भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने आरक्षक भर्ती 2016 से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए पुलिस विभाग को आरक्षण नीति के तहत याचिकाकर्ताओं को उनकी पसंद के अनुसार पदस्थापित करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक कुमार जैन की खंडपीठ ने पुलिस मुख्यालय (PHQ) भोपाल और गृह विभाग के निर्देशों को खारिज करते हुए इस मामले में डीजीपी और एडीजी (चयन) भोपाल के आदेश को अमान्य करार दिया।
क्या है मामला?
आरक्षित वर्ग (OBC) के याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि अधिक अंकों के बावजूद उन्हें अनारक्षित वर्ग में परिवर्तित कर स्पेशल आर्म्ड फोर्स (SAF) में पदस्थापित किया गया। जबकि उनसे कम अंकों वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में जिला पुलिस बल में पोस्टिंग दी गई।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनके साथ आरक्षण नीति का उल्लंघन हुआ है। पुलिस मुख्यालय ने 889 ओबीसी पदों को रिक्त मानते हुए उन्हें रिजर्व फॉरवर्ड कर दिया, जबकि कम अंक पाने वाले उम्मीदवारों को उनके वर्ग में प्राथमिकता दी गई।
हाईकोर्ट में दायर याचिका
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने 2022 में हाईकोर्ट में याचिका (क्रमांक WP/34551/2024) दायर की थी। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार, आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को उनकी चॉइस के अनुसार पोस्टिंग मिलनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को उनकी पसंद की पोस्टिंग देने के बजाय SAF में तैनात किया गया, जबकि SC/ST वर्ग के कम अंकों वाले उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में जिला पुलिस बल में पोस्टिंग मिली।
डीजीपी के आदेश को ठहराया गलत
पुलिस मुख्यालय ने पहले दायर याचिकाओं के आदेश को यह कहकर खारिज कर दिया था कि उम्मीदवारों को उनकी पसंद की पोस्टिंग दी गई है। हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी ठहराते हुए कहा कि डीजीपी का आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं करता।
कोर्ट का फैसला
1. समानता के सिद्धांत का पालन जरूरी है: अधिक अंक पाने वाले ओबीसी अभ्यर्थियों को उनकी पसंद की पोस्टिंग दी जानी चाहिए।
2. आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का हक: सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी और प्रवीण कुमार कुर्मी बनाम मध्य प्रदेश शासन मामले में इस प्रकार की गलती को सुधारने के निर्देश दिए थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने हाईकोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह निर्णय आरक्षण नीति के सही अनुपालन और प्रतिभावान अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा के लिए मील का पत्थर है। उन्होंने कहा कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उनकी चॉइस के अनुसार पोस्टिंग देने का सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले ही स्थापित किया गया है, लेकिन पुलिस विभाग ने इसे नजरअंदाज करते हुए अन्यायपूर्ण आदेश पारित किए थे।
उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ताओं के अधिक अंक होने के बावजूद, उन्हें उनकी पसंदीदा पोस्टिंग देने के बजाय अनारक्षित वर्ग में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ। यह फैसला न केवल याचिकाकर्ताओं के लिए राहत प्रदान करता है, बल्कि भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोकने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
रामेश्वर ठाकुर ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने डीजीपी और एडीजी (चयन) के आदेशों को खारिज करके यह स्पष्ट कर दिया है कि आरक्षण नीति और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। उन्होंने उम्मीद जताई कि गृह विभाग इस फैसले का सम्मान करते हुए याचिकाकर्ताओं को उनकी चॉइस के अनुसार पदस्थापित करेगा।
कोर्ट ने दिए निर्देश
हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव, गृह विभाग और डीजीपी भोपाल को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनके वर्ग और चॉइस के अनुसार पोस्टिंग दी जाए । याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, रामभजन लोधी और सुभांशु कौल ने पैरवी की।