'सरकार जानवरों की गणना कर रही है लेकिन आदिवासियों की जनगणना नहीं हो रही'- सुखदेव भगत साथ द मूकनायक की खास बातचीत

03:41 PM Oct 15, 2024 | Satya Prakash Bharti

झारखंड। देश में हरियाणा और जम्मू कश्मीर के बाद झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कसना शुरू कर दी है। झारखंड में कुल 81 सीटों में चुनाव होना है। इन 81 विधानसभा सीटों पर विभिन्न पार्टियों के नेता प्रचार में जुटे हुए हैं। सभी पार्टियां चुनावों को जीतने के लिए अपने मैनिफेस्टो पर काम कर रही हैं। चुनावों को लेकर नई-नई रणनीतियां तैयार की जा रही हैं। जनता से तरह-तरह के वादें किये जा रहे हैं। पार्टियां जनता को विकास के एक नए मुकाम पर पहुंचाने की तस्वीरे अपने मैनिफेस्टो में उकेर रही हैं। इस चुनावी तैयारी के बीच द मूकनायक की टीम जनता और उनके हितैषियों का हाल पूछने झारखंड में है।

हाल ही में झारखंड की कुल 14 लोकसभा सीटों में एक लोहरदगा सीट पर भारी उलटफेर देखने को मिला था। जिस सीट पर बीजेपी का 2009 से कब्जा था, उसे सुखदेव भगत ने छीनकर कांग्रेस की झोली में डाल दी, उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के समीर उरांव को 81,609 वोट से हरा दिया। सुखदेव को कुल 2 लाख 54 हजार 709 वोट मिले। 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने क्या तैयारी की है, इसकी जमीनी हकीकत जानने के लिए द मूकनायक ने सुखदेव भगत से बातचीत की। कांग्रेस पार्टी काफी समय से जातीय जनगणना कराने पर विशेष जोर दे रही है। यह दावा कैसे सफल होगा इसे जानने के लिए द मूकनायक की एडिटर-इन-चीफ मीना कोटवाल ने कांग्रेस के लोहरदगा सीट से परचम बुलन्द करने वाले सुखदेव भगत से बातचीत की।

इस चुनाव में इंडिया अलयांस जीतेगा या भाजपा?

जवाब: निश्चित रूप से हेमन्त सोरेन जी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अच्छा काम कर रही है। इसके साथ ही झारखंड की जो पूरी अवाम है, हमारी जनता है, मुझे पूरी आशा नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि वह पुनः इंडिया गठबंधन को वोट देगी, और हमारी पार्टी पुनः सरकार बनाएगी।

इसके बहुत सारे कारण हैं, क्योंकि जिस प्रकार से हेमन्त बिस्वा शर्मा जी, शिवराज चौहान जी और भारतीय जनता पार्टी यहां आने के बाद भाजपा एक नैरेटिव सेट करने का प्रयास कर रही है। उस नैरेटिव का अगर देखे तो यह एक सेनिटीजम है- 'धर्मांतरण हैं'। लेकिन झारखंड में साझी संस्कृति है और यहां जातीय समीकरण कभी रहा ही नहीं है।

जिस चुनावी क्षेत्र से मैं आता हूँ, विशेषकर झारखंड में जहां आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से, इनमें अगर हम आदिवासियों की बात करें तो इनमे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। उनके आने से मैं समझता हूँ कोई असर नहीं होने वाला है। और हेमन्त जी के नेतृत्व में जैसा कि मैंने कहा हमारी गठबंधन सरकार ने बहुत ही जनहित के काम किये हैं। इसका एक स्वाभाविक असर इस चुनाव में देखने को मिलेगा।

धर्म की राजनीति बहुत चल रही है, दूसरी पार्टी धर्म की राजनीति कर रही है, एक धर्म को दूसरे धर्म के लिए खतरा बताया रही है,क्या आपकी पार्टी भी ऐसी राजनीति आपकी पार्टी में चलेगी ?

मेरा यह मानना है कि 'धर्म' एक आस्था है एक विश्वास है। लोगों की यह व्यक्तिगत चीज है। भारतीय जनता पार्टी जो है, वह धर्म की राजनीति करती है। मैं आज भी कहूंगा कि इस नशे में जो सबसे खतरनाक नशा है, वह धर्म का नशा है। और शासन करने के लिए भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के लोगों ने इस धर्म के नशे को फैलाया है। उनका यह प्रयास अब झारखंड में भी जारी है।

झारखंड में हेमन्त सोरेन जी के नेतृत्व में यहां के लोगों की संवैधानिक मांग है कि आदिवासियों की धार्मिक पहचान हो, अपना धर्म हो. उनका कोई अपना धर्म नहीं है। उनकी कोई अपनी धार्मिक पहचान आज तक नहीं है। वह लगातार इन बातों को मांग रहे हैं। क्या हेमन्त बिस्वा शर्मा जी अपनी असेंबली के सदन से आदिवासियों के लिए अलग धर्म को पारित करने के लिए भेजेंगे? इसके लिए न किसी भी तरह से संविधान संशोधन की आवश्यकता है। न किसी नीति आयोग की आवश्यकता है। वह तो एक आइडेन्टिटी (पहचान) है। जैसा कि आप अलग-अलग कॉलम देते हो सिख के लिए, हिन्दू के लिए, मुस्लिम के लिए, उसी प्रकार आदिवासियों के लिए है। 12 करोड़ की जनसंख्या है। पार्लियामेंट में मेरा पहला प्रश्न इसी पर था।

"मीना जी! अगर मैं आपको एक चीज बताऊं तो आपको सुनकर अजीब सा लगेगा। एक तरफ सरकार पशुओं की गणना करती है। बाघो की गणना कर रही है। हाथियों की गणना कर रही है, लेकिन जो 12 करोड़ हमारे आदिवासी समाज के लोग हैं, उनकी गणना वह क्यों नहीं कर रहे हैं।

जबकि संविधान फंडामेंटल राइट्स, आर्टिकल 15 से लेकर 19 धार्मिक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं, उनके संरक्षण की वह बात कर रहे हैं। दूसरी तरफ मोदी सरकार के द्वारा न सिर्फ उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है बल्कि आरएसएस के लोग यह कह रहे हैं कि वह आदिवासी नहीं हिन्दू हैं सारे, उनका अपना कोई धर्म नहीं हैं। मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी के लोगों को इस मामले में सामने आना चाहिए, उनका खण्डन करना चाहिए। आदिवासियों के साथ हो रहे भेदभाव से उनकी मंशा जाहिर होती है। यह सब चीजें बताती हैं कि उनकी आदिवासियों के प्रति सोच क्या है?

आप भी काफी समय से सरना धर्म की मांग कर रहे हैं, आपको क्या लगता है यदि जनगणना के दौरान सरना धर्म का एक कॉलम हो तो उससे आदिवासियों को क्या लाभ होगा?

राहुल गांधी आज जातिगत जनगणना की बात इसलिये कर रहे हैं कि, यह एक एक्स रे रिपोर्ट है कि हमारे यहां जितनी भी जातियां हैं, धर्म हैं, उनकी जीवनशैली और आर्थिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी मिले। कांग्रेस पार्टी वह चाहती है जैसा कि नेहरू जी ने कहा था- पंचशील! पंचशील की अगर बात करें तो उनकी अपनी पहचान के साथ राष्ट्र का मुख्य धारा में आना। अगर राहुल जी जातिगत जनगणना पर जोर दे रहे हैं, तो उसकी मंशा यह है कि एक्स रे रिपोर्ट आने के बाद उनकी शैक्षिक, धार्मिक स्थिति क्या है इसकी जानकारी मिल सके।

इसके जरिये हमें यह पता चल सकेगा कि हम उनके लिए कौन सी नीति लागू करें कि उनका एक विकास हो पाए। हम प्रकृति के पुजारी हैं, हमारी अपनी धार्मिक आस्था है, तो उसको सरकार मान्यता क्यों नहीं दे रही है? सरकार अन्य धर्म की जनगणना कर रही है, तो आदिवासियों को इससे वंचित क्यों कर रही है? यह एक साधारण सी बात है और मैं समझता हूँ कि यह बहुत ही संवेदनशील मसला है। सरकार को इन पर संज्ञान लेना चाहिए और गणना करनी चहिये।

राहुल गांधी लगातार आरक्षण की लिमिट बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ओबीसी आरक्षण पर बात कर रहे हैं, आपको क्या लगता है वह होना चाहिए?

जवाब: निश्चित रूप से..... मोदी जी की सरकार आई तो उन्होंने सामान्य वर्ग के लोगों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर ने आरक्षण पर बात रखी है कि, "आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, आरक्षण एक प्रतिनिधित्व है।" राहुल जी अगर आरक्षण बढ़ाने की बात कर रहे हैं, तो उसके पीछे उनकी मंशा यह है कि अगर हम आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग सहित हर वर्गों को अगर हम सीमित कर देते हैं तो उनकी भागेदारी नहीं हो पाएगी। राष्ट्र के विकास में हर लोगों का महत्त्व है। मैं समझता हूँ अगर आरक्षण बढ़ेगा तो इन लोगों का प्रतिनिधित्व और भागेदारी भी बढ़ेगी और अनेकता में एकता का जो कॉन्सेप्ट है, वह निश्चित रूप से उसमें परिलक्षित होगी। राहुल जी ने इस संदर्भ में बहुत अच्छी बात कही है। हमारे तमिलनाडु में आरक्षण की सीमा बढ़ी हुई है, तो आरक्षण की सीमा बढ़ाने में दिक्कत क्या है? आरएसएस और भाजपा कतई नहीं चाहती है कि इन लोगों का जो संवैधानिक हक है, वह उन्हें मिले।

सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण को लेकर एक निर्णय आया है, उस पर आप का क्या कहना है?

जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर की बात की है। मैं आपको बता दूं अगर आप नौकरियों में देख लें तो एससी एसटी के जो पद हैं उन्हें पूरी तरीके से भरा भी नहीं गया है. तो क्रीमी लेयर की बात कहां से आ गई। यह तो तब होगा जब आवश्यकता से अधिक लोग हो जाएं, और उन्हें छांटा जाए। आज तक हमारा बैकलॉग भी भरा नहीं है। मोदी सरकार में जिस तरह आरक्षित लोगों की अवहेलना हो रही है, उन पर अत्याचार बढ़े हैं, यह चिंता का विषय है। यह कहीं न कहीं भारत और लोकतंत्र के खतरे की बात है। जिसको राहुल जी ने महसूस किया और भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से हर चीज को गम्भीरता से लिया और उन्होंने अपने दायित्वों को समझा है कि न केवल हमें लोकतंत्र को बचाना है, बल्कि लोगों की रक्षा करनी है। भारत सिर्फ भू-भाग नहीं है, भारत के लोगों को अपनी पहचान के साथ मुख्य धारा में आना है, और मैं समझता हूँ कि इसमें कहीं से कोई गलत नहीं है।

आप प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं, आपने इस्तीफा दिया। इससे पहले झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं, फिर कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुए। अब फिर कांग्रेस में है क्या वजह है?

मैं समझता हूँ कि दुनिया परिस्थिति की गुलाम है। एक साल के लिए मैंने पार्टी छोड़ी थी। मैं BJP में शामिल हो गया। मुझे लगता है, राहुल गांधी जी और सोनिया गांधी जी ने जितना मैं डिजर्व करता हूँ, उससे अधिक पार्टी ने हमें दिया है। मैं यह नहीं कह सकता हूँ कि मेरी जो पहचान है वह कांग्रेस पार्टी के कारण है। मैं एक बहुत ही सामान्य परिवार से हूँ। कांग्रेस के कुछ लोगों ने मैं और मेरे परिवार पर जिस प्रकार झूठे मुकदमे लादे थे, मैं आज भी हाईकोर्ट की बेल पर बाहर हूँ, तो संघर्ष तो करना पड़ता है। मेरे लिए राहुल गांधी आज भी मेरे आदर्श हैं कि डरो मत संघर्ष करो। जिस प्रकार उन्हें प्रताड़ित किया गया है, हालांकि मेरे साथ उस स्तर पर नहीं हुआ लेकिन मैं भी प्रताड़ित हुआ हूँ। दुःखद स्थिति है कि इनके एक सीनियर लीडर के द्वारा झूठे मुकदमे किये गए।

तो क्या आपने डरकर दोबारा कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की ?

नहीं! ऐसा नहीं है। यह एक व्यस्वथा थी, वरना मेरी और मेरे परिवार की सारी चीजें खत्म हो गई होती। इसके बारे में सारे लोग जानते भी हैं। मैं आज राहुल गांधी जी, सोनिया गांधी जी, खड़गे जी का धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मेरी सारी गलतियों को माफ किया। और मैं यह बात स्पष्ट कर दूं कि जब मैंने दोबारा पार्टी ज्वाइन की तो राहुल गांधी जी और सोनिया गांधी जी से मैंने कहा था कि कांग्रेस से मेरी पहचान है। मेरे पिता और मेरा परिवार पहले से ही कांग्रेस की नीतियों से प्रभावित है।

राहुल गांधी और सोनिया गांधी को लेकर भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने कई बार अभद्र टिप्पणी की है, आपका क्या कहना है ?

एक राजनीतिक संस्कार होता है। आपने भी देखा होगा राहुल जी भी कई बार ऐसी चीजों को मुस्कुरा को छोड़ देते हैं। मैं भी समझता हूं कि उन्हें माफ कर देना चाहिए। राजनीतिक संस्कार या सुचिता की बात करें तो मैं समझता हूँ कि यह उनका संस्कार है। मेरा संस्कार वह है जो कांग्रेस का संस्कार है, हम तो सर्व धर्म संभाव में विश्वास करते हैं। मैं आज भी कहता हूं कि अनेकता में एकता हिन्द की विशेषता हम लोग उस भावना के साथ चलते हैं। गांधी परिवार हम लोगों के लिए आदर्श है। उनके परिवार के जो बलिदान हैं, उनकी शालीनता है, यहां तक कि राजीव गांधी के हत्यारे को भी उन्होंने माफ किया। यह एक विशाल हृदय का उदाहरण है। 2004 की मैं बात करूं तो बतौर प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने पद को निर्विरोध त्याग दिया। सोनिया जी त्याग की भी प्रतिमूर्ति हैं। मैं इन चीजों से आज भी सीखने का प्रयास कर रहा हूं। मोदी जी जो स्वयं प्रधानमंत्री होकर अपने पद की गरिमा और मर्यादा भूल गए हो तो उनके सारे लोग करें क्या? कांग्रेस पार्टी और हमारे लोग अपने आदर्शों और संस्कारों को हम कभी नहीं छोड़ेंगे।

सुखदेव भगत और उनका परिवार

सुखदेव भगत के पिता गंधर्व भगत स्वतंत्रता सेनानी थे. इसलिए शुरुआत से ही घर का माहौल अलग था. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा नेतरहाट बोर्डिंग स्कूल से पूरी की. फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीजी के साथ एमफिल किया और बैंक में अधिकारी बन गए. लेकिन मन में कुछ अलग करने की कसक थी, तो नौकरी छोड़कर प्रशासिनक सेवाओं में चले गए.

फिर राजनीति में रखा कदम

हालांकि, 2005 में डिप्टी कलेक्टर पद से इस्तीफा देकर उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. उस समय लोहरदगा से बीजेपी के साध्नु भगत विधायक थे और दो बार जीत दर्ज करते हुए सरकार में मंत्री भी बने थे. ऐसे में सुखदेव के सामने अपनी सियासी पारी की शुरुआत करने की राह आसान नहीं थी. लेकिन फिर भी जनता ने उन पर भरोसा जताया और अपना विधायक चुना. लेकिन 2009 में उन्हें आजसू के केके भगत के हाथों महज 594 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद 2015 के उपचुनाव में फिर से वापसी की.

बीजेपी में आकर फिर उसे ही हराया

2019 में सुखदेव भगत भले ही बीजेपी के सुदर्शन भगत के हाथों हार गए, लेकिन सियासी गलियारों में उनका कद ऊंचा हो गया. कांग्रेस को तब जोरदार झटका लगा, जब बीजेपी ने उन्हें अपने खेमे में शामिल कर लिया. हालांकि, 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस की सीट पर लड़कर उन्होंने बीजेपी को झटका दे दिया.