नई दिल्ली– जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) चुनाव 2025 में बिरसा आंबेडकर फुले छात्र संघ (बीएपीएसए) की कोमल देवी ने सोशल साइंसेज स्कूल (एसएसएस) से काउंसलर पद पर शानदार जीत हासिल की है। यह जीत बहुजन समुदाय के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है, जो 11 साल के लंबे संघर्ष के बाद एसएसएस में बीएपीएसए की वापसी का प्रतीक है। कोमल देवी का चुनावी नारा 'मेरा फेमिनिज्म खेत, खलिहान और बस्ती से शुरू होता है...' ने दलित-बहुजन छात्रों के दिलों में आग जला दी, और उनकी जीत ने पूरे कैंपस को जश्न के रंग में रंग दिया।
दलित छात्रा कोमल देवी, जो एसएसएस की स्नातकोत्तर छात्रा हैं, ने अपनी मुहिम में डॉ. बी.आर. आंबेडकर के 'एजुकेट! एजिटेट! ऑर्गनाइज!' के सिद्धांत को अपनाया। एक वीडियो संदेश में यह भावुक बयान – "मेरा फेमिनिज्म खेत, खलिहान और बस्ती से शुरू होता है..." – ने ग्रामीण भारत की महिलाओं की आवाज को जेएनयू के कॉरिडोर तक पहुंचाया। उन्होंने 'हिंदुत्व फासीवाद' और 'सवर्ण वामपंथी पाखंड' के खिलाफ खुलकर बोला, जिससे बहुजन छात्रों में उत्साह की लहर दौड़ गई। चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर #KomalDevi और #BAPSAVictory ट्रेंड करने लगे, जहां बहुजन कार्यकर्ता उनकी जीत को 'जय भीम' और 'हुल जोहार' के नारों से सलाम कर रहे हैं।
We have our own tunes and rhymes to celebrate our struggle and victory.#BAPSA#JNUSU#JNUSUELECTION_2025 pic.twitter.com/4FZkEOVqRa
— BAPSA (@BAPSA_JNU) November 6, 2025
बहुजन समुदाय का उत्साह: 11 साल बाद की वापसी
सोशल साइंसेज स्कूल (एसएसएस) एसएसएस जेएनयू का सबसे बड़ा स्कूल है जहां 2,000 से अधिक छात्र पढ़ते हैं , ऐसे में कोमल की जीत बहुजन प्रतिनिधित्व की बहाली का संकेत है। संगठन के आधिकारिक बयान में कहा गया, "यह जीत हमारी जगहों, हमारी आवाजों और हमारी गरिमा को पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक कदम है। हम अवशोषण को अस्वीकार करते हैं, हम टोकनवाद को अस्वीकार करते हैं — यह आत्म-सम्मान और स्वायत्तता की राजनीति है।" बहुजन समुदाय इस जीत को त्योहार की तरह मना रहा है, एक्स (पूर्व ट्विटर) पर सैकड़ों पोस्ट इसे "बहुजन जागरण" के रूप में सराह रहे हैं। सहयोगी समूहों जैसे नीलम कल्चरल सेंटर ने अपनी बधाई दी है।
राजनीति विश्लेषक और जादवपुर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सुभजीत नस्कर ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में उनकी जीत का जश्न मनाया, जिसमें लिखा है: " हरियाणा के अत्यंत हाशिए पर पड़े वाल्मीकि समुदाय की दलित लड़की कोमल स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज की काउंसलर बन गई है। उसकी जीत दुनिया भर में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के खिलाफ अदम्य साहस की जीत है।"
बीएपीएसए ने इस चुनाव में एसएसएस काउंसलर से कुल एक ही सीट जीती है । केंद्रीय पैनल में लेफ्ट यूनिटी (एसएफआई, एआईएसए, एआईएसएफ) ने क्लीन स्वीप किया, जिसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव पद शामिल हैं। एबीवीपी को कोई सीट नहीं मिली, जो पिछले साल की एकल जीत के बाद एक झटका है। बीएपीएसए ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, और कोमल की जीत ने संगठन की आंबेडकर, फुले और बिरसा मुंडा की विरासत को मजबूत किया।
कोमल देवी की मुहिम ने जाति-आधारित भेदभाव, लिंग समानता और संसाधनों के न्यायोचित वितरण पर जोर दिया। उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल मोटघारे को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने बहुजन एकता का संदेश दिया। काउंसलर के रूप में वे काउंसिल बहसों में बहुजन दृष्टिकोण को मजबूत करेंगी। मीडिया रिपोर्ट्स में उनकी जीत को '11 साल की सूखे की समाप्ति' कहा गया है।
जेएनयू कैंपस में पोस्ट-इलेक्शन उत्साह के बीच, कोमल की जीत प्रगतिशील सुधारों के लिए नई गठबंधनों की संभावना खोलती है। बीएपीएसए ने अपनी पोस्ट में जश्न मनाते हुए कहा, "हमारे अपने धुन और लय हैं जो हमारे संघर्ष और जीत का जश्न मनाते हैं।"