भोपाल। भारतीय संविधान के निर्माता, समाज सुधारक और आधुनिक भारत के शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती पर राजधानी भोपाल में अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला। 14 अप्रैल की सुबह तक पूरे शहर का माहौल ‘जय भीम’ और ‘संविधान जिंदाबाद’ के नारों से गूंजता रहा। खासकर बोर्ड ऑफिस चौराहा, जो अंबेडकर की प्रतिमा का प्रमुख स्थल है, वहां रात 12 बजे से ही हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी।
रात 12 बजे शुरू हुआ आयोजन, झांकियों और डीजे के साथ पहुंचे लोग
13 अप्रैल की रात जैसे ही घड़ी ने 12 बजाए, अंबेडकर अनुयायी अपने-अपने इलाकों से जुलूस की शक्ल में झांकियों, बैंड-बाजों और डीजे की धुनों पर थिरकते हुए बोर्ड ऑफिस चौराहा की ओर बढ़ने लगे। सैकड़ों झांकियां अंबेडकर के जीवन, संघर्ष और उनके योगदान को रेखांकित कर रही थीं। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे—सभी ने उत्साह से इस आयोजन में भाग लिया।
नारों और मोमबत्तियों से गूंजा क्षेत्र, घंटों चली आतिशबाजी
“जय भीम”, “बाबा साहब अमर रहें” और “संविधान जिंदाबाद” जैसे नारों से सारा क्षेत्र गूंज उठा। डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा को फूलों से सजाया गया और उनके सम्मान में मोमबत्तियाँ जलाई गईं। कई बहुजन संगठनों ने विशेष रूप से बाबा साहब को सलामी दी और सामूहिक रूप से पुष्पांजलि अर्पित की। रात भर आतिशबाजी का सिलसिला चलता रहा, जिसने जयंती को एक त्यौहार में बदल दिया।
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में दिखा जोश
जयंती के इस ऐतिहासिक मौके पर कई लोग अपने बच्चों को लेकर पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे बाबा साहब के विचारों से परिचित हों और उनके बताए रास्ते पर चलें। युवाओं में विशेष उत्साह देखा गया। बहुतों ने अंबेडकर की फोटो वाली टी-शर्ट, नीली पट्टियां और जय भीम के बिल्ले पहन रखे थे।
सागर भंते बोले—‘अंबेडकर के विचारों को जीवन में आत्मसात करें’
बौद्ध धर्म के अनुयायी सागर भंते ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “बाबा साहब केवल संविधान निर्माता नहीं थे, वे सामाजिक क्रांति के प्रतीक थे। आज हमें उनकी जयंती केवल औपचारिकता तक सीमित नहीं रखनी चाहिए। उनके विचारों को अपनाकर ही हम सामाजिक सम्मान और समता का रास्ता तय कर सकते हैं।”
बाबा साहब से ही हमारी पहचान
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार रत्न दीप बांगरे ने मौके पर द मूकनायक से बातचीत में कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने जो संविधान दिया, उसने दलित, पिछड़े, आदिवासी, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को जीने का अधिकार और आत्मसम्मान दिया। आज हम संगठित होकर आवाज उठा पा रहे हैं, यह उनकी देन है। बाबा साहब से ही हमारी पहचान है।”
‘सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर दिया’—प्रदीप अहिरवार
मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप अहिरवार ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “डॉ. अंबेडकर ने हाशिये पर खड़े समाज को संविधान के जरिए मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। उन्होंने हमें यह एहसास कराया कि हम भी सम्मान से जी सकते हैं। उनकी जयंती सामाजिक चेतना का प्रतीक बन चुकी है।”
‘बाबा साहब के आदर्शों पर चलना ही सच्ची श्रद्धांजलि’—डॉ. विक्रम चौधरी
कांग्रेस नेता डॉ. विक्रम चौधरी ने कहा, “आज जब सामाजिक और राजनीतिक विषमता बढ़ रही है, तो अंबेडकर के विचार और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। हमें जाति, धर्म और लिंग से परे जाकर उनके आदर्शों को अपनाने की जरूरत है। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

बहुजन साहित्य के स्टॉल पर उमड़ी भीड़
कार्यक्रम स्थल पर बहुजन साहित्य के स्टॉल विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। इन स्टॉलों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर, गौतम बुद्ध, महात्मा ज्योतिबा फुले और अन्य सामाजिक सुधारकों पर आधारित पुस्तकों की भरमार थी। यहां संविधान, सामाजिक न्याय, बौद्ध धम्म, और बहुजन इतिहास से जुड़े विविध विषयों की किताबें, पत्रिकाएं और जीवनियां उपलब्ध थीं, जिन्हें देखकर युवाओं और छात्रों में खासा उत्साह दिखाई दिया।
किताबों के इन स्टॉलों पर भारी भीड़ उमड़ी रही। लोग न केवल किताबें खरीद रहे थे बल्कि अंबेडकर और बुद्ध की तस्वीरें, पोस्टर, कैलेंडर और नीले झंडे भी खरीदते नजर आए। कई लोगों ने बताया कि वे हर साल इस मौके पर नए साहित्य को जुटाते हैं ताकि अंबेडकरवादी विचारों को गहराई से समझ सकें और उन्हें दूसरों तक पहुंचा सकें।