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MP: कमरे में बंद कर नाबालिग से किया दुष्कर्म, पुलिस ने दोनों आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेजा

भोपाल। मध्य प्रदेश के गुना जिले में नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में चांचौड़ा पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। दोनों आरोपियों ने किशोरी का अपहरण कर उसे एक कमरे में बंद किया और दुष्कर्म किया। मामला चांचौड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम भैंसुआ का है।

पुलिस के मुताबिक, 16 वर्षीय पीड़िता ने 18 जून को बीनागंज पुलिस चौकी में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पीड़िता ने बताया कि 17 जून की रात गांव के ही रमन अहिरवार और पवन अहिरवार जबरन उसके घर में घुस आए और उसे जबरन अपने साथ ले गए। रमन अहिरवार के घर के एक कमरे में बंद कर दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया।

पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज किया। गुना एसपी अंकित सोनी के निर्देश पर चांचौड़ा थाना प्रभारी प्रमोद कुमार साहू के नेतृत्व में टीम गठित की गई।

मुखबिरों की सूचना और तकनीकी संसाधनों की मदद से पुलिस ने दोनों आरोपियों — 20 वर्षीय रमन पिता रूप सिंह अहिरवार और 22 वर्षीय पवन उर्फ राकेश पिता कैलाश अहिरवार को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी में बीनागंज चौकी प्रभारी एसआई अजयप्रताप सिंह, साइबर सेल और अन्य पुलिसकर्मियों की टीम शामिल रही। आरोपियों को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है। पुलिस मामले की आगे जांच कर रही है।

NCRB के आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट भी इस स्थिति की भयावहता को दर्शाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 में मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ कुल 20,415 अपराध दर्ज किए गए, जो कि देशभर में महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इनमें से 6,654 मामले केवल POCSO एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं। सबसे अधिक मामले अपहरण और बहला-फुसलाकर ले जाने से जुड़े हैं, जिनकी संख्या 10,125 रही। बच्चों की हत्या के 109 और आत्महत्या के लिए उकसाने के 90 मामले भी इस रिपोर्ट का हिस्सा हैं।

NCRB की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि राज्य में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर 71 प्रति एक लाख बच्चों पर है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। दिल्ली के बाद मध्यप्रदेश इस मामले में दूसरे स्थान पर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 96.8% यौन अपराधों में आरोपी पीड़िता के परिचित होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पीड़िताओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थान उनका अपना सामाजिक दायरा बनता जा रहा है।

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