रांची। झारखंड की पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता गीता श्री ओराम ने 'द मूकनायक' की एडिटर इन चीफ मीना कोटवाल के साथ एक विशेष साक्षात्कार में मौजूदा राजनीतिक स्थिति, आदिवासी अधिकारों, और भाजपा की नीतियों पर खुलकर बातचीत की। इस इंटरव्यू में उन्होंने राज्य सरकार, भाजपा की रणनीति, और झारखंड की चुनावी राजनीति पर अपने विचार साझा किए।
सवाल: मौजूदा सरकार क्या चुनाव में सफल होगी और पुनः सरकार बनाएगी?
जवाब: राज्य में हमारी सरकार अच्छे से काम कर रही थी, लेकिन बीच में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने खेल की शुरुआत की। भाजपा ने झारखंड में भी वही करने की कोशिश की, जो उसने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किया था—विधायकों को तोड़ने का प्रयास किया गया। लेकिन यहां उन्हें सफलता नहीं मिली क्योंकि हमारे गठबंधन के सभी दल एकजुट थे। जब यह योजना विफल हो गई, तो उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को निशाना बनाया और उन्हें एक जमीन के मामले में फंसाया। हालांकि, उस मामले में कोई ठोस प्रमाण नहीं था। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री को जेल भेजा गया। मगर जनता सब समझती है, वह देख रही है कि किसने राज्य के लिए काम किया है और किसने नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार काम के आधार पर फिर से बनेगी।
सवाल: यदि हेमंत सोरेन भाजपा के साथ समझौता करते, तो क्या उन्हें जेल नहीं जाना पड़ता?
जवाब: निश्चित रूप से मुख्यमंत्री को बेवजह और निराधार आरोपों में फंसाया गया था। अगर वह भाजपा के साथ समझौता करते, तो शायद उन्हें जेल नहीं जाना पड़ता। लेकिन उन्होंने गठबंधन का साथ नहीं छोड़ा और इसी वजह से उन्हें विपक्ष ने टारगेट किया। उन्होंने जेल जाकर भी गठबंधन का समर्थन जारी रखा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर टिप्पणी की थी कि हेमंत सोरेन को ऐसे मामले में जेल में रखा गया था, जिसका कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं था। यह सब राजनीति के तहत किया गया था।
सवाल: आदिवासियों को 'वनवासी' कहे जाने पर आपका क्या रुख है?
जवाब: मैंने शुरू से ही इस पर आपत्ति की है। राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या में कमी आ रही है, और 2001 से 2011 के बीच की जनगणना में यह साफ दिखा है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की नीति आदिवासियों के खिलाफ रही है। मोहन भागवत का यह कहना कि आदिवासी हिंदू हैं, गलत है। अगर ऐसा है, तो अंग्रेजों ने आदिवासियों को अलग 'कोट' (जल, जंगल, जमीन से जुड़े अधिकार) क्यों दिया था? आदिवासी और वनवासी में बहुत बड़ा फर्क है। आदिवासी अपनी धरती, जंगल और संस्कृति से जुड़े हुए हैं, और भाजपा ने हमेशा से हमारे अधिकारों पर हमला किया है।
सवाल: आदिवासी समुदाय में हिंदुत्व के प्रभाव को आप कैसे देखती हैं?
जवाब: यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आदिवासियों को हिंदुत्व के दायरे में लाने की कोशिश हो रही है। आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं, यही उनकी असली पहचान और धर्म है। उन्हें किसी धर्म विशेष के चश्मे से देखना गलत है। आदिवासियों की संस्कृति और पहचान पर इस तरह से आक्रमण करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रहा है। आज हमें स्पष्ट रूप से अपनी पहचान की रेखा खींचने की जरूरत है। आने वाले वक्त में आदिवासी अधिकारों और बाबा साहब द्वारा दिए गए संवैधानिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है।
सवाल: जाति और धर्म की राजनीति का झारखंड चुनाव पर क्या असर होगा?
जवाब: भाजपा की जाति और धर्म की राजनीति झारखंड में सफल नहीं होगी। यहां के लोग संविधान का सम्मान करने वाले और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले हैं। भाजपा जन कल्याण के मुद्दों से दूर है और उनकी राजनीति केवल धर्म और जाति पर आधारित है। जीएसटी और नोटबंदी जैसे उनके फैसलों से जनता को केवल परेशानियां झेलनी पड़ी हैं। अगर भाजपा का असली एजेंडा जन कल्याण होता, तो जनता को इस तरह की मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता।
सवाल: भाजपा की वर्तमान रणनीति को आप कैसे देखती हैं?
जवाब: भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को झारखंड में उठा रही है, लेकिन मेरा सवाल यह है कि अगर घुसपैठ हो रही है, तो बॉर्डर पर तैनात केंद्र की एजेंसियां क्या कर रही हैं? क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि घुसपैठ को रोका जाए? अगर भाजपा को घुसपैठियों की इतनी चिंता है, तो उनकी सुरक्षा एजेंसियों को इसकी रोकथाम करनी चाहिए थी। लेकिन भाजपा केवल मुद्दों का निर्माण कर जनता को गुमराह करने की कोशिश करती है।
सवाल: भाजपा की परिवर्तन रैली का जनता पर क्या असर होगा?
जवाब: भाजपा की रैलियों में भीड़ नहीं जुट रही है। कई सभाओं में 50 या 100 लोग भी मुश्किल से इकट्ठा हो रहे हैं। इससे साफ है कि जनता उनके बहकावे में नहीं आ रही है। जनता अब समझ गई है कि कौन उनके लिए काम कर रहा है और कौन केवल सत्ता के लिए राजनीति कर रहा है। भाजपा की रणनीति अब काम नहीं कर रही है।
सवाल: आपने कांग्रेस से पहले इस्तीफा दिया था और फिर वापस पार्टी जॉइन की, इसका क्या कारण था?
जवाब: साल 2022 में मैंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था क्योंकि मुझे लगा था कि हमारी क्षेत्रीय भाषा, बोली और परंपराओं को पार्टी में पर्याप्त मान्यता नहीं मिल रही थी। उस वक्त कुछ विधायकों ने इसका विरोध किया था। मैंने हमेशा कहा है, 'पहले माटी, फिर पार्टी।' पार्टी के शीर्ष नेताओं से मेरा कभी कोई विरोध नहीं था। बाद में, जब मुझे लगा कि मेरी बातें सुनी जा रही हैं, तो मैंने फिर से पार्टी जॉइन कर ली।
गीता श्री ओराम के इस इंटरव्यू से यह स्पष्ट होता है कि वे झारखंड की राजनीतिक स्थिति और भाजपा की नीतियों के प्रति कितनी सजग हैं। उन्होंने भाजपा की रणनीति की कड़ी आलोचना करते हुए आदिवासी अधिकारों की रक्षा और संविधान के प्रति अपने दृढ़ विश्वास की बात की।