नई दिल्ली- 4 जून, 2025 को भारत के गृह मंत्रालय (MHA) ने एक घोषणा की है कि आगामी 1 मार्च 2027 से देशभर में जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी, जो दो चरणों में पूरी की जाएगी। बर्फीले क्षेत्रों जैसे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में जनगणना अक्टूबर 2026 से शुरू होगी, ताकि मौसम की चुनौतियों से बचा जा सके।
इस जनगणना में 1931 के बाद पहली बार जाति गणना शामिल होगी। यह कदम भारत की जटिल सामाजिक संरचना को समझने और सामाजिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। 146 करोड़ की आबादी वाले देश में यह जनगणना सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
यह जनगणना न केवल भारत की 4,000 से 5,000 जातियों की विविधता को उजागर करेगी, बल्कि सामाजिक समानता और नीतिगत सुधारों की दिशा में भी एक कदम होगी। आइए, कुछ रोचक जाति नामों और उनकी कहानियों की बात करें, जो भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं।
भारत में कितनी जातियां हैं?
भारत में जातियों की सटीक संख्या का अनुमान लगाना जटिल है, क्योंकि यह वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और जाति (विशिष्ट समुदाय) के साथ-साथ क्षेत्रीय विविधताओं पर निर्भर करता है। 1931 की जनगणना में 4,147 जातियां और उप-जातियां दर्ज की गई थीं, जिनमें 300 ईसाई और 500 मुस्लिम जाति समूह शामिल थे। People of India प्रोजेक्ट (1985–1992) ने 4,635 समुदायों को सूचीबद्ध किया, जिनमें 2,203 सामान्य श्रेणी की जातियां, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) शामिल थे।
2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) ने 46 लाख से अधिक जाति नाम दर्ज किए, लेकिन नामों की विविधता, वर्तनी भिन्नता और उप-जातियों के कारण यह डेटा अव्यवस्थित रहा और कभी आधिकारिक रूप से जारी नहीं हुआ। वर्तमान अनुमान के अनुसार, भारत में 4,000 से 5,000 विशिष्ट जातियां हैं, जिनमें 3,651 OBC, 1,170 SC और 850 ST समुदाय शामिल हैं। यह संख्या राज्यों के आधार पर भिन्न हो सकती है।
राज्य-विशिष्ट जातियां: क्षेत्रीय विविधता
भारत की जाति व्यवस्था एक समान नहीं है; कई जातियां विशिष्ट राज्यों में पाई जाती हैं, जो स्थानीय इतिहास, व्यवसाय और संस्कृति को दर्शाती हैं। नीचे कुछ सत्यापित उदाहरण दिए गए हैं:
कर्नाटक: 2015 के H. कांताराज आयोग के सर्वेक्षण में 1,821 जातियां दर्ज की गईं, जिनमें सोलंकी, सूद और पंजाबी जाट जैसे प्रवासी समुदाय शामिल हैं। कर्नाटक में वोक्कालिगा (कृषक समुदाय) और लिंगायत (धार्मिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समूह) प्रमुख हैं। सर्वेक्षण में ओडिया, मलयालम और गुजराती जैसे भाषा-आधारित समुदाय भी शामिल हैं।
बिहार: 2023 के बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, OBC और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 130 मिलियन की आबादी का 63% से अधिक हैं। यादव (OBC, पशुपालक) और कुर्मी (कृषक) प्रमुख हैं, जबकि मुसहर (SC, हाशिए पर) सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व रखते हैं।
तेलंगाना: 2024 के सर्वेक्षण में 56.33% पिछड़ा वर्ग (BC) दर्ज किए गए, जिनमें 10.08% BC मुस्लिम शामिल हैं। मुनुरु कपु (कृषक) और गौड़ा (ताड़ी निकालने वाले) जैसी जातियां तेलंगाना की विशेषता हैं।
आंध्र प्रदेश: चल रहे सर्वेक्षण में कपु और कम्मा (दोनों कृषक समुदाय) जैसी जातियां सामने आई हैं, जो क्षेत्र की सामाजिक-राजनीतिक संरचना को दर्शाती हैं।
महाराष्ट्र: मराठा, एक मध्यम लेकिन प्रभावशाली जाति, महाराष्ट्र में प्रमुख है। 2024 के सर्वेक्षण में 21% मराठा गरीबी रेखा से नीचे पाए गए, जिससे आरक्षण की मांग बढ़ी।
ये उदाहरण भारत की क्षेत्रीय सामाजिक विविधता को दर्शाते हैं, जहां जातियां स्थानीय अर्थव्यवस्था और परंपराओं से जुड़ी हैं।
रोचक जाति नाम और उनकी कहानियां
जाति व्यवस्था में कई नाम हैं जो ऐतिहासिक व्यवसायों, सांस्कृतिक प्रथाओं या क्षेत्रीय पहचान को दर्शाते हैं। नीचे कुछ सत्यापित और रोचक जाति नाम दिए गए हैं:
मुसहर (बिहार): इसका अर्थ "चूहा खाने वाले" है, जो इस अनुसूचित जाति समुदाय की ऐतिहासिक गरीबी और जीविका के तरीकों को दर्शाता है। 2023 के बिहार सर्वेक्षण ने उनकी बड़ी आबादी को उजागर किया।
नाई (उत्तर भारत): परंपरागत रूप से नाई (हजाम), यह OBC समुदाय उत्तर प्रदेश और बिहार में पाया जाता है। उनकी रस्मों में भूमिका उन्हें सामाजिक महत्व देती है।
कोली (गुजरात, महाराष्ट्र): मछुआरे और नाविक समुदाय, कोली कुछ क्षेत्रों में ST और अन्य में OBC हैं। उनकी समुद्री विरासत उनकी पहचान का गौरव है।
भंगी (उत्तर भारत): अनुसूचित जाति, जो मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़ी है। सामाजिक भेदभाव के बावजूद, सर्वेक्षणों में उनकी उपस्थिति कल्याण की आवश्यकता को दर्शाती है।
वोक्कालिगा (कर्नाटक): कन्नड़ शब्द "कृषक" से लिया गया, यह प्रभावशाली जाति कर्नाटक की राजनीति और कृषि में महत्वपूर्ण है।
सोलंकी (कर्नाटक, मूलतः गुजरात): राजपूत जाति, जो गुजरात से कर्नाटक में प्रवास के कारण पाई जाती है। इसका ऐतिहासिक संबंध राजवंशों से है।
चुनौतियां और विवाद
2027 की जाति जनगणना के सामने कई चुनौतियां हैं। 1931 की जनगणना को अंतिम रूप देने में महीनों लगे थे, और 2011 SECC की असंगतियों ने डेटा मानकीकरण की जटिलता को उजागर किया। अंशकालिक गणनाकर्ता, जिन्हें अक्सर सीमित प्रशिक्षण मिलता है, को हजारों जाति नामों, वर्तनी भिन्नताओं और क्षेत्रीय अंतरों से जूझना होगा। उदाहरण के लिए, एक जाति एक राज्य में OBC और दूसरे में SC हो सकती है।
आलोचकों का कहना है कि यह जनगणना सामाजिक विभाजन को गहरा सकती है, जबकि राहुल गांधी जैसे समर्थक इसे समानता के लिए आवश्यक मानते हैं। राष्ट्रीय जाति रजिस्टर की अनुपस्थिति और डेटा संग्रह की प्रक्रिया अभी भी सवालों के घेरे में है।
2027 की जाति जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं है; यह भारत की संरचनात्मक असमानताओं को सुलझाने- समझने का अवसर है। बिहार जैसे सर्वेक्षणों से पता चलता है कि हाशिए पर पड़ी जातियां शिक्षा, रोजगार और धन में पीछे हैं। 2015–16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, ST में 50.6%, SC में 33.3%, और OBC में 27.2% गरीबी दर थी, जबकि सामान्य श्रेणी में यह 15.6% थी। यह जनगणना आरक्षण नीतियों को परिष्कृत कर सकती है और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकती है।
हालांकि, यह राजनीतिक विवाद भी पैदा कर सकती है। बिहार के 2023 सर्वेक्षण ने आरक्षण कोटा बढ़ाने पर कानूनी लड़ाई शुरू की, और राष्ट्रीय स्तर पर भी यही संभावना है। तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्य पुनर्निर्धारण से संसदीय सीटों के नुकसान की आशंका जता रहे हैं।