राजस्थान का धर्मांतरण विरोधी कानून सबसे कठोर! SC में याचिकाकर्ता बोले- बिना दोष सिद्धि प्रॉपर्टी जब्ती-बुल्डोजर एक्शन 'असंवैधानिक'

12:21 PM Nov 04, 2025 | Geetha Sunil Pillai

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के विवादास्पद 'विधिविरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2025' के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक बताने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी कर दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें विशेष रूप से उन धाराओं पर सवाल उठाया गया है जो दोष सिद्ध होने से पहले ही निजी संपत्तियों की जब्ती और बुलडोजर से तोड़फोड़ की अनुमति देती हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे 'सामूहिक सजा' और मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है, जो अल्पसंख्यक और हाशिए पर पड़े समुदायों के आश्रय, जीविका और न्यायिक प्रक्रिया के अधिकार को खतरे में डालता है।

यह मामला वकील और शोधकर्ता एम हूजैफा तथा वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता जॉन डेयल द्वारा दायर जनहित याचिका पर आधारित है, जिसमें कानून की धारा 5(6), 10(3), 12 और 13 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। इन प्रावधानों के तहत प्रशासनिक अधिकारी बिना किसी अदालती फैसले के 'अवैध धर्मांतरण' के आरोप लगाते ही संपत्ति जब्त कर सकते हैं, संस्थाओं का पंजीकरण रद्द कर सकते हैं, बैंक खाते जमा करवा सकते हैं और यहां तक कि अवैध निर्माणों को बुलडोजर से ध्वस्त भी कर सकते हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह न केवल कार्यपालिका को न्यायपालिका के दायरे में घुसपैठ करने की छूट देता है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 22 और 300A का स्पष्ट उल्लंघन करता है, जो समानता, जीवन का अधिकार, गिरफ्तारी से सुरक्षा और संपत्ति के अधिकार की गारंटी देते हैं।

याचिका में विस्तार से बताया गया है कि धारा 5(6) के अनुसार, जहां अवैध धर्मांतरण हुआ हो, वहां की संपत्ति जिला मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त गजेटेड अधिकारी की जांच के बाद जब्त की जा सकती है। इसी तरह, धारा 10(3) किसी संस्था या संगठन पर कानून के उल्लंघन का आरोप लगने पर उसके पंजीकरण को हमेशा के लिए रद्द करने, संपत्ति जब्त करने, खातों को फ्रीज करने और 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की अनुमति देती है। धारा 12 स्पष्ट रूप से कहती है कि जहां 'अवैध या सामूहिक धर्मांतरण' हुआ हो, वह संपत्ति या परिसर जिला मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा जब्त की जाएगी। वहीं, धारा 13 अवैध निर्माणों के विध्वंस का प्रावधान करती है, जिसमें गजेटेड अधिकारी की जांच के बाद बिना अदालती फैसले के तोड़फोड़ की जा सकती है। इसमें स्पष्टीकरण भी है कि नगर निगम कानूनों के अनुसार या 15 दिनों के नोटिस के बाद कार्रवाई हो, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर तो 72 घंटों में ही बुलडोजर चला दिया जा सकता है।

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याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि ये प्रावधान 'दंडात्मक विध्वंस' (पनिशमेंट बाय डेमोलिशन) को वैधता प्रदान करने का प्रयास हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसले का उल्लंघन करते हैं। उस फैसले में कोर्ट ने अतिरिक्त-न्यायिक विध्वंसों पर सख्ती से रोक लगाई थी और इसे असंवैधानिक घोषित किया था। याचिका में चेतावनी दी गई है कि ऐसे कदम अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते हैं, क्योंकि सामूहिक धर्मांतरण को दो या इससे अधिक लोगों के धर्म परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके लिए 20 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है। इसके अलावा, सजा न्यूनतम 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकती है, जो याचिकाकर्ताओं के अनुसार 'अकल्पनीय' है।

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट अभय महादेव थिप्से याचिकाकर्ताओं के लिए पेश हुए, जबकि एक समान याचिका (दशरथ कुमार हिनुनिया बनाम राजस्थान राज्य) में सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने बहस की। अहमदी ने बताया कि राजस्थान का यह कानून अन्य राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तुलना में 'सबसे कठोर' है और कई समान मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिन्हें अन्य हाईकोर्टों से स्थानांतरित किया गया है। पीठ ने पूछा कि याचिका राजस्थान हाईकोर्ट में क्यों नहीं दायर की गई, तो अहमदी ने स्पष्ट किया कि ये मुद्दे पहले से ही शीर्ष अदालत में विचाराधीन हैं। इस याचिका में स्टे एप्लीकेशन पर भी नोटिस जारी हुआ है।

यह याचिका एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड यशवंत सिंह के माध्यम से दायर की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोर्ट ने इन प्रावधानों को रद्द किया, तो यह न केवल राजस्थान बल्कि अन्य राज्यों के समान कानूनों पर भी असर डालेगा, जहां धर्मांतरण के नाम पर प्रशासनिक मनमानी की शिकायतें बढ़ रही हैं।