्हें करने दिया जाए। उनका कहना है कि यह पद केवल 'थेक्के वर्रिएथ' समुदाय के लिए आरक्षित होना चाहिए।

गोपी ने कहा, "हमने तुरंत एक बैठक बुलाई और उनकी बात सुनी। हमने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रशासन को कानून का पालन करना होगा। हमने उनसे कहा कि वे अदालत या सरकार या देवस्वम रिक्रूटमेंट बोर्ड के पास जाएं, और इस बीच सहयोग करें। लेकिन वे अपने रुख पर अड़े रहे और कहा कि वे स्थापना समारोह का नेतृत्व नहीं करेंगे।"

इस स्थिति में, प्रशासक ने अपने विवेकाधिकार का उपयोग करते हुए बालू को अस्थायी रूप से कार्यालय सहायक के पद पर नियुक्त कर दिया। गोपी ने कहा, "अगर हमने यह फैसला नहीं लिया होता, तो स्थापना समारोह नहीं हो पाता।"

कांग्रेस विधायक एपी अनिल कुमार ने इस मामले को विधानसभा में उठाया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन हुआ है, जो किसी भी रूप में अस्पृश्यता को प्रतिबंधित करता है। उन्होंने कहा, "तंत्रियों द्वारा दी गई शिकायत, जो स्पष्ट रूप से असंवैधानिक थी, के आधार पर देवस्वम ने एक व्यक्ति को उसके पद से हटा दिया। इसके बजाय तंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए थी।"

केरल सरकार ने भी बालू को 'कझकम' पद पर बनाए रखने की बात कही है। राज्य के देवस्वम मंत्री और सीपीआई(एम) नेता वी एन वासवन ने कहा कि केरल सामाजिक सुधारकों की भूमि है, और यह राज्य के लिए अपमानजनक है कि किसी व्यक्ति को जाति के आधार पर दूर रखा जाए। उन्होंने कहा, "हम मंदिर के पुजारियों के रुख से सहमत नहीं हैं। केरल वह जगह है जहां गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी बनाया गया है।"

देवस्वम मंत्री ने बताया कि कूडलमणिक्यम देवस्वम कर्मचारी विनियम 2003 के तहत मंदिर में दो 'कझकम' पद हैं। एक पद वंशानुगत है, जिसे तंत्री परिवार द्वारा चुने गए व्यक्ति को दिया जाता है। दूसरा पद सीधी भर्ती के माध्यम से दिया जाता है, जिसके लिए देवस्वम रिक्रूटमेंट बोर्ड परीक्षा आयोजित करता है। वर्तमान में, मंदिर में वंशानुगत 'कझकम' पद खाली है, और इसके कार्यों को अनुबंधित कर्मचारियों द्वारा संचालित किया जा रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब कूडलमणिक्यम मंदिर पर जातिगत भेदभाव के आरोप लगे हैं। 2022 में, भरतनाट्यम कलाकार मंसिया वीपी ने आरोप लगाया था कि मंदिर ने उन्हें इस आधार पर परफॉर्म करने से रोक दिया क्योंकि वह हिंदू नहीं हैं। इस मामले ने एक बार फिर केरल में जातिगत भेदभाव और सामाजिक समानता के मुद्दे को उजागर किया है। अब यह देखना होगा कि देवस्वम बोर्ड और सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।

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