नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति को केवल केंद्र सरकार की नौकरियों में आवेदन के लिए जारी किया गया ओबीसी प्रमाणपत्र दिल्ली सरकार द्वारा विज्ञापित पदों में आरक्षण पाने के लिए मान्य नहीं होगा।
यह फैसला न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय डिज़पॉल की पीठ ने दिल्ली सरकार की उस अपील पर सुनवाई करते हुए सुनाया जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के आदेश को चुनौती दी गई थी। CAT ने यूपी की 'नाई' जाति की ज्योति को दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य विभाग में आरक्षण का लाभ देने का आदेश दिया था।
Live Law की रिपोर्ट के अनुसार, ज्योति ने दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB) की ओर से जारी विज्ञापन के तहत स्वास्थ्य विभाग के पदों के लिए आवेदन किया था। उन्होंने लिखित परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी, लेकिन उनका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उनका ओबीसी प्रमाणपत्र दिल्ली में मान्य नहीं है।
CAT ने हालांकि उन्हें राहत दी थी। उसने GNCTD बनाम ऋषभ मलिक (2019) के फैसले का हवाला दिया था जिसमें बाहरी राज्य के ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर एक अभ्यर्थी को चयनित किया गया था।
दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में यह दलील दी कि ऋषभ मलिक के मामले में अभ्यर्थी के पास बाहरी राज्य का ओबीसी प्रमाणपत्र ही नहीं बल्कि दिल्ली सरकार द्वारा जारी ओबीसी प्रमाणपत्र भी था, जबकि ज्योति के पास ऐसा कोई दिल्ली का प्रमाणपत्र नहीं है।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ज्योति द्वारा प्रस्तुत ओबीसी प्रमाणपत्र की वैकेंसी नोटिस के क्लॉज 5 में निर्धारित शर्तों से तुलना की। अदालत ने पाया कि ज्योति का प्रमाणपत्र उन शर्तों पर खरा नहीं उतरता।
अदालत ने कहा, “यह प्रमाणपत्र स्पष्ट रूप से केवल 'भारत सरकार के अधीन नियुक्ति के लिए आवेदन करने हेतु' जारी किया गया था। जबकि यह भर्ती दिल्ली सरकार (GNCTD) के अधीन पदों के लिए थी। अतः 12 जुलाई 2017 को जारी ओबीसी प्रमाणपत्र अभ्यर्थी के किसी काम का नहीं हो सकता।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि ज्योति का प्रमाणपत्र उनके पिता को उत्तर प्रदेश राज्य से जारी ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर ही बना था।
कोर्ट ने कहा, “वैकेंसी नोटिस के क्लॉज 5 में साफ लिखा है कि यदि ओबीसी प्रमाणपत्र दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग द्वारा जारी किया गया है, तो वह अभ्यर्थी के परिवार के किसी सदस्य को पूर्व में दिल्ली से जारी प्रमाणपत्र के आधार पर होना चाहिए।”
इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की अपील स्वीकार कर ली और CAT का आदेश रद्द कर दिया।
अंत में अदालत ने भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और समानता की अनिवार्यता पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “भर्ती के मामलों में, खासकर जब बड़ी संख्या में अभ्यर्थी आवेदन करते हैं, तो विज्ञापन या नोटिफिकेशन में दी गई शर्तों का कड़ाई से पालन होना चाहिए। अदालत अपने स्तर पर निष्पक्षता या समानता के सिद्धांतों के आधार पर ढील नहीं दे सकती। कारण स्पष्ट है—यदि अदालत इस तरह शर्तों को ढीला कर देगी, तो उन अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने निर्धारित शर्तों के कारण आवेदन ही नहीं किया।”