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MPUAT ने रचा इतिहास! एक साथ तीन औषधीय फसलों की किस्में विकसित कर राजस्थान के किसानों को दिया बड़ा तोहफा

उदयपुर- महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MPUAT) ने कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक बड़ा कीर्तिमान स्थापित किया है। विश्वविद्यालय ने औषधीय महत्व वाली तीन फसलों—प्रताप अश्वगंधा-1, प्रताप ईसबगोल-1 और प्रताप असालिया-1 को विकसित कर राजस्थान राज्य के लिए अधिसूचित कराया है। यह पहला मौका है जब देश के किसी कृषि विश्वविद्यालय ने एक साथ तीन किस्मों को मंजूरी दिलाई है। इससे राज्य के किसानों को इन फसलों की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने में मदद मिलेगी।

एम.पी.यू.ए.टी. के अनुसंधान निदेशक डाॅ. अरविन्द वर्मा ने बताया कि राज्य के कृषक सदियों से औषधीय महत्व से परिपूर्ण ईसबगोल, अश्वगंधा और असालिया की खेती करते रहे हैं, लेकिन लंबे अनुसंधान के बाद इनकी किस्मों के अधिसूचित होने से किसानों को भरपूर फायदा होगा। नई दिल्ली में हाल ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) उपमहानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डाॅ. संजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में बागवानी फसल मानकों, अधिसूचना और किस्मों के विमोचन संबंधी केंद्रीय उपसमिति की 32वीं बैठक में उपरोक्त तीनों किस्मों को अधिसूचित करने पर मुहर लगाई गई और इन्हें राजस्थान राज्य के लिए मुफीद माना गया।

क्या खास है इन किस्मों में?

किस्मों की खूबियां एवं औषधीय गुणों को लेकर एम.पी.यू.ए.टी. में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा संचालित अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगंधित पादप अनुसंधान परियोजना के प्रभारी एवं प्रजनक डाॅ. अमित दाधीच ने प्रताप नाम पर विकसित ईसबगोल, अश्वगंधा और असालिया (आलिया) किस्मों के गुण एवं विशेषता के बारे मेें जानकारी दी।

प्रताप ईसबगोल-1

औसत बीज उपज 1207 किलोग्राम/हेक्टेयर है। इस किस्म की परिपक्वता 115 दिन है, जो अन्य किस्मों की तुलना में पहले है। यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है। ईसबगोल में कई औषधीय गुण होते हैं जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में राहत प्रदान करते हैं। यह कब्ज, दस्त, पेचिश, मोटापा, डायबिटीज और डिहाइड्रेशन जैसी समस्याओं में फायदेमंद होता है। ईसबगोल एक आहार फाइबर है जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने और आंतों की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करता है।

प्रताप अश्वगंधा-1

राजस्थान राज्य से विकसित और अधिसूचित पहली किस्म है। प्रताप अश्वगंधा-1 की औसत शुष्क जड़ उपज 421 किग्रा/हेक्टेयर है। यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है। यह एक प्राचीन भारतीय जड़ी-बूटी है जिसे आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है। इसकी जड़ें और पत्तियाँ औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, और इन्हें विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। यह शरीर को तनाव, थकान, और पर्यावरणीय बदलावों से लड़ने की ताकत देता है। यह नींद, ताकत, और मानसिक शांति के लिए प्रसिद्ध है।

प्रताप असालिया (आलिया)-1

 औसत बीज उपज 2028 किग्रा/हेक्टेयर है। इस किस्म की परिपक्वता 111 दिन है, जो अन्य किस्मों की तुलना में पहले है। यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है। चन्द्रसूर (असालिया) आलिया फसल की खेती कम लागत, कम सिंचाई तथा कम संसाधनों में रबी के मौसम में की जा सकती है। इसका वानस्पतिक नाम लेपिडियम सेटाइवम है, यह सरसों कुल (ब्रेसिकेसी) की सदस्य है। यह मुख्यतः रक्त की कमी एवं त्वचा रोग के उपचार में उपयोगी है। पाचन संबंधी रोग, वात गैस, नेत्रपीड़ा, कमजोरी व ऊँचाई बढ़ाने सम्बन्धित अनेक औषधियां बनाई जाती है।

कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि एक साथ औषधीय गुणों से परिपूर्ण तीन किस्मों का अधिसूचित होना विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत गौरव की बात है। विश्वविद्यालय प्रसार शिक्षा एवं अनुसंधान के अलावा उद्यमिता विकास के आकाश में नित नए कीर्तिमान हासिल कर रहा है। विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 54 पेटेंट प्राप्त किये।  साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर बकरी की तीन नस्लें सिरोही, गुजरी एवं करौली को रजिस्टर्ड कराया। इस वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ मूंगफली (प्रताप मूंगफली-4) की किस्में विकसित की।  राज्य के किसानों के हितार्थ में विश्वविद्यालय पूरे मनोयोग से कार्यरत है।

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