लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती के रेल किराए में बढ़ोत्तरी को लेकर सवाल उठाने पर यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद का बयान आया है। उन्होंने कहा कि 2004 से 2014 तक मायावती के समर्थन से कई बार रेल किराया बढ़ाया गया है।
कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "किराया नहीं बढ़ना चाहिए, मैं इसका समर्थन करता हूं। हालांकि, सरकार को बेहतर सुविधाएं देने और सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है। सुरक्षा महत्वपूर्ण है, समय कीमती है और समय की बचत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि हमारी सरकार में काफी समय से रेल किराया नहीं बढ़ा है, लेकिन उनके (मायावती) समय में हर बार किराया बढ़ता था। 2004 से 2014 तक मायावती के समर्थन से कई बार रेल किराया बढ़ाया गया है।"
सपा-कांग्रेस गठबंधन को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के बयान पर भी संजय निषाद ने पलटवार किया। उन्होंने कहा, "कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ समाजवादी पार्टी का जन्म हुआ। वो सिर्फ दल देखते हैं, नीति नहीं। 2017 में वह दोनों एक साथ आए और साइकिल हाफ हो गई। एक बार और उन्होंने गठबंधन कर लिया तो साइकिल पूरी तरह साफ हो जाएगी।"
संजय निषाद ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि सभी पार्टियां अपने मूल मुद्दे और विचारधाराओं से भटक गई हैं। कांग्रेस तुष्टिकरण पर उतारू है तो सपा को उनके सलाहकारों ने उलझाकर रखा है। उनको दलित, शोषित और वंचितों की आवाज बनना चाहिए, लेकिन वो सिर्फ सतीश मिश्रा और अमर सिंह एंड कंपनी जैसे लोगों की आवाज बन गए और इसी वजह से वे पिछले दलित हो गए।"
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की नाबालिग को केरल ले जाकर जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने की घटना पर कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "मैं इस घटना की निंदा करता हूं और भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। धर्म एक जीने का आधार और संस्कार है।"
निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर के मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने पर संजय निषाद ने कहा, "बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने लोकतंत्र में वोट जैसा एक हथियार दिया है। आप जो चाहो, वो कर सकते हो। कांशीराम राजनीति में आए तो उन्होंने भी इस तरह की कोई घटना नहीं की। उन्होंने मिशन चलाकर लोगों को वोट के अधिकार के प्रति जागरूक किया, लेकिन वे (चंद्रशेखर) चोट की ताकत से सब कुछ करना चाहते हैं। ये लोकतंत्र के खिलाफ है। उन्हें अपनी विचारधारा बदलनी होगी। हम शांति चाहते हैं और बाबासाहेब ने भी हिंसा को जगह नहीं दी।"