नई दिल्ली। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह निधन हो गया। 80 वर्षीय 'दिशोम गुरु' पिछले कई दिनों से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। अस्पताल के मुताबिक सुबह 8:56 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और डेढ़ महीने पहले उन्हें ब्रेन स्ट्रोक भी आया था।
उनके निधन से झारखंड की राजनीति में गहरा खालीपन आ गया है। आदिवासी हितों के मजबूत प्रहरी और तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन का जाना एक युग के अंत जैसा है।
हेमंत सोरेन बोले- "आज मैं शून्य हो गया हूं"
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन पर गहरा शोक जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं..."
हेमंत ने अपने पिता को केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा बताया, जिन्होंने झारखंड के निर्माण और आदिवासियों के अधिकारों के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
कौन थे शिबू सोरेन? | Shibu Soren Biography in Hindi
पूरा नाम: शिबू सोरेन
जन्म: 11 जनवरी 1944, नामरा गांव, हजारीबाग (अब गिरिडीह), बिहार
उपनाम: दिशोम गुरु, गुरुजी
राजनीतिक दल: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)
निधन: 4 अगस्त 2025, दिल्ली
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर बेहद संघर्षशील और प्रेरणादायक रहा। उनका बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता। पिता शोभराम सोरेन की हत्या ने उन्हें सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए प्रेरित किया। वे 1970 के दशक में सक्रिय राजनीति में आए और आदिवासी हितों की रक्षा के लिए 'झारखंड मुक्ति मोर्चा' की स्थापना की।
चिरूडीह कांड और विवाद
शिबू सोरेन का नाम चिरूडीह हत्याकांड (1975) से भी जुड़ा रहा, जिसमें 11 लोगों की मौत हुई थी। इस मामले में उन्हें और 68 अन्य को हत्या का आरोपी बनाया गया था। इसी वजह से 2004 में कोयला मंत्री रहते हुए उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा।
झारखंड आंदोलन में निर्णायक भूमिका
बिहार से अलग होकर 'झारखंड' राज्य बनाने की लड़ाई में शिबू सोरेन की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। उन्होंने गांव-गांव जाकर आदिवासियों को संगठित किया और एक जन आंदोलन खड़ा किया, जिसकी परिणति 2000 में झारखंड राज्य के गठन के रूप में हुई।
अंतिम समय तक सक्रिय
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन वे राजनीतिक गतिविधियों में सीमित रूप से भाग लेते रहे। झामुमो की रणनीतियों और नीतियों में उनका मार्गदर्शन हेमंत सोरेन सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण रहा।
एक युग का अंत
शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं थे, वे एक आंदोलन, एक विचार और आदिवासी समाज की आत्मा थे। उनके निधन से झारखंड ने अपना सबसे बड़ा सपूत खो दिया है। उनका जीवन संघर्ष, सेवा और साहस की मिसाल है जिसे आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।